लन्दन, 5 दिसंबर 2022, वातायन-यूके द्वारा आयोजित लेखक-चित्रकार श्रृंखला के अंतर्गत, असग़र वजाहत  साहब  के साहित्यिक अवदान पर चर्चा की गई तथा उनकी शख़्सियत में मौजूद चित्रकार को भी सामने रखा गया। इस संगोष्ठी के प्रस्तावक डॉ पद्मेश गुप्त ने वजाहत साहब का स्वागत करते हुए उनके बारे में संक्षेप एवं समीचीन परिचय दिया। तदनन्तर, मंच-संचालक, प्रवासी साहित्यकार तिथि दानी ने जामिया मिलिया यूनिवर्सिटी में  हिंदी विभाग के सहायक प्रोफ़ेसर, हैदर अली, को मंच सौंप दिया। हैदर जी ने बताया कि असग़र वजाहत जी समकाल में हिंदी साहित्य में नाटककार के रूप में विशेष रूप से चर्चित हैं किंतु वे विभिन्न विधाओं में प्रचुरता से लिखते  है इसलिए उन्हें हिंदी साहित्य में किस रूप में पहचाना जाएगा, कहना कठिन है क्योंकि वह कहानीकार, नाटककार, फिल्मकार और चित्रकार भी हैं। उन्होंने 'जिस लाहौर नहीं देख्या ओ जम्याइ नइ',  'गोडसे@गाँधी.कॉम' और 'महाबली' जैसे महत्वपूर्ण नाटक भी लिखे हैं। उपन्यास और आत्मकथाएं तो लिखी ही हैं।

प्रोफ़ेसर हैदर ने बताया कि वजाहत साहब को फैज़ और नासिर काज़मी ने प्रभावित किया है। प्रत्युत्तर में, वजाहत साहब ने बताया कि वे निर्मल वर्मा, फणीश्वर नाथ रेणु और राजेंद्र यादव से ने प्रभावित थे, लेखन की शुरुआत में जिनकी वह नक़ल भी करते रहे। उन्होंने रेणु जी के प्रभाव में भी एक कहानी लिखी थी, जिसे उन्होंने सार्वजनिक नहीं किया। वर्ष 1977 में, उन्होंने पंकज बिष्ट के साथ अपनी चुनिंदा कहानियों का साझा संग्रह निकाला था। अपनी कहानियों में उर्दू के प्रभाव, विशेषतः  व्यंग्य-कटाक्ष में निहित होने के संबंध में उन्होंने बताया कि लेखक जो भी पढ़ता है, उसका प्रभाव उसकी रचनाओं में रहता ही है। अपने लेखन की लिपि के बारे में उन्होंने बताया कि उन्हें हिंदी की देवनागरी लिपि ही अच्छी लगती है; इसी लिपि में वह लिखते भी हैं जबकि फिल्मों में रोमन लिपि में संवाद लिखे जाते हैं क्योंकि बहुत से अभिनेता देवनागरी लिपि नहीं समझ पाते हैं। इस संबंध में, जहाँ जैसी आवश्यकता हो, परिवर्तन और परंपरा को ध्यान में रखा जाना चाहिए। जहाँ तक नाटकों और कहानियों में पात्रों का संबंध है, लेखक उन्हें अपने साथ लेकर चलता है और तभी वह गहराई से उनके साथ जुड़ पाता है। उन्होंने बताया कि जहाँ तक उनके किसी नाटक में स्त्री-विमर्श का संबंध है, वह कहना चाहेंगे कि भारत-पाक बंटवारे में महिलाओं की राय नहीं ली गई थी। विभाजन का इतना बड़ा निर्णय पुरुषों ने लिया था। बीच-बीच में कतिपय श्रोताओं ने हस्तक्षेप करते हुए भी असगर वज़ाहत से सवाल किए जिनके  उन्होंने सटीक और सुग्राह्य जवाब दिए  

 

चित्रकला संबंधी अपने रुझान के बारे में उन्होंने बताया कि उन्हें बचपन से चित्रकारी का शौक रहा है। किन्तु, उनके परिवार में चित्रकारी करने की इजाज़त नहीं थी इसलिए बचपन में वह पेड़-पौधों की हरी पत्तियों और फूलों से रंग निकालकर चित्र बनाया करते थे। कालांतर में, जब वह अलीगढ़ आकर हॉस्टल में रहने लगे तो एक वर्कशॉप में चित्रकारी सीखने लगे। 

कार्यक्रम के अंत में दिव्या माथुर, प्रो तोमियो मिजोकामी, डॉ ल्यूदमिला खोंखोलोव, डॉ मोना कौशिक, मनोज मोक्षेन्द्र जैसे प्रबुद्ध श्रोताओं ने अपने उद्गार व्यक्त किए। तदुपरांत धन्यवाद ज्ञापन में डॉ पदमेश गुप्त ने वजाहत साहब और हैदर अली जी के प्रति आभार प्रकट किया और सभी श्रोताओं और दर्शकों को धन्यवाद संप्रेषित किया। 

 

(प्रेस विज्ञप्ति) 

न्यूज़ सोर्स : Literary Desk