​​लंदन 15 जनवरी 2022 : वातायन-यूके, हिंदी राइटर्स गिल्ड और वैश्विक परिवार द्वारा आयोजित एक नई श्रृंखला ‘दो देश​-​दो कहानियाँ’ की शुरुआत डॉ​.​ हरीश नवल जी की अध्यक्षता में संपन्न हुई जिसमें दो जा​ने-मा​ने और पुरस्कृत लेखक: डॉ ​सुमन घई (अमेरिका) और तेजेंद्र शर्मा (ब्रिटेन)’ ने अपनी​-अपनी ​ कहानियाँ प्रस्तुत कीं। वातायन की संस्थापक, दिव्या माथुर जी के सुन्दर संयोजन, आशीष मिश्रा जी के संक्षिप्त स्वागत-भाषण और डॉ​. शैलजा सक्सेना जी के  कुशल संचालन में इस संगोष्ठी की सफलता निश्चित ही थी​;​ सो​,​ ​विद्वतजनों की प्रखर उपस्थिति में कार्यक्रम की शुरुआत की गयी।
शैलजा जी ने डॉ.सुमन घई जी का अनुकरणीय साहित्यिक परिचय देते हुए उनको कहानी पाठ के लिए मंच पर आमंत्रित किया। डॉ.सुमन घई जी ने अपनी ​अभिव्यंजनात्मक, वर्जनाओं से ओतप्रोत कहानी "पगड़ी" का पाठ बेहद ठहराव और रोचकता से किया। आपकी कहानी बेहद सजीव चित्रात्मकता के साथ हमारी आँखों में चित्रित होती रही। आपकी कहानी का मूल स्वर आत्मसंघर्ष था। प्रवासी मन कैसे दो देशों की संस्कृति के बीच गिरते-पड़ते अपनी संस्कृति को ‘पगड़ी’ के रूप में ​सिर पर सहेज ही लेता है। कहानी के किरदारों के संवाद बेहद सजीव लग रहे थे। "ये तो हमारे देश की बेटी है,​ ​हमारी पोती, बेटी या बहन कुछ भी हो सकती ​है। ​"पगड़ी​"​ कहानी में “नमक अजवाइन का पराँठा” जैसी बात बेहद अपनी-सी लगी। दूसरी कहानी ​के ​पाठ के लिए शैलजा जी ने ​​ख्यातिलब्ध कथाकार ​तेजेंद्र शर्मा जी का ​विस्तृत परिचय ​दिया तथा उन्हें आमंत्रित किया । कहानीकार ने अपनी कहानी "मैं भी तो ऐसा ही हूँ" का वाचन बेहद सजीव और रोचक ढंग से किया। जैसाकि कहानी ​के ​शीर्षक ​से ही स्वत: स्पष्ट है, आज के समय में जो ​कुछ भी ​हो रहा है​,​ चाहे ​वह सार्थक हो या निरर्थक, ​मूल्यवान या बेकार हम​ सिर्फ​ उस स्थिति के दर्शक​भर बने रहते​ हैं। ​​​ऐसे में,  मन कुछ अपनी पहचान खोने-सा लगता है। लेखक की वाचन​-​शैली इतनी जीवंत और संवादात्मक थी कि हमारे मानस पटल पर​ सब कुछ ऐसे चल रहा था जैसेकि कोई नाटक मंचित हो रहा हो। ​परदेस में रहकर अपने देश की बातों का जिक्र करना लेखक के लिए तो रोचक होगा ही, ​किन्तु उसे ​हमारे लिए सुनना बेहद रुचिकर ​हो जाता है​। दोनों प्रवासी कहानीकारों के साहित्यिक ​अवदान की प्रशंसा करते हुए शैलजा जी ​हृदयतल से प्रसन्न दिखाई दीं। 
‘पगड़ी’ और "मैं भी तो ऐसा ही हूँ" दोनों कहानियों पर डॉ. हरीश नवल जी ने अपनी समालोचनात्मक समीक्षा​ को बड़ी सिद्धहस्तता से प्रस्तुत किया। सार्थक टिप्पणियां देते हुए उन्होंने जो वक्तव्य रखा​, उससे दोनों लेखकों ​की रचनाधर्मिता और ​उनकी ​कहानियों की ​बारीकियां खुलकर सामने आईं। कहानियों की द्वन्द्वात्मकता,संवेदनशीलता,लेखकीय प्रतिबद्धता के साथ​-साथ समकालीन साहित्यिक वैचारिकी पर डॉ. नवल जी ने विस्तार से ​अत्यंत असरदार व्यख्या​ प्रस्तुत​ की। कहानी में आए विशेष कथन और वाक्यों को तो रेखांकित किया ही​, साथ में एक-एक शब्दों के ​सार्थकता को भी खोलकर उनका​ सौष्ठवपूर्ण विवेचन किया ​ताकि साहित्य के रसिया पाठकों का साहित्य के प्रति नज़रिया और ​परिपक्व​ हो ​सके​। ​निःसंदेह, ​दोनों ​कहानीकारों का लेखकीय हृदय यथार्थ चेतना, सौन्दर्य​-​बोध, ​अभिव्यंजक ​भाषा ​के प्रति रुझान श्लाघ्य रहा। 
​​अंत में​,​ कल्पना मनोरमा ने संगोष्ठी में आये सभी विद्वानों के प्रति आभार प्रकट करते हुए गोष्ठी का समापन किया।
श्रोताओं में विश्वभर के लेखक और विचारक सम्मिलित हुए, जिनमें प्रमुख हैं​ ​:​ ​पद्मेश गुप्त, डॉ. शैल अग्रवाल, आराधना झा, आदेश पोद्दार, ​​प्रो. टोमियो मिज़ोकामी, अरुणा सब्बरवाल, डॉ. तातिअना ओरान्स्किया, नारायण कुमार जी,प्रो. जगदीश दवे, डॉ. मनोज मोक्षेन्द्र, डॉ. अरुण अजितसरिया, आशा बरमन, कप्तान प्रवीर भारती, डॉ. आरती स्मित, अरुण सभरवाल इत्यादि।
 
(प्रेस विज्ञप्ति)
 
कल्पना मनोरमा 
अध्यापक एवं लेखक
न्यूज़ सोर्स : wewitness literature desk