विविध
"सन्दर्भ मुहावरे : आओ तिल का ताड़ बनाएं"--वातायन मंच पर १०५ वीं संगोष्ठी
26 May, 2022 06:00 PM IST | WEWITNESSNEWS.COM
लन्दन : दिनांक २२ मई, २०२२ को "वातायन मंच" के तत्वावधान में 'वातायन प्रवासी संगोष्ठी' का साप्ताहिक आयोजन किया गया। इस संगोष्ठी का शीर्षक था "सन्दर्भ मुहावरे : आओ तिल...
"वातायन मंच" के तत्वावधान में "दो देश दो कहानियां" का आयोजन
15 May, 2022 10:39 AM IST | WEWITNESSNEWS.COM
लन्दन : दिनांक १४ मई, २०२२ को "वातायन मंच" के तत्वावधान में 'वातायन यूके' और 'हिंदी राइटर्स गिल्ड कैनेडा' के संयुक्त प्रयास से "दो देश दो कहानियां (भाग-४)" का आयोजन...
"वातायन मंच" के तत्वावधान में "स्मृति-संवाद-२४" का आयोजन
8 May, 2022 12:30 PM IST | WEWITNESSNEWS.COM
लन्दन : दिनांक ७ मई, २०२२ को "वातायन मंच" के तत्वावधान में "स्मृति-संवाद-२४" का भव्य आयोजन किया गया। कार्यक्रम के प्रस्तोता डॉ. मनोज मोक्षेन्द्र ने संगोष्ठी का आरम्भ करते हुए एक...
"वातायन मंच" के तत्वावधान में "स्मृति-संवाद-२४" का आयोजन
8 May, 2022 12:30 PM IST | WEWITNESSNEWS.COM
लन्दन : दिनांक ७ मई, २०२२ को "वातायन मंच" के तत्वावधान में "स्मृति-संवाद-२४" का भव्य आयोजन किया गया। यह कार्यक्रम लब्ध-प्रतिष्ठ कथाकार अमरकांत के रचनाकर्म, उनके व्यक्तिगत जीवन तथा साहित्यिक अवदान...
सुशांत सुप्रिय द्वारा अनूदित कहानी
28 Apr, 2022 08:54 PM IST | WEWITNESSNEWS.COM
( फ़्रांसीसी कहानी का अप्रकाशित अनुवाद )
——————————————————
मौन लोग
—————
—- मूल कहानी : अल्बेयर कामू
—- अनुवाद : सुशांत सुप्रिय
वह कड़कड़ाती ठंड का समय था , लेकिन पहले ही सक्रिय हो चुके शहर पर कांतिमय धूप फैली हुई थी । घाट के अंत में समुद्र और आकाश चौंधिया देने वाले प्रकाश में मिल गए थे । किंतु यवेर्स यह सब नहीं देख रहा था । वह बंदरगाह के ऊपरी मार्ग...
सुशांत सुप्रिय द्वारा अनूदित कहानी
28 Apr, 2022 08:54 PM IST | WEWITNESSNEWS.COM
( फ़्रांसीसी कहानी का अप्रकाशित अनुवाद )
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मौन लोग
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—- मूल कहानी : अल्बेयर कामू
—- अनुवाद : सुशांत सुप्रिय
वह कड़कड़ाती ठंड का समय था , लेकिन पहले ही सक्रिय हो चुके शहर पर कांतिमय धूप फैली हुई थी । घाट के अंत में समुद्र और आकाश चौंधिया देने वाले प्रकाश में मिल गए थे । किंतु यवेर्स यह सब नहीं देख रहा था । वह बंदरगाह के ऊपरी मार्ग...
सुशांत सुप्रिय द्वारा अनूदित कहानी
28 Apr, 2022 08:54 PM IST | WEWITNESSNEWS.COM
( फ़्रांसीसी कहानी का अप्रकाशित अनुवाद )
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मौन लोग
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—- मूल कहानी : अल्बेयर कामू
—- अनुवाद : सुशांत सुप्रिय
वह कड़कड़ाती ठंड का समय था , लेकिन पहले ही सक्रिय हो चुके शहर पर कांतिमय धूप फैली हुई थी । घाट के अंत में समुद्र और आकाश चौंधिया देने वाले प्रकाश में मिल गए थे । किंतु यवेर्स यह सब नहीं देख रहा था । वह बंदरगाह के ऊपरी मार्ग...
सुशांत सुप्रिय द्वारा अनूदित कहानी
28 Apr, 2022 08:50 PM IST | WEWITNESSNEWS.COM
( अफ़्रीकी कहानी का अप्रकाशित अनुवाद )
——————————————————
मृतकों का मार्ग
———————-
—- मूल लेखक : चिनुआ अचेबे
—- अनुवाद : सुशांत सुप्रिय
अपेक्षा से कहीं पहले माइकेल ओबी की इच्छा पूरी हो गई । जनवरी , 1949 में उसकी नियुक्ति नड्यूम केंद्रीय विद्यालय के प्रधानाचार्य के पद पर कर दी गई । यह विद्यालय हमेशा से पिछड़ा हुआ था ,...
सुशांत सुप्रिय द्वारा अनूदित कहानी
28 Apr, 2022 08:50 PM IST | WEWITNESSNEWS.COM
( अफ़्रीकी कहानी का अप्रकाशित अनुवाद )
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मृतकों का मार्ग
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—- मूल लेखक : चिनुआ अचेबे
—- अनुवाद : सुशांत सुप्रिय
अपेक्षा से कहीं पहले माइकेल ओबी की इच्छा पूरी हो गई । जनवरी , 1949 में उसकी नियुक्ति नड्यूम केंद्रीय विद्यालय के प्रधानाचार्य के पद पर कर दी गई । यह विद्यालय हमेशा से पिछड़ा हुआ था ,...
सुशांत सुप्रिय की पाँच कविताएं
28 Apr, 2022 08:46 PM IST | WEWITNESSNEWS.COM
1. उल्टा-पुल्टा
मैं परीक्षा पास करता हूँ
मुझे डिग्री मिल जाती है
मैं इंटरव्यू देने जाता हूँ
मुझे नौकरी मिल जाती है
और तब जा कर
मुझे पता चलता है
कि दरअसल
नौकरी ने मुझे पा लिया है
2. सूर्य के तीसरे ग्रह पर
न गिला
न शिकवा
न शिकायत
कुछ भी नहीं होता उन्हें
अपने कर्मों पर
शुद्ध अंत:करण के पीछे
जो नहीं भागते
ऐसे लोग कितने सुखी रहते हैं
सूर्य के तीसरे ग्रह पर
3. साठ की उम्र में
साठ की उम्र में लोग
उन रास्तों पर
बेहद आहिस्ता चलते हैं
जहाँ वे दोबारा नहीं लौटेंगे
आईनों में वे
अपने पिता जैसे दिखने लगते हैं
हालाँकि पिता की छवि के पीछे से
कभी-कभी उनके बचपन का चेहरा भी
झाँकने लगता है इस ओर
जिसे वे हसरत भरी निगाहों से
देख लेते हैं
उनके भीतर
कुछ-न-कुछ भरता रहता है
लगातार
जैसे ढलती शाम के वीराने में आती है
झींगुरों की गहरी आवाज़
झाड़ियों-जंगलों को भरती हुई
4. विस्तार
आकाश मेरे भीतर ही था
एक दिन मेरे मन का पंछी
खुले रोशनदान से उड़ान भर गया
समुद्र मेरे भीतर ही था
एक दिन मेरे मन की मछली
खुली खिड़की से गहराई में उतर गई
पहाड़ मेरे भीतर ही था
एक दिन मेरे मन का पर्वतारोही
खुले द्वार से निकल ऊपर चढ़ गया
बरसों तक मैं दो शब्दों के
बीच की ख़ाली जगह में
दुबका हुआ मौन था
एक दिन जाग कर
मैं कविता से निकला और
जीवन में भर गया
----------०----------
5. केवल रेत भर
वर्षों बाद
जब मैं वहाँ लौटूँगा
सब कुछ अचीन्हा-सा होगा
पहचान का सूरज
अस्त हो चुका होगा
मेरे अपने
बीत चुके होंगे
मेरे सपने
रीत चुके होंगे
अंजुलि में पड़ा जल
बह चुका होगा
प्राचीन हो चुका पल
ढह चुका होगा
बचपन अपनी केंचुली उतार कर
गुज़र गया होगा
यौवन अपनी छाया समेत
बिखर गया होगा
मृत आकाश तले
वह पूरा दृश्य
एक पीला पड़ चुका
पुराना श्वेत-श्याम चित्र होगा
दाग़-धब्बों से भरा हुआ
जैसे चींटियाँ खा जाती हैं कीड़े को
वैसे नष्ट हो चुका होगा
बीत चुके कल का हर पल
मैं ढूँढ़ने निकलूँगा
पुरानी आत्मीय स्मृतियाँ
बिना यह जाने कि
एक भरी-पूरी नदी वहाँ
अब केवल रेत भर बची होगी
----०----
प्रेषकः सुशांत सुप्रिय
A-5001 ,
गौड़ ग्रीन सिटी ,
वैभव खंड ,
इंदिरापुरम ,
ग़ाज़ियाबाद - 201014
( उ. प्र. )
मो: 8512070086
ई-मेल : sushant1968@gmail.com
सुशांत सुप्रिय की पाँच कविताएं
28 Apr, 2022 08:46 PM IST | WEWITNESSNEWS.COM
1. उल्टा-पुल्टा
मैं परीक्षा पास करता हूँ
मुझे डिग्री मिल जाती है
मैं इंटरव्यू देने जाता हूँ
मुझे नौकरी मिल जाती है
और तब जा कर
मुझे पता चलता है
कि दरअसल
नौकरी ने मुझे पा लिया है
2. सूर्य के तीसरे ग्रह पर
न गिला
न शिकवा
न शिकायत
कुछ भी नहीं होता उन्हें
अपने कर्मों पर
शुद्ध अंत:करण के पीछे
जो नहीं भागते
ऐसे लोग कितने सुखी रहते हैं
सूर्य के तीसरे ग्रह पर
3. साठ की उम्र में
साठ की उम्र में लोग
उन रास्तों पर
बेहद आहिस्ता चलते हैं
जहाँ वे दोबारा नहीं लौटेंगे
आईनों में वे
अपने पिता जैसे दिखने लगते हैं
हालाँकि पिता की छवि के पीछे से
कभी-कभी उनके बचपन का चेहरा भी
झाँकने लगता है इस ओर
जिसे वे हसरत भरी निगाहों से
देख लेते हैं
उनके भीतर
कुछ-न-कुछ भरता रहता है
लगातार
जैसे ढलती शाम के वीराने में आती है
झींगुरों की गहरी आवाज़
झाड़ियों-जंगलों को भरती हुई
4. विस्तार
आकाश मेरे भीतर ही था
एक दिन मेरे मन का पंछी
खुले रोशनदान से उड़ान भर गया
समुद्र मेरे भीतर ही था
एक दिन मेरे मन की मछली
खुली खिड़की से गहराई में उतर गई
पहाड़ मेरे भीतर ही था
एक दिन मेरे मन का पर्वतारोही
खुले द्वार से निकल ऊपर चढ़ गया
बरसों तक मैं दो शब्दों के
बीच की ख़ाली जगह में
दुबका हुआ मौन था
एक दिन जाग कर
मैं कविता से निकला और
जीवन में भर गया
----------०----------
5. केवल रेत भर
वर्षों बाद
जब मैं वहाँ लौटूँगा
सब कुछ अचीन्हा-सा होगा
पहचान का सूरज
अस्त हो चुका होगा
मेरे अपने
बीत चुके होंगे
मेरे सपने
रीत चुके होंगे
अंजुलि में पड़ा जल
बह चुका होगा
प्राचीन हो चुका पल
ढह चुका होगा
बचपन अपनी केंचुली उतार कर
गुज़र गया होगा
यौवन अपनी छाया समेत
बिखर गया होगा
मृत आकाश तले
वह पूरा दृश्य
एक पीला पड़ चुका
पुराना श्वेत-श्याम चित्र होगा
दाग़-धब्बों से भरा हुआ
जैसे चींटियाँ खा जाती हैं कीड़े को
वैसे नष्ट हो चुका होगा
बीत चुके कल का हर पल
मैं ढूँढ़ने निकलूँगा
पुरानी आत्मीय स्मृतियाँ
बिना यह जाने कि
एक भरी-पूरी नदी वहाँ
अब केवल रेत भर बची होगी
----०----
प्रेषकः सुशांत सुप्रिय
A-5001 ,
गौड़ ग्रीन सिटी ,
वैभव खंड ,
इंदिरापुरम ,
ग़ाज़ियाबाद - 201014
( उ. प्र. )
मो: 8512070086
ई-मेल : sushant1968@gmail.com
सुशांत सुप्रिय की कविताएं
28 Apr, 2022 08:39 PM IST | WEWITNESSNEWS.COM
1. विडम्बना
कितनी रोशनी है
फिर भी कितना अँधेरा है
कितनी नदियाँ हैं
फिर भी कितनी प्यास है
कितनी अदालतें हैं
फिर भी कितना अन्याय है
कितने ईश्वर हैं
फिर भी कितना अधर्म है
कितनी आज़ादी है
फिर भी कितने खूँटों से
बँधे हैं हम
2. विनम्र अनुरोध
जो फूल तोड़ने जा रहे हैं
उनसे मेरा विनम्र अनुरोध है कि
थोड़ी देर के लिए
स्थगित कर दें आप
अपना यह कार्यक्रम
और पहले उस कली से मिल लें
खिलने से ठीक पहले
ख़ुशबू के दर्द से छटपटा रही है जो
यह मन के लिए अच्छा है
अच्छा है आदत बदलने के लिए
कि कुछ भी तोड़ने से पहले
हम उसके बनने की पीड़ा को
क़रीब से जान लें
3. कलयुग
एक बार
एक काँटे के
शरीर में चुभ गया
एक नुकीला आदमी
काँटा दर्द से
कराह उठा
बड़ी मुश्किल से
उसने आदमी को
अपने शरीर से
बाहर निकाल फेंका
तब जा कर काँटे ने
राहत की साँस ली
4. अंतर
महँगे विदेशी टाइल्स
और सफ़ेद संगमरमर से बना
आलीशान मकान ही
तुम्हारे लिए घर है
जबकि मैं
हवा-सा यायावर हूँ
तुम्हारे लिए
नर्म-मुलायम गद्दों पर
सो जाना ही घर आना है
जबकि मेरे लिए
नए क्षितिज की तलाश में
खो जाना ही
घर आना है
5. नियति
मेरे भीतर
एक अंश रावण है
एक अंश राम
एक अंश दुर्योधन है
एक अंश युधिष्ठिर
जी रहा हूँ मैं निरंतर
अपने ही भीतर
अपने हिस्से की रामायण
अपने हिस्से का महाभारत
-----०----
प्रेषकः सुशांत सुप्रिय
A-5001 ,
गौड़ ग्रीन सिटी ,
वैभव खंड ,
इंदिरापुरम ,
ग़ाज़ियाबाद -201014
( उ. प्र . )
मो: 8512070086
ई-मेल : sushant1968@gmail.com
"वातायन- यूके" के बैनर तले संगोष्ठी-९९ का भव्य आयोजन (प्रेस विज्ञप्ति)
27 Mar, 2022 11:28 PM IST | WEWITNESSNEWS.COM
लन्दन-२६ मार्च, २०२२: "चीन में भारतीय संस्कृति एवं कलाओं के प्रति आकर्षण" विषय पर वातायन संगोष्ठी-९९ का भव्य आयोजन किया गया। इस विशेष संगोष्ठी में भारतीय संस्कृति के विशेष जानकार...
लन्दन स्थित "वातायन-यूके" की संगोष्ठी-९७ के तहत "स्मृति श्रृंखला-२३ भारत रत्न लता मंगेशकर" का आयोजन (प्रेस विज्ञप्ति)
14 Mar, 2022 01:10 AM IST | WEWITNESSNEWS.COM
लन्दन: दिनांक : १२ मार्च २०२२ को "वातायन-यूके" की संगोष्ठी-९७ के तहत "स्मृति श्रृंखला-२३ भारतरत्न लता मंगेशकर" का भव्य आयोजन किया गया। इस आयोजन में न केवल लता जी की...
लन्दन स्थित "वातायन-यूके" के तहत वर्चुअल संगोष्ठी-९६ का आयोजन
7 Mar, 2022 12:19 AM IST | WEWITNESSNEWS.COM
लन्दन: "वातायन-यूके" के बैनर तले दिनांक: ०५ मार्च २०२२ को बहु-आयामी शख्सियत श्री कृष्ण टंडन जी के ग़ज़ल-संग्रह "गुलदस्ता" का लोकार्पण किया गया और विशेष रूप से उनके ग़ज़लों पर...