भोपाल । मध्यप्रदेश विद्युत मंडल की उत्तरवर्ती कंपनियों में 35 से 40 हजार आउटसोर्स कर्मचारियों के भरोसे विद्युत व्यवस्था चल रही है। विद्युत लाइनों एवं उपकेन्द्रों का विस्तार युद्ध स्तर पर किया जा रहा है, लेकिन न तो कर्मचारी बढ़ाए जा रहे हैं, न ही आउटसोर्स कर्मचारियों का वेतन। प्रति माह नियमित कर्मचारी सेवानिवृत्त हो रहे हैं, उनके स्थान पर विद्युत कम्पनियों में कार्यरत आउटसोर्स कर्मचारियों को भर्ती किया जा रहा है।
विद्युत कंपनी टेंडर निकालकर ठेका कंपनियों के माध्यम से भर्ती कर रही है। इन कर्मचारियों से 8 से 10 हजार रुपए अल्प वेतन पर काम कराया जा रहा है। ठेकेदार द्वारा कर्मचारियों को समय पर वेतन नहीं दिया जाता है, न ही अन्य सुविधाएं दी जाती हैं। जिससे कर्मचारियों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।
आउटसोर्स कर्मचारियों को 8 से 10 हजार रुपए वेतन दिया जा रहा है। जबकि श्रम कानून के तहत प्रति पांच वर्ष में वेतन पुनरीक्षण किया जाना चाहिए, लेकिन वर्ष-2014 के बाद से नहीं किया गया है। मप्र सरकार के द्वारा श्रमकानूनों के तहत 2019 में वेतन पुनरीक्षण के लिए न तो कमेटी बनाई गई, न ही वेतन बढ़ाया गया है। जबकि श्रम कानून के तहत वेतन पुनरीक्षण कर राजस्थान, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश सहित अन्य राज्यों ने आउटसोर्स कर्मचारियों का मिनिमम वेज 21 हजार रुपए तक कर दिया है।
विद्युत कंपनियों में कार्यरत आउटसोर्स कर्मचारी विद्युत व्यवस्था बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। नियमित कर्मचारियों की कमी के कारण आउटसोर्स से ही उपकेन्द्र संचालन, लाइन मेंटेनेंस, एफओसी, राजस्व संग्रहण आदि कार्य करवाएं जा रहे हैं। कार्य के दौरान आउटसोर्स कर्मचारी की मौत पर सिर्फ 4 लाख ही क्षतिपूर्ति दी जा रही है।
मप्र संविदा ठेका श्रमिक कर्मचारी संघ के पदाधिकारियों का कहना है कि आउटसोर्स कर्मचारियों से नियमित कर्मचारियों के समान कार्य लिया जाता है, तो दुर्घटना होने पर आश्रित परिवार को अनुकंपा नियुक्त व अन्य सुविधाएं नियमित कर्मचारियों की तरह ही दी जाएं। इसके अलावा अन्य समस्याओं को लेकर संगठन द्वारा 5 नवंबर को रैली निकालकर ऊर्जा मंत्री के ग्वालियर स्थित सरकारी बंगले पर धरना देकर ज्ञापन दिया जाएगा।