बचपन में कभी-कभार जाड़े में ऐसी झमाझम बारिश के मौसम से दो-चार हुआ करते थे और वह भी दिसंबर के आखिर में या जनवरी के पहले सप्ताह में। परन्तु, पूरी जनवरी के दौरान बारिश की टपटप और झमझम पहली बार देखी है। एक तो कोरोना की मार, दूसरे उत्तर प्रदेश के चुनाव-प्रचार की अंधाधुंध घुड़दौड़ में बरसात का मौसम--दोनों ने जीना मुहाल कर दिया है। साल १९८९ में ही ऐसी शरदकालीन बरसात हुई थी जिसके बारे में बड़े-बूढ़े चर्चा कर रहे हैं। वर्ष २०२२ में कोई २४ जनवरी तक ७० मिलीमीटर के आसपास बारिश हो चुकी है। अनुमान है कि असमय प्रसन्न हुए या यूँ कहिए कि रुष्ट हुए अभी इंद्रदेव एक सप्ताह तक और बरसात कराएंगे। 
इस बारिश की वजह से विशेषतया उत्तर भारत की हालत पतली हो गई है। गिरते तापमान का तो मत कहिए--कहीं ७ डिग्री तो कहीं १७ डिग्री में लोगबाग ठिठुर-ठिठुर कर जीवनयापन कर रहे हैं। प्लेटफार्मों, सड़क की पटरियों, बस स्टेशनों और चौराहों पर बेघर-द्वार वाले लोग कैसे मर-जी रहे हैं -- यह तो वर्णनातीत है। ईश्वर इन बेसहारों और गरीब-गुनबों का भला करे। बताया जा रहा है कि कोई दस दिन तक तापमान २० डिग्री से ऊपर नहीं चढ़ पाएगा। 
शरदकालीन बरसात का क्षेत्र तो दक्षिण भारत रहा है लेकिन इस मौसम में उत्तर भारत पर इंद्रदेव कुछ ज़्यादा ही रीझे हुए हैं। ऐसे में, नागरिकों से अनुरोध है कि वे घरों में रजाइयों में दुबके रहें या हीटर या अलाव के आगे बैठकर टाइम पास करें। अगर नौकरीशुदा हैं तो बेहतर होगा कि छुट्टी लेकर घर में ही रहें और बच्चों के साथ लूडो या कैरम खेलें। बच्चे भी आपका सान्निध्य पाकर खुश रहेंगे और आपके तो मजे ही मजे होंगे। 
न्यूज़ सोर्स : Editor's Desk