आर्यावर्त की हरित वसुंधरा न केवल वैश्विक संस्कृति और सभ्यता की उन्नायक रही है, अपितु इसने संपूर्ण एशिया के सर्वतोमुखी उन्नयन में समस्त  मानव-समाज को अपनी दृष्टि और बेहतरी के लिए ऋणी बनाया है। जब हम आर्यावर्त की बात करते हैं तो इसकी परिधि में सुदूरवर्ती समस्त पर्वतीय, पठारी और मैदानी भू-भाग समाहित हो जाते हैं। इस तरह जब हम नेपाल, भूटान, बांग्लादेश, बर्मा, पाकिस्तान, मलेशिया और इंडोनेशिया जैसे हिंदुस्तान से टूटे हुए देशों की बात करते हैं तो वहां होने वाले सकारात्मक परिवर्तनों के लिए हम आर्यावर्त के मुख्य भू-भाग अर्थात आधुनिक हिंदुस्तान में पोषित सिद्धांतों और विचारों को उत्तरदायी मानते हैं क्योंकि हमारे प्राचीन धर्मग्रन्थ मात्र कपोलकल्पित तथ्यों का पिटारा नहीं हैं अपितु वे सहस्रों वर्षों के दौरान अनुभवों से पके हुए सृजन के मूल

 सिद्धांतों के संकलन हैं जिनका लोहा नासा और यूनेस्को ने भी माना है। आज हम ऐसे ही कुछ नए वैज्ञानिक प्रतिपादनों की चर्चा करेंगे जिन्हें कुछ युवा वैज्ञानिक शोधकर्ताओं ने अपने नवप्रयोगों की कसौटी पर खरा उतारने का दावा किया है। ये नौजवान वैज्ञानिक हैं - आरिफ अली और दिव्यराज सपकोटा जो नेपाल के नागरिक हैं। वे जिस नए वैज्ञानिक सिद्धांत पर शिद्दत से काम कर रहे हैं, उनके संबंध में उन्होंने दावा पेश किया है कि वे अपने अध्ययन और शोध से निकलने वाले प्रयोग में सफल होने वाले हैं। वे जिस प्रयोग को अमली जामा पहनाने वाले हैं, उसका आधार हमारे अति प्राचीन ग्रन्थ भगवत गीता और अथर्ववेद हैं। वेद जिसका अर्थ ज्ञान है, वह आज वैज्ञानिक अनुसंधानों का आधार बनता जा रहा है तथा कई मामलों में नासा के वैज्ञानिकों का मानना है कि प्राचीन भारतीय, आज के भारतीयों की तुलना में कहीं अधिक बुद्धिमान और प्रगतिशील थे क्योंकि मौजूदा दौर में भारतीय अपनी प्राचीन बौद्धिक विरासत को भूलते जा रहे हैं।

जिस शोध अर्थात "थ्योरी ऑफ एवरीथिंग" में आरिफ अली और दिव्यराज सपकोटा दत्तचित्त हैं, उनका कहना है कि  विश्वभर के वैज्ञानिक काफी समय से इस सिद्धांत पर काम कर रहे हैं लेकिन वे अभी तक इसमें सफल नहीं हो पाए हैं। यह सिद्धांत क्या है, इसके विषय में हमें यहाँ जान लेना आवश्यक होगा। वास्तव में, इस सिद्धांत में भौतिक विज्ञान की अनेक वर्तमान मान्यताओं को समेकित करते हुए उन्हें परिष्कृत किया गया है। इसके प्रथम चरण की सफल प्रस्तुति पहले नेपाल के भद्रपुर नगरपालिका में की गई थी तथा दो सैद्धांतिक अध्ययनों  और प्रयोगों को "टाइम डायलेशन इन फोर्थ स्पेशल डायमेंशन" एवं "ग्रेविटी इन फोर्थ स्पेशल  डायमेंशन " को अंतरराष्ट्रीय शोध कार्य  के रूप में प्रकाशित किया गया है। दोनों युवा वैज्ञानिक इस अध्ययन को लेकर इतने उत्साहित हैं कि वे हाल ही में नयी दिल्ली भी आए थे। 

भौतिक विज्ञान में पहले से एक विषय चर्चा में रहा है। बताते चलें कि कोई एक शताब्दी से इस बारे में चर्चा होती रही है कि  "थ्योरी ऑफ एवरीथिंग" सिद्धांत का उपयोग  समयप्रकाशसापेक्षताब्लैक होल, ब्रह्मांड और अन्य क्षेत्रों के विश्लेषण में किया जा सकता है। यह भौतिकी का चौथा आयाम है जो बहुत पुराना नहीं है। जैसाकि माना जाता है, इस शोध-अध्ययन में कई वैज्ञानिक कारणों का अंतर बताया जा रहा है। इस विषय पर कार्य कर रहे वैज्ञानिकों को प्रमुखता से रेखांकित किया जा रहा है क्योंकि यह है ही इतना महत्वपूर्ण। यह सिद्धांत अन्य मौजूदा सिद्धांतों से इस अर्थ में भिन्न है कि यह चौथे सतह आयाम का विश्लेषण करके हर दूसरे सिद्धांत का पूरक बनता है। एक सामान्य अर्थ में, अन्य सिद्धांतों के निष्कर्ष केवल एक ही संदर्भ और अनुप्रयोग से जुड़े होते हैं, जबकि इस सिद्धांत को समय, गति, ब्लैकहोल और पूरे ब्रह्मांड जैसे सिद्धांतों के विश्लेषण में सुगमता से उपयोग करने और सत्यापित करने में सक्षम माना जाता है। 

बहरहाल, आरिफ अली और दिव्यराज सपकोटा द्वारा किए गए अध्ययनों के दोनों लिंक नीचे दिए जा रहे हैं जिन्हें पढ़कर आसानी से समझा जा सकता है :-

१. "टाइम डायलेशन इन फोर्थ स्पेशल डायमेंशन"-  https://osf.io/czg2a

२. "ग्रेविटी इन फोर्थ स्पेशल डाइमेंशन"https://osf.io/ms5a7


यहाँ इन दोनों युवा वैज्ञानिकों के बारे में एक परिचयात्मक ब्यौरा देना भी समीचीन होगा। आरिफ अली का जन्म बिहार के बेतिया जिले में वर्ष १९९२ में हुआ था जबकि दिव्यराज सपकोटा वर्ष १९९४ में नेपाल के शिवगंज में पैदा हुए थे। आरिफ ने हिन्दू शास्त्रों और धर्मग्रंथों का गहन अध्ययन करना शुरू किया और उनके द्वारा अध्ययन की गई लगभग १०० पुस्तकों में अथर्ववेद भी शामिल है। आरिफ हिन्दू जीवन शैली से अत्यधिक प्रभावित हैं और उन्होंने नृविज्ञान का भी गहन अध्ययन किया है जिसको आधार बनाते हुए उन्होंने अन्य धर्मों का भी अध्ययन किया।

उन्होंने अपने अध्ययन-क्षेत्र में 'परियोजना ब्रह्माण्ड' को शामिल किया है जिसमें सपकोटा भी साथ-साथ रहे हैं । उन्होंने संरचनात्मक अभियंत्रण विषय में विजयवाड़ा, भारत से मास्टर्स डिग्री प्राप्त की है। अपने अध्ययन के दौरान उन्हें पता चला कि आईन्स्टीन के सामान्य सापेक्षता का सिद्धांत दोषपूर्ण है। वह निकोला टेस्ला के प्रभाव में उनके अनुयायी हैं जिन्होंने वर्ष १९३५ में ही 'न्यूयार्क टाइम्स' में प्रकाशित अपने लेख में बता दिया था कि आईन्स्टीन का सिद्धांत खरा नहीं है। बहरहाल, दोनों युवा वैज्ञानिकों आरिफ अली और  दिव्यराज सपकोटा ने अपने अध्ययन के लिए नासा समेत विश्व के अनेक प्रोफेसरों और वैज्ञानिकों के साथ गहन चर्चा की थी। राष्ट्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी अकादमी ने भी उनके अध्ययन की समीक्षा करते हुए प्रशंसा की है। आज अपने अध्ययनों और शोधों के लिए दोनों वैज्ञानिक वैश्विक स्तर पर चर्चित हैं जिनसे सारी दुनिया को बड़ी उम्मीदें हैं। 

 

न्यूज़ सोर्स : wewitnessnews