"चाँदनी कुछ कविताएँ" -- आनन्द स्वरुप श्रीवास्तव के काव्य संग्रह की समीक्षा समीक्षक - रविशंकर शुक्ल

श्री आनंद स्वरुप श्रीवास्तव समकालीन कविता के एक महत्वपूर्ण और वरिष्ठ हस्ताक्षर हैं। स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की प्रबंधन सेवा में रहते हुए भी उन्होंने हिन्दी साहित्य की सेवा का अलख, बेबाक तरीके से लगातार जगाया है। वह निश्छल व्यक्तित्व के स्वामी हैं,सरल हृदय हैं,संवेदना जो काव्य सृजन का प्रमुख घटक है,वह उनके पास बहुतायत में है।
आनंद जी का उपरोक्त काव्य संग्रह चौथा है। इसके पूर्व उनके तीन काव्य संग्रह क्रमशः "कूड़े घर का आदमी ","ज्वालामुखी होते हुए "और "नीम की दुनिया में हम "प्रकाशित हो चुके हैं। वह एक यशस्वी सम्पादक और समर्थ साहित्यकार हैं पर सृजन के प्रति समर्पित और सम्मान की अभिलाषा से अन्यमनस्क।
वह हिन्दी साहित्य के प्रति जो समर्पण भाव रखते हैं,विरलों में ही दिखाई देता है।
उपरोक्त में तो उनका सारांश परिचय,अब चर्चा उनके चौथे काव्य संग्रह पर जो "चाँदनी कुछ कविताएँ " शीर्षक से प्रकाशित है।
एक शब्द "चाँदनी " के इर्द-गिर्द इतने सारे कविताओं का सृजन बहुत ही सूक्ष्म संवेदनीय दृष्टि और विशद मौलिक चिंतन के साथ ही संभव है। यह गुरुतर और असहज कार्य है,आनंद जी ने वह कर दिखाया है।
प्रकृति के सारे घटक आरंभ से ही कवियों के प्रिय विषय रहे हैं। प्रत्येक कवि ने चाहे वह जिस किसी भाषा में कविता का सृजन कर रहा हो,कहीं विशद कहीं अल्प कुछ न कुछ अवश्य इन विषयों पर महत्वपूर्ण सृजन किया है। चाँदनी उनमें सबसे विशिष्ट है और हमारे जीवन के सरोकारों में गहराई से अन्तर्निहित है।
अब आते हैं आनंद जी के सारस्वत वाणी से निःसृत "चाँदनी कुछ कविताएँ "पर जहाँ उन्होंने तमाम संवेदना जनित जीवनाभुवों को चाँदनी के संग संलयित करके अपनी भावनाओं को शब्दाकार किया है।
चाँदनी और शरद पूर्णिमा का मनोहारी वर्णन हमारे अधिकांश संस्कृत और हिन्दी साहित्य में मिलता है। पर किसी कवि का एक संकलन में अपनी भावनाओं के संग चाँदनी का इतने भिन्न-भिन्न कोणों से प्रक्षेपण सर्वथा गूढ़ है।यह एक कठिन और गुरुतर कार्य है।
इस काव्य संग्रह में कुल पैंतीस कविताएँ हैं। दो-तीन कविताओं को छोड़कर बाकी सभी कवि की अत्यंत उत्कृष्ट प्रस्तुति हैं। कवि और उसकी कविता की महत्ता को लामबन्द करती हैं।
आगे कुछ बानगी देखिए........
'मैं तुम्हारी तरह
फैल जाना चाहता हूँ
मेरे अन्दर तुम
कोई उजास तो भरो
चाँदनी '
कवि की यह पंक्तियाँ यहाँ व्यापक अर्थ लिए हुए हैं,उसकी सोच जन कल्याण से उत्प्रेरित है। वह वसुधैव कुटुंबकम् और सर्वे भवन्तु सुखिनः की भावनाओं का पक्षधर है।
'लड़की और चाँदनी ' शीर्षक कविता कवि की महत्वपूर्ण कविताओं में से एक है
'यद्यपि चाँदनी की यात्रा
रात भर की है
और लड़की की यात्राएं
अनेक हैं
लेकिन
इस पूरे माहौल को
खुशनुमा बनाने में
दोनों की भूमिकाएं
एक हैं '
कोरोना काल में जब दुनियाँ त्राहि त्राहि कर रही थी,आनंद जी ने प्रकृति के महत्वपूर्ण घटक चाँदनी के सापेक्ष अपनी कविताओं का सृजन कर के संपूर्ण जीवन-जगत को एक कल्याणकारी संदेश दिया है, उनको आत्मीय साधुवाद। सफेदी,चाँदनी,निष्कलुष विचार यह सभी जीवन में महत्व की भूमिका निभाते हैं पर इनको संभालना दुरूह है,गंभीर कार्य है। वर्षों पहले मै रींवा मध्य प्रदेश में सेवारत था, वहां एक गोविंद नारायण पाण्डेय नाम के सुपरवाइजर थे। पाण्डेय जी अपने सारे कपड़े सफेद ही रखते थे या यूँ कहें कि यह रंग उनका सबसे प्रिय रंग था। आमतौर पर लोग ऐसे कपड़े की खरीदारी करते हैं कि वह जल्दी नहीं गंदा हो पर मुझे यह अत्यंत आश्चर्यजनक लगता था कि पाण्डेय जी उन सभी कपड़ों को सफेदी के उसी स्तर पर रखते भी थे। मैं आनंद जी के कविताओं को उसी परख पर पूर्णरूपेण खरा पाता हूँ।
कवि के इस संग्रह की कविताओं का विश्लेषण करने में तो एक पुस्तक भी कम पड़ जायेगी। कविता और साहित्य में रूचि रखने वाले हिन्दी साहित्य के पाठक वर्ग को यह काव्य संग्रह अवश्य पढ़ना चाहिए। हर कविता का आस्वाद,मन को अलग ही अनुभूति प्रदान करेगा।
कुछ पंक्तियाँ 'चाँदनी की एक किरन' कविता से ....
सर्दियाँ
जब बहुत होती हैं
और हवाएँ
हाड़ कँपा देने वाली
उस वक्त पूरे बदन में
एक सुरसुरी पैदा होती है
लेकिन उसी वक्त
खिड़कियों के शीशे और पल्लों को
झिंझोड़ती हुई चाँदनी को महसूस करना
एक गर्माहट भी पैदा करता है'
कविताएँ अनेक है और उन कविताओं में प्रयुक्त भाव-बिम्बों की प्रतिध्वनि भी अनेक हैं। इस संग्रह की कविताओं को एक बार पढ़ने से काम नहीं चलता है, यह कई पाठ की मांग करती हैं।
और अंत में उनके 'आती हुई चाँदनी ' की पंक्तियों से मै अपनी बात का समापन करता हूँ।
'चाँदनी
जब तुम आती हो तो
बरसती है एक
पारदर्शिता सर्वत्र '।
रविशंकर शुक्ल
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