उनका क्या विश्वास अब, उनसे क्या हो बात ।
‘सौरभ’ अपने खून से, कर बैठे जो घात ।।

गलती है ये खून की, या संस्कारी भूल ।
अपने काँटों से लगे, और पराये फूल ।।

राय गैर की ले रखे, जो अपनों से बैर ।
अपने हाथों काटते, खुद वो अपने पैर ।।

अपने अब अपने कहाँ, बन बैठे गद्दार ।
मौका ढूंढें कर रहे, छुप-छुपकर वो वार ।।

अपने अपनों से करें, दुश्मन-सा व्यवहार ।
पहले आंगन में उठी, अब छत पे दीवार ।।

कहाँ प्रेम की डोर अब, कहाँ मिलन का सार ।
परिजन ही दुश्मन हुए, छुप-छुप करे प्रहार ।।

भाई-भाई से करे, भीतर-भीतर जंग ।
अपने बैरी हो गए, बैठे गैरों संग ।।

टूट रहा विश्वास अब, करते अपने घात ।
मन की मन में राखिये, ‘सौरभ’अपनी बात ।।

(संग्रह 'तितली है खामोश' से। )

---  सत्यवान 'सौरभ'

न्यूज़ सोर्स : wewitnessnews