लन्दन, ३० अक्तूबर २०२२ : दिनांक २९ अक्तूबर २०२२ को लन्दन की साहित्यिक-सांस्कृतिक संस्था "वातायन" द्वारा 'वातायन यूके प्रवासी संगोष्ठी-१२४' का भव्य आयोजन किया गया। इस संगोष्ठी के तहत प्रख्यात आलोचक, संपादक, अनुवादक और साहित्यकार निर्मला जैन के व्यक्तित्व-कृतित्व पर व्यापक चर्चा की गई। इस कार्यक्रम की अध्यक्षता दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रोफ़ेसर रेखा सेठी ने की जबकि ख्यात साहित्यकार और प्रबुद्ध विचारक डॉ. दिविक रमेश और डॉ. अचला शर्मा ने  निर्मला जैन के साहित्यिक अवदान पर विस्तृत प्रकाश डाला। इस संगोष्ठी में प्रोफ़ेसर निर्मला जैन तो उपस्थित नहीं हो सकी जबकि उनकी पुत्री पूनम कौल ने प्रोफ़ेसर निर्मला जैन के पारिवारिक जीवन के बारे में आत्मविभोर होकर बातें कीं तथा उनके अगाध मातृत्व-भाव और मानवीय गुणों का वर्णन करते हुए रो पड़ीं। उन्होंने बताया कि उनकी माँ अत्यंत अनुशासित महिला हैं। वह घर के सभी कार्यों को निष्पादित करते हुए तथा गृहिणी के रूप में अपनी ज़िम्मेदारियों का पालन करते हुए साहित्य-साधना में सदैव दत्तचित्त रही हैं तथा आज भी किताबों से घिरी रहती हैं। उनका जीवन साहसिक कार्यकलापों से भरा हुआ है। संगोष्ठी की अध्यक्ष डॉ. रेखा सेठी ने ही पूनम कौल को मंच पर आमंत्रित किया।

संगोष्ठी के प्रस्तोता पद्मश्री पद्मेश गुप्त ने संक्षेप में ही प्रोफेसर निर्मला के व्यक्तित्व तथा कृतित्व का ब्यौरा दिया जो स्वयं में समीचीन था। श्री गुप्त ने मंच पर सर्वप्रथम डॉ. दिविक रमेश को वक्ता के रूप में आमंत्रित किया। डॉ. दिविक ने कहा कि प्रोफ़ेसर निर्मला सुलभ तो लगती हैं लेकिन वह इतनी सुलभ भी नहीं हैं। जो भी व्यक्ति उनके सीमावृत्त में आ जाता है, वह हमेशा उनके आसपास बना रहता है। वह एक अनुशासनप्रिय माँ की तरह हैं। उन्होंने कहा कि जब वह उनके मार्गदर्शन में शोधरत थे तो वह उनके शोध-कार्य के प्रत्येक शब्द को बड़े गौर से पढ़ती थीं। उन्होंने आगे कहा कि वह उन सौभाग्यशाली व्यक्तियों में शुमार हैं जिस पर प्रोफ़ेसर निर्मला जी ने एक लेख भी लिखा था। वह हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं की विद्वान हैं। लेकिन वह हिंदुस्तानी बोलचाल की भाषा की हिमायती रही हैं। वह व्यक्ति या किसी भी चीज की गुणवत्ता पर हमेशा बल देती रही हैं। वह अकेली महिला आलोचक हैं जिन्हें बड़े से बड़े सम्मान से अलंकृत हो जाना चाहिए था। 

दूसरे वक्ता के रूप में डॉ. अचला शर्मा ने मंच पर अपनी उपस्थिति दर्ज़ करते हुए श्रोताओं को स्वयं द्वारा डॉ. प्रोफ़ेसर निर्मला के लिए गए साक्षात्कार का वीडियो सुनाया जिसमें उन्होंने उनसे साहित्य के अनेक पक्षों पर चर्चा की। उस साक्षात्कार में प्रोफ़ेसर निर्मला ने डॉ. अचला शर्मा के प्रत्युत्तर में कहा कि हिंदी साहित्य के पाठकों को प्रसाद की 'कामायनी', प्रेमचंद का 'गोदान', निराला की 'राम की शक्ति पूजा', कृष्णा सोबती की 'मृत्यु मरजानी' आदि अवश्य पढ़नी चाहिए। तदुपरांत, डॉ. अर्चना ने उनकी किताब का एक अंश पढ़कर सुनाया और उनकी भाषा-शैली से श्रोताओं को मुग्ध कर दिया। उन्होंने कहा कि डॉ. निर्मला मानती हैं कि हिंदी कुत्सित राजनीति की शिकार है। 

अगली वक्ता के रूप में डॉ. मीरा मिश्रा कौशिक के उद्गार को सुप्रसिद्ध लेखिका तिथि दानी ने पढ़कर सुनाया क्योंकि डॉ. मिश्रा मंच पर उपस्थित नहीं हो सकी। इसी क्रम में डॉ. पद्मेश गुप्त ने कहा कि उन्हें अचला जी की बदौलत प्रोफ़ेसर निर्मला का सान्निध्य प्राप्त हुआ था। अध्यक्ष रेखा सेठी ने कहा कि डॉ. निर्मला एक कुशल अनुवादक भी हैं और उन्होंने एक बार ३०० पृष्ठों की पुस्तक का अनुवाद सिर्फ ३० दिनों में किया था। 

कार्यक्रम के समापन पर डॉ. मनोज मोक्षेंद्र ने, संगोष्ठी की अध्यक्ष प्रोफ़ेसर रेखा सेठी; आदरणीय वक्तागण-डॉ. दिविक रमेश, डॉ. अचला शर्मा, मीरा मिश्रा कौशिक, तिथि दानी और पूनम कौल; प्रबुद्ध दर्शक-श्रोतागण-राहुल देव, डॉ. जयशंकर यादव, अर्पणा संत सिंह, मधुरिमा कोहली, अरुणा गुप्त, आशीष रंजन, ममता पंत, मलय रंजन, विनीता सहाय, विवेक गौतम, उषा, सुषमा देवी आदि के प्रति आभार व्यक्त किया। मोक्षेन्द्र ने वातायन के वार्षिक कार्यक्रम के बारे में भी सूचना दी जो दिनांक ५ नवम्बर से १० नवम्बर तक ११ सत्रों में आयोजित किया जाएगा।   

 

(प्रेस विज्ञप्ति)

 

 

 

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न्यूज़ सोर्स : Literary Desk