वर्तमान दौर में, सामाजिक परिवर्तन में पत्रकारों की भूमिका अग्रणी है। पढ़े-लिखे या अनपढ़, बूढ़े या जवान, महिला या पुरुष, विद्यार्थी या अधिकारी-कर्मचारी, व्यवसायी या बेरोजगार, सभी पत्रकारों की टिप्पणियों, उनके वकतव्यों तथा उनकी गतिविधियों में खास दिलचस्पी रखते हैं। इतना ही नहीं, सभी का मानना है कि इस देश में भ्रष्टाचार को मिटाने में पत्रकार ही सफल हो सकते हैं। इस तरह पत्रकार या मीडियाकर्मी न केवल भारत में, अपितु पूरी दुनिया में सम्मानित होते हैं। वे सामान्य होते हुए भी असामान्य व्यक्ति होते हैं क्योंकि उनका कर्तव्य सच को सच और झूठ को झूठ सिद्ध करना होता है। इस प्रकार, यह जनसामान्य से लेकर अति विशिष्ट जनों की जिम्मेदारी है कि वे पत्रकारों को यथेष्ट सम्मान प्रदान करें। पत्रकार  सैनिकों की भांति अनुकूल-प्रतिकूल मौसमों में बीहड़ से बीहड़ इलाकों में जाकर समाज और देश-दुनिया के हालात का जायजा लेते हैं और हमें देश-दुनिया की स्थितियों से  अवगत कराते हैं। 

बहरहाल, कई मामलों में पत्रकारों की भूमिका संदिग्ध होती है। वे राजनेताओं और धनपतियों के हाथों बिक जाते हैं, उनकी चम्पी-मालिश करते हैं, स्थितियों का गलत आकलन पेश करते हैं तथा राष्ट्र, समाज तथा मानवता के प्रति अपनी जिम्मेदारी को ताक पर रख देते हैं। आम लोगों में भी यही धारणा घर कर गई है कि ऐसे पत्रकारों द्वारा स्थितियों का किया गया आकलन एकतरफा है या गलत है। दरअसल, कई पत्रकार इतने महत्वाकांक्षी हो चुके हैं कि वे अपने इस महत्वपूर्ण कार्य को राजनीतिक गलियारों में पहुँचने तथा राजनीति में पैठ बनाते हुए सत्ता की कुर्सी को हथियाने का माध्यम बनाते हैं। अपनी इस प्रवृत्ति के कारण पत्रकारों की प्रतिष्ठा अपरदित होती जा रही है। बेशक, वे सत्ता तक जाएं, लेकिन सत्ता तक पहुँचना उनका लक्ष्य नहीं होना चाहिए। कुटिल राजनीति में उनकी ज़रूरत तो है; पर, उन्हें कुटिल नहीं बनना होगा। वे राजसभाओं में जाकर भी त्याग-बलिदान और राष्ट्र तथा समाज के प्रति अपनी निष्ठा का पताका लहरा सकते हैं। वे संसद और विधानसभाओं में अपने जुझारू वक्तृत्व और बुद्धिविलास के जरिए भ्रष्ट नेताओं को भी रास्ते पर ला सकते हैं। निःसंदेह, पत्रकारों को सुविधाभोगी बनने के बारे में तो कभी सपने में भी नहीं सोचना चाहिए। सुख-सुविधाओं का अति अभिलाषी होकर वे अपनी बौद्धिक क्षमताओं को कुंद बना देंगे। उन्हें किसी खास मत, विचारधारा, पंथ या धर्म-मजहब की पैरवी करने से भी पूरी तरह बचना होगा। उन्हें अपने मानवीय और नैतिक पक्षों को और अधिक सुदृढ़ बनाने की आवश्यकता है।  यदि वे बिकाऊ हो गए तो राष्ट्र और समाज का भला सोचने वाले ऐसे महत्वपूर्ण तबके के अभाव में जन-जीवन अपनी बेहतरी की ओर कभी नहीं बढ़ पाएगा। यदि पत्रकारों की तुलना योग-सिद्धि प्राप्त करने वाले तपस्वियों से की जाए तो ऐसा समीचीन होगा। वे भले ही हमारी तरह मनुष्य हैं लेकिन उनकी भूमिका समाज और संस्कृति का सुदृढ़ीकरण है। वे कभी भी, कहीं भी मानवता और नैतिकता के पतन को रोकने में सक्षम हैं। इन्हें अपने चरित्र और आत्मबल के माध्यम से विश्व के लिए मिसाल बनना होगा। 

न्यूज़ सोर्स : wewitness