झीरम मामले में हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को जांच की अनुमति दे दी है। इससे इस मुद्दे को लेकर राज्य का राजनीतिक पारा फिर चढ़ने लगा है। भाजपा ने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और राज्य के आबकारी मंत्री कवासी लखमा से इस्तीफे की मांग कर दी है। सीएम और मंत्री का इस्तीफा मांगने के पीछे भाजपा का तर्क यह है कि मंत्री लखमा का घटना के चश्मदीद हैं। झीरम घाटी में जब नक्सलियों ने कांग्रसे के काफिले पर हमला किया तब लखमा भी वहां मौजूद थे। वहीं, मुख्यमंत्री बघेल घटना के बाद से लगातार कह रहे हैं कि उनके पास घटना के संबंध में पुख्ता सबूत हैं। कांग्रेस इस घटना को राजनीतिक षडयंत्र बताती आ रही है। भाजपा विधायक अजय चंद्राकर का तर्क है कि ऐसे में राज्य की एजेंसी को अपनी जांच के दौरान मुख्यमंत्री और मंत्री से भी पूछताछ करना होगा। चंद्राकर ने कहा कि इसीलिए राज्य के द्वारा जांच शुरू होने के पहले दोनों का इस्तीफा होना चाहिए। 

झीरम घाटी में कांग्रेस नेताओं के काफिले पर हुए हमले को कांग्रेस राजनीतिक षडयंत्र मानती है। इस घटना में प्रदेश कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष नंद कुमार पटेल, पूर्व नेता प्रतिपक्ष महेंद्र कर्मा, पूर्व विधायक उदय मुदलियार और पटेल के पुत्र सहित करीब 29 नेताओं की मौत हो गई थी। घटना में घायल हुए पूर्व केंद्रीय मंत्री विद्याचरण्ा शुक्ल की भी बाद में इलाज के दौरान मौत हो गई थी। इसी वजह से कांग्रेस इसे राजनीतिक षडयंत्र मानती है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल कह चुके हैं कि अब तक हुई जांचों में राजनीतिक षडयंत्र की जांच नहीं हुई है।कांग्रेस की मांग पर पूर्ववर्ती भाजपा सरकार ने सीबीआइ को भी मामले की जांच के लिए प्रस्ताव भेजा था, लेकिन ब्यूरो ने जांच करने से मना कर दिया।

प्रदेश की सत्ता में आने के बाद कांग्रेस सरकार ने सबसे पहले जो तीन फैसले लिए थे उनमें झीरम की जांच के लिए एसआइटी का गठन भी शामिल था। गृह विभाग ने दो जनवरी 2019 को इस संबंध में आदेश जारी किया। इसमें तत्काली बस्तर आइजी विवेकानंद को एसआइट का प्रमुख बनाया गया। उनके साथ टीम में तत्कालन डीआइजी नक्सल आपरेशन और मौजूदा बस्तर आइजी पी. सुंदर राज (डीआईजी नक्सल अभियान) के साथ एमएल कोटवानी, गायत्री सिंह, राजीव शर्मा, आशीष शुक्ला, प्रेमलाल साहू, नरेंद्र शर्मा, एएन चतुर्वेदी, डा. एमके वर्मा को शामिल किया गया था।