लन्दन, २७ नवम्बर २०२२: वैश्विक साहित्यिक-सांस्कृतिक मंच 'वातायन यू-के' के तत्वावधान में वैश्विक हिंदी परिवार-हिंदी राइटर्स गिल्ड - कैनेडा  के सहयोग से दिनांक २६ नवम्बर २०२२ को एक ऑनलाइन संगोष्ठी आयोजित की गयी। वातायन मंच पर इस वैश्विक संगोष्ठी-१३३ का विषय था 'दो देश दो कहानियां' तथा इस विषय पर पहले भी ८ संगोष्ठियां आयोजित की जा चुकी हैं। इस संगोष्ठी का उद्देश्य विश्व के किन्हीं दो देशों के हिंदी  कथाकारों के कहानी-पाठ को इस मंच पर प्रस्तुत करना है। इस श्रृंखला की इस नौवीं संगोष्ठी के अंतर्गत, ऑस्ट्रेलिया की कहानीकार रेखा राजवंशी और भारत के कहानीकार विमल चंद्र पांडेय ने अपनी-अपनी कहानियों का पाठ किया जबकि मंच की अध्यक्ष प्रख्यात साहित्यकार सूर्यबाला ने उनकी समीक्षा की। मंच का सञ्चालन हिंदी राइटर्स गिल्ड - कैनेडा की सह-संस्थापिका और सुप्रसिद्ध लेखिका शैलजा सक्सेना ने किया। 

कार्यक्रम के आरम्भ में आस्था देव ने इस संगोष्ठी, संगोष्ठी की अध्यक्ष सूर्यबाला और सहभागी कहानीकारों--रेखा राजवंशी तथा विमल चंद्र पाण्डेय का समीचीन परिचय दिया। उन्होंने इस तरह के अनूठे मंच की संयोजिका दिव्या माथुर के बारे में परिचयात्मक उल्लेख भी किया और कहा कि जब तक हम वैचारिक स्तर पर सत्संग नहीं करते हैं तब तक हमारी रचनात्मक ऊर्जा को अनुकूल प्रोत्साहन नहीं मिल सकेगा। 

तदनन्तर, रेखा राजवंशी ने अपनी कहानी 'चंदा मामा दूर के' का पाठ किया। इस कहानी में रेखा ने गर्भस्थ शिशु की भावनाओं को जुबान दी है। अजन्मे शिशु की इच्छा है कि वह गर्भ के इस अंधे कुँए से निकलकर शीघ्र बाहर आए और अपनी बालसुलभ क्रियाओं और मनोभावों के माध्यम से सांसारिक जीवन का आनंद ले। कहानीकार अजन्मे बच्चे की बेचैनी और माँ के प्रसवोपरांत उसकी विभिन्न प्रकार की ख़ुशी, नाराजगी, नापसंदगी तथा परिवार के विभिन्न सदस्यों के साथ रिश्तों आदि के संबंध में उसके द्वारा व्यक्त प्रतिक्रियाओं से श्रोता-दर्शकों को हतप्रभ कर देती है। गर्भस्थ शिशु इस बात से चिंतित है कि जिस घर में वह जन्म लेने वाला है, वहां उसकी पसंदगी और नापसंदगी से किसी का कुछ भी लेना-देना नहीं है। पैदा होने के बाद उसके बड़े होने तक घर-परिवार, पड़ोस और स्कूल में वह अपने ढंग से जीना चाहता है जो उसे मयस्सर नहीं हो पा रहा है। उसे अपने माता-पिता के कुछ व्यवहार के संबंध में आपत्तियां भी हैं तथा माँ के द्वारा दूसरे बच्चे को जनने पर स्वयं के प्रति असुरक्षा की भावना उसे आहत करने लगती है। किसी शिशु और बच्चे के मर्मस्थल में पैठकर उसके विचारों और भावों को व्यक्त करने वाली यह कहानी निःसंदेह अद्भुत है। 

विमल चंद्र पाण्डेय की कहानी 'पर्स' भी एक नई पृष्ठभूमि में रची गई कहानी है तथा यह कुछ-कुछ आत्मालाप जैसी भी लगती है जिसमें आद्योपांत व्यंग्यात्मक लहजा है। संभवत: यह कहानी एक आत्मकथा जैसी है जिसमें कहानी का प्रमुख पात्र अपने पर्स की सुरक्षा को लेकर अत्यंत चौकन्ना है तथा उसके इस चौकन्नेपन के बारे में उसके मित्रों को भी अच्छी तरह पता है। कहानी-लेखन की शैली संस्मरणात्मक है जिसमें पाठकों की अथक जिज्ञासा अंत तक बनी रहती है। कहानी का यह पात्र जहाँ भी, जिस भी स्थिति में अर्थात किसी यात्रा में अथवा ऑफिस में होता है, वह अपना हाथ बार-बार पैंट की पिछली पॉकेट में पर्स की मौजूदगी को टटोल-टटोल कर अपनी सजगता का परिचय देता है। उसे इस बात पर गर्व है कि उसके दोस्त भी उसकी इस सजगता के कायल हैं और जब वह एक बार रोप-वे से अपने दोस्तों के साथ जाते हुए अपने एक लापरवाह दोस्त के पर्स के नीचे गिरने पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करता है तो उसे स्वयं की सजगता पर बेहद गर्व होता है। उसे तब और भी अच्छा लगता है कि अपना पर्स खो चुका वह दोस्त अपनी पॉकेट में पड़े रुपयों को उसे सहेजने के लिए सुपुर्द करता है। उसे तो सिर्फ चौकन्ना रहना है तथा अपने चौकन्नेपन के बलबूते पर जिंदगी के सिर्फ फायदे ही उठाने है और यदि इंद्रधनुष देखने में विफल उसकी दृष्टि कमजोर हो गई है तो कोई बात नहीं। वह अपने एक परिचित डॉक्टर से मुफ्त में जांच करा कर पड़ोस के एक एमआर से दवा मंगा लेगा जिसके लिए उसे एक भी पैसा खर्च नहीं करना पड़ेगा। 

 

अपने समीक्षात्मक वक्तव्य में प्रतिष्ठित आलोचक सूर्यबाला बताती हैं कि दोनों कहानियों में एक भी शब्द अतिरिक्त नहीं है। विशेषण भी नहीं है और कहानी में ऐसा ही होना चाहिए। 'पर्स' एक पटकथा-विहीन व्यंग्यात्मक कहानी है। रेखा की कहानी पर अपनी टिप्पणी करते हुए सूर्यबाला ने कहा कि उन्होंने कल्पना और अनूठेपन को स्थान दिया है जिससे कहानी निखर गई है। यह कहानी तार्किक भी है क्योंकि अर्जुन का बेटा अभिमन्यु भी गर्भावस्था में इतना ही सजग और संवेदनशील था। दोनों कथाकारों ने सहज बातों को सहजता से अभिव्यक्त किया है जो एक लेखक के लिए कठिन कार्य है। 

संगोष्ठी के अंत में, शैलजा सक्सेना ने कतिपय प्रबुद्ध व्यक्तियों से टिप्पणियां आमंत्रित कीं। उन्होंने अध्यक्ष सूर्यबाला, प्रतिभागी कहानीकारों और दर्शकों तथा श्रोताओं के प्रति आभार प्रकट किया तथा अगले सप्ताह सुप्रसिद्ध लेखक असगर वज़ाहत पर होने वाले कार्यक्रम के बारे में सूचना दी।

 

(प्रेस विज्ञप्ति) 

न्यूज़ सोर्स : Literary Desk