तुमने अपनी रोटी सेंकी आग लगाकर बाबूजी, 

हमने तो तकदीर जला ली बात में आकर बाबूजी ।

ग्रेटर नोएडा, 25 जून 2022: "पेड़ों की छाँव तले रचना-पाठ" की 88 वीं गोष्ठी पूर्व की भांति ही जून के आखिरी रविवार को सामयिक अनुभूतियों एवं सामाजिक सरोकार को समर्पित रही । साहित्यिक गोष्ठी में गेय एवं छन्दमुक्त गीत, गजल और कविताओं के द्वारा समाज की ज्वलंत समस्याओं तथा रिश्तों की खटास से जुड़ी अनुभूतियों के कई रंग बिखेरे गए । 

जाने-माने वरिष्ठ साहित्यकार एवं प्रवासी हिन्दी प्रसार अभियान के अग्रदूत  तथा वर्तमान में केंद्रीय हिन्दी संस्थान, भारत सरकार में उपाध्यक्ष पद पर आसीन माननीय अनिल जोशी के सान्निध्य में ख्यातिलब्ध गज़लकार हरिओम सिंह विमल, शायरा तूलिका सेठ, शायरा डॉ. अल्पना सुहासिनी सहित गीतकार और कवि डॉ. मनोज मोक्षेन्द्र , कवि डॉ.  ईश्वर सिंह तेवतिया तथा बृजेन्द्र नाथ मिश्र ने काव्य पाठ किया । गोष्ठी का संयोजन व संचालन अवधी भाषा के वरिष्ठ कवि अवधेश सिंह ने किया । 

वरिष्ठ कवि अनिल जोशी ने मौजूदा पत्रकारिता के नए चलन पर सवालिया निशान लगाते हुए शीर्षक “बीच बहस में” की कविता पढ़ी– “इन बहसों में किसी का किसी से प्यार दिखता नहीं / चूंकि वो कहते हैं कि चैनलों पर प्यार बिकता नहीं है /  बिकती है घृणा हिंसा उग्रता...बिकता है तमाशा / इंसानों को मुर्गों की तरह लड़ाओ और लोकप्रियता पाओ .... “

प्रारम्भ में ग़ज़लकार हरिओम सिंह विमल ने कुछ मुक्तक, शेर और मुकम्मल गज़लें पढ़ीं – “ख़ुशी को घर पे आने का इशारा दे के आते हैं / घिरे अश्कों में जो उनको किनारा दे के आते हैं / बड़ा बोझिल है दिल आओ 'विमल' कुछ काम यूँ कर लें / किसी लाचार को दो पग सहारा दे के आते हैं।"

गोष्ठी को आगे बढ़ाते हुए कवयित्री डॉ. अल्पना सुहासिनी ने अपने शेरों और गज़लों के माध्यम से कहा, “तुमने अपनी रोटी सेंकी आग लगाकर बाबूजी, हमने तो तकदीर जला ली बात में आकर बाबूजी। दीवारों में अक्सर दबकर रह जाती हैं चीख कई, जीवन में भर दिया अंधेरा रात बताकर बाबूजी।" 

शायरा तूलिका सेठ ने मानवीय रिश्तों पर चुनिन्दा शेर के साथ मुकम्म्ल गजल तरन्नुम के साथ पढ़ी – “न जाने क्या हुआ मुझको, तुझे दिल की बता बैठी / वह जो एहसास की दौलत थी, सब तुझ पर लुटा बैठी / वो तेरी याद की चिड़िया, यूं दिल में घर बना बैठी / कभी आंगन में जा उतरी, कभी खिड़की पर जा बैठी।”

गोष्ठी के संयोजक संचालक कवि अवधेश सिंह ने कठिन समय में खुद को सीख देने की बात कही और गीत पढ़ा “घनी निराशा के हाथों, आशा की गर्दन घुटती हो /  संघर्षों की बेदी पर अच्छाई जब पिटती हो / दुर्दिन लोहारन के हाथों बरछी-भाला-तलवार बनू / हमने भट्टी में लोहे-सा तपना-दहना सीख लिया / हमने भी तकलीफों में कुछ भी न कहना सीख लिया।”

कवि डॉ. ईश्वर सिंह तेवतिया ने माता पिता से दूर जा रहे बच्चों को गीत माध्यम से चेताया – “नहीं बोझ-सा हमको देखो / सच को तो स्वीकार करो तुम / चढ़े हुए उपकार उतारो / फिर कोई उपकार करो तुम / हर जज़्बात ताक पर रख दो / करो चलो व्यापार करो तुम / छोड़ो फ़र्ज़-वर्ज़ की बातें / चुकता सिर्फ उधार करो तुम।"

गोष्ठी को सकारात्मक दिशा में आशा बढ़ाते हुए बृजेन्द्र नाथ मिश्र ने प्रेरक व पावस ऋतु की कोमल भाव के गीत पढ़े–“पवन हो  प्रतिकूल / पर नाविक कब  है हारा / बढ़ चलो प्रगति पथ पर / हो तेरा संकल्प न्यारा।"

वरिष्ठ कवि मनोज मोक्षेन्द्र ने एक ग़ज़ल सुनाकर, एक गीत को सुमधुर आवाज में पेश किया--“सफर में मैं अभी हूँ, ठोकरों की बात मत कर, अंधेरे साथ देंगे रोशनी अफरात मत कर" ... और गीत की शुरुआती पंक्तियाँ इस प्रकार थीं--"मेरे गीतों में यही अनुताप है / धुएं की वह छोर अब अज्ञात क्यों है।"

गोष्ठी का सीधा प्रसारण फेसबुक के माध्यम से किया गया जिसे सैकड़ों- हजारों श्रोता-दर्शकों ने देखा-सुना जिनसे ढेरों टिप्पणियाँ प्राप्त हुईं । बहुसंख्यक श्रोताओं द्वारा जिसे देखा-सुना गया, उनमें प्रमुख हैं-- संजय कुमार मिश्र, बी एल गौड़, गीता शाक्य, प्रेम चंद्र शाक्य, शमशाद चौधरी, सत्या त्रिपाठी, अशोक मुसाफिर, अनीता सिंह, पिंटू सैनी, सुरेन्द्र अरोरा एवं ब्रजेन्द्र नाथ मिश्र आदि । 

 

 

 

(अवधेश सिंह संयोजक--संपर्क वार्ता - 9450213555)

न्यूज़ सोर्स : wewitness literary team