लन्दन, २१-०८-२०२२ : दिनांक २० अगस्त २०२२ को सुप्रसिद्ध प्रवासी लेखिका दिव्या माथुर के संयोजन में 'वातायन संगोष्ठी-११५' का आयोजन किया गया। संगोष्ठियों की इस कड़ी में कोंकणी भाषा के ख्यातिल कथाकार दामोदर मावज़ो  पर चर्चा हुई तथा उनके सद्य: प्रकाशित कहानी-संग्रह 'स्वप्न प्रेमी' को चर्चा के केंद्र में रखा गया। इस पुस्तक का कोंकणी भाषा से हिंदी अनुवाद डॉ. रमिता गुरव ने किया जिसका प्रकाशन राजकमल प्रकाशन द्वारा किया गया।

 

इस वातायन संगोष्ठी की प्रस्तोता थीं--ख्यात साहित्यकार ऋचा जैन, जिन्होंने दामोदर मावज़ो और डॉ. रमिता गुरव के बारे में अपने सुपरिचित अंदाज़ में जानकारियां दीं जबकि इन दोनों व्यक्तियोँ ने बड़े विद्वतापूर्ण ढंग से न केवल उनकी बात पर दिलचस्प ढंग से प्रतिक्रया की, अपितु भारतीय भाषाओं के साहित्य-रसिया श्रोता-दर्शकों की जानकारी में भी उल्लेखनीय श्रीवृद्धि की। 

आरम्भ में, ऋचा ने कार्यक्रम का आगाज़ गोवा के एक सांस्कृतिक गीत की वीडियो रिकार्डिंग से किया तथा दर्शकों को आत्मविभोर कर दिया।

तत्पश्चात उन्होंने डॉ. रमिता को मंच पर आमंत्रित किया जिन्होंने बताया कि इस संगोष्ठी का आयोजन गोवा दिवस पर ही किया जा रहा है और जिनके आग्रह पर दामोदर मावज़ो ने गोवा और कोंकणी भाषा के संक्षिप्त इतिहास पर प्रकाश डाला। तदनन्तर, डॉ. रमिता ने दामोदर मावज़ो से अनुरोध किया कि वह अपनी रचनाधर्मिता पर प्रकाश डालें। ज्ञानपीठ-सम्मानित, कथाकार ने बताया कि उनके साहित्य का अनुवाद विभिन्न भाषाओं में हो चुका है और देश-विदेश में इसे पढ़ा जा रहा है। उन्होंने बताया कि डॉ. रमिता द्वारा उनके कहानी संग्रह 'स्वप्न प्रेमी' का बड़ा सटीक अनुवाद किया गया है।

डॉ. रमिता ने बताया कि उनकी कहानियों में गोवा के ग्रामीण परिदृश्य के साथ-साथ ईरान, सऊदी अरब जैसे स्थानों का भी वर्णन मिलता है। कथाकार दामोदर ने बताया कि वह दुबई, सऊदी अरब और जेद्दा जैसे स्थानों में रह चुके हैं और उनकी कहानियों में इन स्थानों के इम्प्रेशनों के अतिरिक्त गोवा के जीवन और वहां के रहन-सहन का जीवंत चित्रण मिलता है। वास्तव में, वह सऊदी अरब तथा दुबई की भी जीवन-शैली को गोवा की जीवन-शैली से जोड़कर देखते हैं। उन्होंने बताया कि अपने सामाजिक जीवन के बदलते परिदृश्य में आ रही चुनौतियों का सामना करने के लिए उनका साहित्य सदैव तत्पर रहा है और वह अपनी इस ज़िम्मेदारी का पालन बड़ी शिद्दत से कर रहे हैं। अपने साहित्य के जरिए वह विभिन्न समुदायों को सहिष्णुता और मैत्री-भाव से रहने का संदेश देते हैं। कहानियां कैसे कथाकार के मन में उद्भूत होती हैं, उन्होंने इस पर भी अपने विचार रखे।

तत्पश्चात, ऋचा ने राजकमल प्रकाशन के अनुपम त्रिपाठी जी से अपनी टिप्पणी देने के लिए अनुरोध किया। अनुपम ने ज्ञानपीठ दामोदर को धन्यवाद देते हुए कहा कि उनकी कहानियों में जो कथा-रस है, वह बड़ा ताकतवर है जो पाठकों को आद्योपांत बांधे रहता है। उन्होंने कहा कि भारतीय जन की एक विशिष्ट बात यह है कि वह कथाओं में ही जीता है तथा यही विशेषता दामोदर मावज़ो के बारे में भी सटीकता से बैठती है। 

 

अपने अध्यक्षीय भाषण में डॉ. अनिल शर्मा जोशी ने कहा कि दामोदर मावज़ो के व्यक्तित्व की सहजता और पारदर्शिता सभी का मन मोह लेती है। उन्होंने दामोदर मावज़ो के साथ हुई अपनी छोटी-सी  मुलाक़ात की चर्चा करते हुए कहा कि आज उन्हें लगता है कि जैसे उनकी उनसे बहुत पुरानी जान-पहचान है। उन्होंने दिव्या माथुर द्वारा ऐसे मंच सजाए जाने की भूरि-भूरि प्रशंसा करते हुए 'स्वप्न प्रेमी' के लेखक, इसकी अनुवादक और इसके प्रकाशक को भी तहे-दिल से बधाई दी।  

 

संगोष्ठी नियत समय से कोई आधे घंटे अधिक चली और दर्शकों की टिप्पणियों से ऐसे लगा कि जैसे इस गोष्ठी को इतनी जल्दी क्यों समाप्त कर दिया गया। 

 

अपने समापन उद्गार में, ऋचा जैन ने लेखक, अनुवादक और प्रकाशक के साथ-साथ यूट्यूब और ज़ूम से जुड़े श्रोता-दर्शकों को तहे दिल से धन्यवाद ज्ञापित किया। 

 

(रिपोर्ट-डॉ. मनोज मोक्षेंद्र) 

न्यूज़ सोर्स : literary Desk-wewitness