जनवरी २३ को महान योद्धा, स्वतंत्रता सेनानी और सही मायनों में भारत के प्रथम प्रधानमंत्री नेताजी सुभाषचंद्र बोस का जन्मदिन है।  किन्तु इस महापुरुष के साथ-साथ एक अन्य देवतुल्य मानव का भी जन्मदिन इसी जनवरी माह में १२ तारीख को पड़ता है और जिसे स्वयं सुभाष अपना प्रेरणास्रोत मानते थे।  आप समझ गए होंगे और नहीं समझे तो अपनी याददाश्त पर बल दीजिए।  हाँ, वह महामानव स्वामी विवेकानंद थे। 

दोनों ही मानवीय स्वतंत्रता, भारत की सांस्कृतिक एकता, जीवन के प्रखर दार्शनिक चिंतन और भरत-भू की माटी के परम भक्त थे। दोनों ही गुलाम भारत में पैदा हुए थे किन्तु उनकी आत्माएं आंग्ल दासता को ठोकर मारने के लिए सदैव तत्पर रहती थीं। अस्तु, यह भी विशेष उल्लेखनीय है कि स्वतंत्र भारत में उनके योगदान को धूल-धूसरित करने की कोशिश की जाती रही है, उनकी अस्मिता को धूमिल करने का घिनौना खेल खेला जाता रहा है। 

सुभाष के साथ क्या हुआ--यह सर्व-विदित है। जबकि क्लीमेंट एटली का वह बयान जिसे उन्होंने भारत के आज़ाद होने के बाद कलकत्ता में दिया था कि अँगरेज़ तो कांग्रेस या गाँधी जी की वजह से भारत छोड़कर नहीं गए बल्कि नेताजी सुभाषचंद्र बोस से हारकर भारत से भाग खड़े हुए थे, क्या हम भुला पाएंगे? हाँ, हमारे स्मृति-पटल से उनके योगदान को मिटाने के लिए क्या-क्या षडयंत्र नहीं रचे गए ? अगर सुभाष को भारत के स्वतंत्रता-आंदोलन पटल से जानबूझकर हटाया नहीं गया होता तो आज इस देश का भविष्य अत्यंत उज्ज्वल होता; या दूसरे शब्दों में, इतना बुरा नहीं होता जितना कि हम अपनी मायूस आँखों से देख रहे हैं। 

बताते चलें कि सुभाष एक कुशल सेनानायक और जुझारू योद्धा ही नहीं थे बल्कि एक बड़े मंझे हुए कूटनीतिज्ञ और राजनीतिज्ञ भी थे। गुलाम भारत से आज़ाद भारत तक की निष्कंटक यात्रा के लिए उन्होंने जीवन-पर्यन्त कमर कस रखी थी। महात्मा गाँधी और पंडित नेहरू तक को उनके हौसले का अंदाज़ा नहीं था। हिटलर तक को अपने आगे नतमस्तक कराने वाले सुभाष को कभी पराजय का मुंह नहीं देखना था। लेकिन, विधना को यह मंजूर नहीं था और वह षडयंत्रों की बलि चढ़ गए। 

जब १९४७ से पहले ही उन्होंने भारत के आज़ाद होने की दुदुंभि बजायी थी तो कांग्रेस तो हैरत में पड़ गई थी। उसे तब और भी ज्यादा हैरत हुई जबकि नेताजी के आज़ाद भारत को कोई दर्जनभर राष्ट्रों ने मान्यता दे दी जबकि सुभाष ने अपने प्रशासन का मुख्यालय भी तैनात कर लिया था और करेंसी नोट भी जारी कर दिए थे। स्वयं को प्रधानमंत्री घोषित करने के बाद उन्हें दिल्ली से तिरंगा फहराना था जबकि इस तिरंगे के जनक भी वही थे। महात्मा गाँधी को 'बापू' का अतिप्रिय संबोधन देने वाले सुभाष ने कभी भी गांधीजी की अवमानना नहीं की। गांधीजी को दुःख हुआ तो उन्होंने कांग्रेस के अध्यक्ष-पद का परित्याग कर दिया। गांधीजी को उनके कांग्रेस में रहने की चिंता हुई तो उन्होंने कांग्रेस का साथ छोड़ दिया और आज़ाद हिन्द फ़ौज के बैनर तले स्वतंत्रता-संग्राम की ठंडी चिंगारी को बड़वानल में तब्दील करने लगे। बहरहाल, पता नहीं किसके बहकावे में जब उनकी प्रयाण कर रही सेना को पूर्व-निर्धारित और पूर्व-सहमत समझौते के अनुसार जापान से सामरिक शस्त्रास्त्र और रसद नहीं मिले तो भी वह मायूस नहीं हुए। जापान के छल के शिकार होने के बाद, उन्हें छलपूर्वक एक ऐसी दुर्घटना का शिकार होने का दावा किया गया जो कभी हुई ही नहीं। विमान-दुर्घटना का शिकार होने का कोई साक्ष्य कहीं नहीं मिला। उड़ती-उड़ती खबरों से कानाफूसियों का बवंडर उमड़ रहा है कि विमान-दुर्घटना के बाद उन्हें रूस में देखा गया।  जब  ताशकंद समझौते के बाद लालबहादुर शास्त्रीजी के पास रात को किसी व्यक्ति की फोन-कॉल आई कि अगली सुबह वह उनसे मिलने वाला है तो वह शख्स कौन था और उससे मिलने के पहले ही शास्त्री जी की मौत का ड्रामा क्यों खेला गया? उस समय की एक तस्वीर में याहया खान के साथ भीड़ में जाते हुए नेपथ्य में हू-ब-हू नेताजी की शक्ल वाला व्यक्ति धीरे-धीरे शास्त्रीजी की ओर क्यों बढ़ रहा था? नेहरूजी का कोई भलामानस शाहनवाज़ खान, जो सुभाष की फ़ौज में था और जो सुभाष के गायब होने के बाद पाकिस्तान चला गया था और जिसे नेहरू जी ने बाद में बुलाकर भारत में किसी महत्वपूर्ण पद पर आसीन कराया था, उसकी नेताजी के इस प्रकरण में क्या भूमिका थी?बहरहाल, नेताजी की शक्ल वाला वह व्यक्ति इंग्लैंड में क्या कर रहा था? सोशल मिडिया पर भारतीय सेना का कोई अधिकारी बता रहा था कि नेताजी को यूरोप में यातना देकर मारा गया। क्या यह बात सही है? आखिर, शास्त्री जी का परिवार इस बात का खुलासा क्यों नहीं कर रहा है कि जो व्यक्ति उन्हें रूस में मिला था और जिसके बारे में शास्त्रीजी ने फोन पर अपनी पत्नी ललिता शास्त्री को बताया था कि वह भारत आकर एक ऐसे रहस्य का पर्दाफाश करेंगे कि जिसे सुनकर हर भारतीय झूम उठेगा?

आज इतने वर्षों बाद भी नेताजी की मौत का रहस्योद्घाटन नहीं हो पाया है। यह देश और आज़ाद भारत की कितनी ही आई-गई सरकारों के लिए इतनी शर्मनाक बात है कि उन सब को चुल्लू-भर पानी में डूब मरना चाहिए। अति दूरदृष्टि वाले नेताजी सुभाष की पुण्यतिथि किस दिन मनाई जानी चाहिए? जिस नेता ने आर्थिक ढांचा कोई ६० वर्षों पहले ही तैयार कर लिया था, जिस नेता ने सन १९४० में ही भविष्यवाणी कर दी थी की आने वाले समय में भारत की सबसे बड़ी समस्या जनसंख्या विस्फोट की होगी, जिसने बता दिया था कि प्रकृति के साथ छेड़छाड़ न की जाए, जिसने भारत के खंडित होने की भविष्यवाणी भी कर दी थी और जिसने कह दिया था कि इस देश के भविष्य में संस्कृतियां और धर्म आपस में कलह करेंगे, उस महापुरुष की छवि को निखारने की कोशिश क्यों नहीं की जा रही है?

 

 

न्यूज़ सोर्स : wewitness