भोपाल के बैरसिया में गायों की मौत ने गौशालाओं के संरक्षण और संवर्धन के सरकार के तमाम दावों को खोखला साबित कर दिया है। गौशालाओं में चारा-पानी और देखभाल के अभाव में आए दिन प्रदेश के किसी न किसी जिले में गायें दम तोड़ रही हैं। मप्र पशु संवर्धन बोर्ड के उपाध्यक्ष एवं गोपालन कार्य परिषद के अध्यक्ष स्वामी अखिलेश्वरानंद गिरी ने कहा कि 20 रुपए में गाय का पेट नहीं भरता है। कोरोना के चलते यह राशि भी पिछले दो साल में गौशालाओं को मिलने में देरी हुई है।

उन्होंने कहा- हमने बैरसिया में गायों की मौत की रिपोर्ट 15 दिन में विभाग से मांगी है। यह घटना कुप्रबंधन के कारण होना प्रतीत होता है। गौशाला संचालक की लापरवाही उजागर हुई है। एक दिन में गाय का कंकाल नहीं बनता है। लंबे समय से लापरवाही का परिणाम है कि इतनी बड़ी संख्या में गायें मर गईं। पशु चिकित्सक क्या कर रहे थे? इसकी जांच होगी। गौशाला संचालक के NGO का रजिस्ट्रेशन 2003 में हुआ था। तब से अब तक कितनी शिकायतें हुईं? इसकी पूरी जांच कराई जा रही है। अखिलेश्वरानंद ने बताया कि मंगलवार को आदेश दिए हैं कि प्रदेश की गौशाला संचालकों को चारे की राशि हर हाल में 15 दिन के अंदर उपलब्ध कराई जाए।

गौशालाओं के संचालन के लिए पूरी तरह सरकार पर निर्भर नहीं होना चाहिए। सामाजिक संस्थाओं को भी आगे आने की जरूरत है। यदि एक व्यक्ति एक गाय के लिए 10 रुपए प्रतिदिन के हिसाब से जनभागीदारी हो जाए, तो साल में 3650 रुपए होता है। इसके लिए गौ संवर्धन बोर्ड ने ऑनलाइन दान की व्यवस्था की है।

मनरेगा से दिए 900 करोड़, फिर भी गौशालाएं कुप्रबंधन की शिकार

अखिलेश्वरानंद ने बताया कि राज्य सरकार ने प्रदेश में गौशालाओं के निर्माण के लिए मनरेगा से 900 करोड़ रुपए का बजट दिया। इसी तरह 12,500 एकड़ यानी हर गौशाला के साथ 5-5 एकड़ जमीन भी उपलब्ध कराई ताकि गाय को चारा उपलब्ध हो सके, लेकिन यह व्यवस्था कुप्रबंधन की शिकार हो रही है। इस जमीन का उपयोग नहीं हो पा रहा है।

2.55 लाख गाय, बजट सिर्फ 60 करोड़

प्रदेश में अभी 627 प्राइवेट और मुख्यमंत्री गौसेवा योजना से बनी 951 गौशालाओं में करीब 2 लाख 55 हजार से अधिक गायें हैं। इनके साल भर खाने के लिए ही करीब 184 करोड़ की आवश्यकता है, लेकिन सरकार की ओर से इतना बजट कभी दिया ही नहीं गया। 2018 से अब तक की बात करें तो कमलनाथ सरकार ने गौशालाओं के लिए 150 करोड़ रुपए का बजट निर्धारित किया, जबकि 2021-22 में शिवराज सरकार ने 60 करोड़ का ही प्रावधान किया। यानी सरकार चाहे कांग्रेस की हो या BJP की, दोनों ने ही गौशालाओं की जरूरत के मुताबिक बजट नहीं दिया।

अशोकनगर में भूसा नहीं, गायें भूखे मरने की कगार पर

अशोकनगर में इस समय 32 गौशालाएं संचालित हो रही हैं। इनमें ज्यादातर में गायों को भरपेट भोजन तक नहीं मिल पा रहा। गौशालाओं का संचालन स्वसहायता समूह कर रहे हैं। करीब 20 दिन पहले जनपद CEO ने राजपुर की गौशाला का निरीक्षण किया था, तो उस समय वे भी यहां के हालात देखकर दंग रह गए थे। क्योंकि भूखे रहने के कारण गायें बीमार थीं। एक गाय तो उन्हें मृत अवस्था में मिली थी। इस पर उन्होंने नाराजगी भी व्यक्त की थी। साथ ही, जांच के आदेश दिए। अशोकनगर जिला पंचायत के CEO बीएस जाटव स्वीकार करते हैं कि गौशाला के लिए बजट रुक-रुक कर आता है। अभी बजट आने में चार-माह का गेप हो गया है।

3 साल में बंद हो चुकीं 200 गौशालाएं

सरकार या समाज से अपेक्षित सहयोग नहीं मिल पाने के कारण प्रदेश में 200 गौशालाएं बंद हो चुकी हैं। बीते एक साल में गौ-संवर्धन बोर्ड ने ही 3 गौशालाएं बंद कर दीं। इनमें एक भोपाल और दो देवास जिले की हैं। पशुपालन विभाग ने प्रदेश में संचालित 627 प्राइवेट गौशालाओं में से 25 का हाईटेक होने का दावा किया था। जिसके तहत गोबर से गौकाष्ठ बनाने की एक मशीन आई थी। लेकिन बिजली नहीं होने से एक महीने बाद ही कई मशीनें वापस चली गईं।

वन विभाग ने 25 गौशालाओं की राशि सरेंडर कर दी

वन विभाग को भी 50 गौशालाओं के निर्माण का टारगेट मिला था। प्रत्येक गौशाला के निर्माण के लिए 30-30 लाख रुपए स्वीकृत भी हुए, लेकिन वन विभाग 25 गौशालाओं को बना ही नहीं पाया। इसके पीछे राजस्व विभाग द्वारा जमीन मुहैया नहीं कराने जैसे अन्य कारण रहे। इसके बाद वन विभाग ने 25 गौशालाओं की रकम सरेंडर कर दी। वन विभाग बीते ढाई साल में सिर्फ 10 गौशालाएं ही बना पाया, जिनमें गौवंश है। इनका संचालन पंचायत कर रही हैं। 15 गौशालाएं निर्माणाधीन हैं।

मुख्यमंत्री के निर्देश हवा में...

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 4 जनवरी को पशुपालन एवं डेयरी विकास विभाग की समीक्षा बैठक में विभाग के अधिकारियों से पूछा कि जब प्राइवेट डेयरी संचालक लोन लेकर भी ज्यादा कमाई कर लेते हैं तो हमारी गौशालाएं सरकारी सहायता मिलने के बाद भी कम फायदे में क्यों हैं? उन्होंने कहा कि जब तक हम गौशालाओं को अपने पैरों पर खड़ा नहीं करेंगे इनकी दशा सुधारना चुनौती बनी रहेगी। उन्होंने विभाग के अधिकारियों से पूछा कि गौशालाओं को बिना अनुदान के चलाने के लिए क्या प्रयास किए जा सकते हैं? गौशालाओं का संचालन व्यवस्थित ढंग से हो, उन्हें कैसे आत्मनिर्भर बनाया जाए? अब बाजार में गोबर, गौ-मूत्र से कई उत्पाद बन रहे हैं, इसलिए गाय के गोबर और गौमूत्र के नए-नए प्रयोग करें।