'इकरा एक संघर्ष' मंच के तत्त्वावधान में अखिल भारतीय लघुकथा संगोष्ठी का आयोजन

एनसीआर, दिनांक ५-११-२०२२ : गाज़ियाबाद के 'इकरा एक संघर्ष' मंच के तत्त्वावधान में दिनांक ४ नवम्बर, २०२२ को एक अखिल भारतीय लघुकथा संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस संगोष्ठी में देश के ख्यात लघुकथाकारों ने अपनी-अपनी लघुकथाओं का पाठ किया। इस संगोष्ठी में बेगूसराय, बिहार के वरिष्ठ नाटककार और नाट्य विशेषज्ञ तथा फिल्मकार अनिल पतंग जी भी उपस्थित थे। अनिल पतंग जी ने ही संगोष्ठी की अध्यक्षता की। संगोष्ठी के अन्य सहभागी लघुकथाकार थे-सुरेंद्र कुमार अरोड़ा, डॉ. मनोज मोक्षेन्द्र, गीता चौबे, संदीप तोमर, विनय विक्रम सिंह, कुसुम जोशी, रविंद्र कान्त त्यागी, मंजुला, अंजू खरबंदा, रशीद गौरी।
मंच का संचालन कर रही अंजू खरबंदा ने सर्वप्रथम महिला लघुकथाकारों को मंच पर आमंत्रित किया। गीता चौबे ने 'पर्दा' शीर्षक से लघुकथा का पाठ किया। कुसुम जोशी ने 'क्या पर्दा', मंजुला ने 'हाथी के दांत' तथा अंजू खरबंदा ने 'हैप्पी होम' शीर्षक से लघुकथाएं सुनायीं। इन महिला लघुकथाकारों ने अपनी-अपनी लघुकथाओं में सामायिक मुद्दों और स्त्री विमर्श से संबंधित विषयों को उजागर किया तथा सामाजिक विद्रूपताओं को जी-भरकर कोसा।
अनिल पतंग ने 'बाँहों के घेरे', संदीप तोमर ने 'ज़िम्मेदारी' और 'मीडिया तंत्र', रवींद्र कान्त त्यागी ने 'पचास रूपए', मनोज मोक्षेन्द्र ने 'यूँ भी सीना चौड़ा होना चाहिए', सुरेंद्र कुमार अरोड़ा ने 'कर्तव्यबोध' तथा रशीद गौरी ने 'भूख' शीर्षक से लघुकथाओं का पाठ किया। इन लघुकथाकारों की लघुकथाएं मानवीय रिश्तों के खोखलेपन, इंसानी क्रूरता, सामाजिक उदासीनता, मानसिक दिवालियापन आदि जैसी बुराइयां का डककर मखौल उड़ाती हैं।
लघुकथा वाचन के पश्चात् इन लघुकथाकारों ने लघुकथा की संरचना और इसके भावपक्ष तथा कलापक्ष पर अपने-अपने विचार व्यक्त किए। मनोज मोक्षेन्द्र ने कहा कि लघुकथाओं में संक्षिप्तता के साथ-साथ कथानक में जटिलता नहीं होनी चाहिए तथा लघुकथा में उपकथाएं नहीं होनी चाहिए। संदीप तोमर ने हर लघुकथाकार की लघुकथाओं का बारीकी से विश्लेषण किया। इसके शिल्प के संबंध में अंजू खरबंदा ने भी व्यवहार्य टिप्स प्रदान किए। बहरहाल, शिल्प की दृष्टि से सभी कथाकारों की लघुकथाएं उत्कृष्ट थी जबकि कुछ ने प्रतीकों के माध्यम से अपने कथ्य को संपुष्ट बनाया। भाषा-शैली का प्रयोग भी विशिष्ट और मानदंडों के अनुरूप था। रवींद्र कांत त्यागी ने भी सभी लघुकथाओं में व्याप्त भाव-विचार की सराहना की।
कार्यक्रम का समापन धन्यवाद ज्ञापन से हुआ और अंजू खरबंदा ने सभी लघुकथाकारों और मंच पर उपस्थित श्रोताओं को धन्यवाद संप्रेषित किया। यह कार्यक्रम सायं ४ बजे से आरंभ होकर ६ बजे तक चलता रहा।
(Press Release)