1. उल्टा-पुल्टा
 
मैं परीक्षा पास करता हूँ
मुझे डिग्री मिल जाती है
मैं इंटरव्यू देने जाता हूँ
मुझे नौकरी मिल जाती है
 
और तब जा कर
मुझे पता चलता है
कि दरअसल
नौकरी ने मुझे पा लिया है
 
2. सूर्य के तीसरे ग्रह पर
 
 गिला
 शिकवा
 शिकायत
कुछ भी नहीं होता उन्हें
अपने कर्मों पर
 
शुद्ध अंत:करण के पीछे
जो नहीं भागते
ऐसे लोग कितने सुखी रहते हैं
सूर्य के तीसरे ग्रह पर
 
3. साठ की उम्र में
 
साठ की उम्र में लोग
उन रास्तों पर
बेहद आहिस्ता चलते हैं
जहाँ वे दोबारा नहीं लौटेंगे
 
आईनों में वे
अपने पिता जैसे दिखने लगते हैं
हालाँकि पिता की छवि के पीछे से
कभी-कभी उनके बचपन का चेहरा भी
झाँकने लगता है इस ओर
जिसे वे हसरत भरी निगाहों से
देख लेते हैं
 
उनके भीतर
कुछ--कुछ भरता रहता है
लगातार
 
जैसे ढलती शाम के वीराने में आती है
झींगुरों की गहरी आवाज़
झाड़ियों-जंगलों को भरती हुई
 
4. विस्तार
 
आकाश मेरे भीतर ही था
एक दिन मेरे मन का पंछी
खुले रोशनदान से उड़ान भर गया
 
समुद्र मेरे भीतर ही था
एक दिन मेरे मन की मछली
खुली खिड़की से गहराई में उतर गई
 
पहाड़ मेरे भीतर ही था
एक दिन मेरे मन का पर्वतारोही
खुले द्वार से निकल ऊपर चढ़ गया
 
बरसों तक मैं दो शब्दों के
बीच की ख़ाली जगह में
दुबका हुआ मौन था
एक दिन जाग कर
मैं कविता से निकला और
जीवन में भर गया
 
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5. केवल रेत भर
 
वर्षों बाद
जब मैं वहाँ लौटूँगा
सब कुछ अचीन्हा-सा होगा
पहचान का सूरज
अस्त हो चुका होगा
 
मेरे अपने
बीत चुके होंगे
मेरे सपने
रीत चुके होंगे
अंजुलि में पड़ा जल
बह चुका होगा
प्राचीन हो चुका पल
ढह चुका होगा
 
बचपन अपनी केंचुली उतार कर
गुज़र गया होगा
यौवन अपनी छाया समेत
बिखर गया होगा
 
मृत आकाश तले
वह पूरा दृश्य
एक पीला पड़ चुका
पुराना श्वेत-श्याम चित्र होगा
दाग़-धब्बों से भरा हुआ
 
जैसे चींटियाँ खा जाती हैं कीड़े को
वैसे नष्ट हो चुका होगा
बीत चुके कल का हर पल
 
मैं ढूँढ़ने निकलूँगा
पुरानी आत्मीय स्मृतियाँ
बिना यह जाने कि
एक भरी-पूरी नदी वहाँ
अब केवल रेत भर बची होगी
 
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प्रेषकः सुशांत सुप्रिय
A-5001 ,
गौड़ ग्रीन सिटी ,
वैभव खंड ,
इंदिरापुरम ,
ग़ाज़ियाबाद - 201014
प्र. )
मो: 8512070086
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