लन्दन: "वातायन-यूके" के बैनर तले दिनांक: ०५ मार्च २०२२ को बहु-आयामी शख्सियत श्री कृष्ण टंडन जी के ग़ज़ल-संग्रह "गुलदस्ता" का लोकार्पण किया गया और विशेष रूप से उनके ग़ज़लों पर चर्चा की गई। श्री टंडन का कई विधाओं में दखल है। वह वरिष्ठ आकाशवाणी उद्घोषक और नाट्यकर्मी रह चुके हैं तथा ब्रिटिश ब्रॉडकास्टिंग कॉर्पोरेशन में भी १३ वर्षों तक  कार्यरत रहे हैं। नाट्य विधा में उनका योगदान सदैव स्मरणीय रहेगा क्योंकि उन्होंने अपना एक थियेटर भी आरम्भ किया है और एक कुशल नाट्य निर्देशक भी रह चुके हैं। उन्होंने बॉलीवुड में भी काम किया है।

इस संगोष्ठी की अध्यक्षता वरिष्ठ कथाकार श्री तेजेन्द्र शर्मा ने की तथा योग-शिक्षक और लेखिका सुश्री इंदिरा आनन्द ने श्री टंडन के बारे में सारगर्भित परिचय दिया। उन्होंने कहा कि श्री टंडन के बहु-आयामी व्यक्तित्व को कुछ शब्दों में वर्णित करना असंभव-सा लगता है। उन्होंने अपनी ग़ज़लों में गहनतम भावनाओं को शब्दों में ढालकर हमें आश्चर्य में डाल दिया है। उन्होंने श्री टंडन की कुछ बेहद मार्मिक पंक्तियों काउदहारण देकर श्रोताओं को आत्मविभोर कर दिया। उनकी चंद ग़ज़लों की पंक्तियाँ भी उद्धृत कीं जो इस प्रकार हैं: 

"बिन कहे, समझे मेरी बात तो कुछ बात बने, बात कहनी पड़े तो बात में क्या रखा है" 

"यूँ ही आसां नहीं लफ़्ज़ों को सियाह कर देना, खून कागज़ पे आ जाए तो ग़ज़ल होती है"

"ग़ज़ल तो आंसुओं में भी डूब कर खूबसूरत थी मगर, डूबी जिगर के खून में जब कैसा निखार आया" 

तत्पश्चात डॉ. मुनव्वर अहमद कण्डप ने बताया कि उन्होंने "गुलदस्ता" की कई गज़लें पहले भी पढ़ी हैं। एक ग़ज़ल की आरम्भिक पंक्ति कुछ इस प्रकार है "दिलजला दिल के दाग़ जलते रहे, उम्र भर ये चिराग जलते रहे।" उन्होंने श्री टंडन की रचनाधर्मिता को महिमामंडित करते हुए अपनी स्वरचित एक नज़्म भी सुनाई जो इस प्रकार है: "क्या बात है कृशन जी की इस किताब की, ताबीर ये भी खूब है उनके ख्वाब की।" 

हिना बक्शी जी ने कहा कि इस किताब की कविताएं तो अच्छी हैं ही, लेकिन मैंने उनकी जो कविताएं पहले पढ़ी हैं, वे और भी अच्छी हैं। उन्होंने टंडन जी को ऐसी बढ़िया ग़ज़लों के लिए शुभकामनाएं दीं। थियेटर-कर्मी और टंडन जी के सहयोगी रह चुके ज़नाब जहानजेब सफी ने कहा कि श्री टंडन जी की  शख्सियत बहु-आयामी रही है तथा उनके बारे में कहाँ से बात शुरू की जाए, यह बेहद मुश्किल है।  उन्होंने श्री टंडन के साथ साझा किए गए मंचों का उदहारण दिया और कहा कि उन्होंने अपने शब्दों के खजाने को अभी तक दफ़्न क्यों रखा। उन्होंने आगे कहा कि उनकी रचनाएं किसी संगीतकार से नहीं बच पाएंगी तथा उनकी ग़ज़लों को संगीतबद्ध भी किया जाएगा। 

तत्पश्चात श्री कृष्ण टंडन ने वक्ताओं के प्रति आभार व्यक्त किया और कहा कि उन्हें विश्वास ही नहीं हो रहा है कि प्रबुद्ध वक्ताओं ने उनके बारे में इतना प्रशस्तिगान किया है और इस किताब को लिखकर वह मानते हैं कि कुदरत ने ही उनसे यह करिश्मा कराया है। उन्होंने अपनी चंद ग़ज़लों का सस्वर पाठ भी किया। अपने अध्यक्षीय भाषण में श्री तेजेन्द्र शर्मा ने कहा कि काफी समय से ग़ज़ल का क्षेत्र खाली चल रहा था जिसे भरने की कोशिश टंडन जी ने की है। उन्होंने आगे कहा कि इस बात से सभी को तसल्ली होगी कि टंडन जी की यह किताब द्विभाषी रूप में अर्थात हिंदी और उर्दू में छपकर आई है। अनेकानेक सुप्रसिद्ध ग़ज़लकारों के चले जाने का बाद श्री टंडन जी का ग़ज़ल की दुनिया में आना सभी के लिए संतोष की बात है तथा उनकी शायरी ज़िदगी से जुड़ी हुई है जिससे सत्य उद्घाटित होता है। कार्यक्रम का समापन करते हुए पद्मेश गुप्त ने कहा कि श्री शर्मा ने ग़ज़ल के इतिहास समेत अनेकानेक बिंदुओं को समेटा है और अर्थपूर्ण वक्तव्य दिया है। कार्यक्रम के प्रस्तोता--मशहूर साहित्यकार तथाऑक्सफ़ोर्ड बिज़नेस कॉलेज के निदेशक डॉ. पद्मेश गुप्त ने ज़ूम और यू-ट्यूब से जुड़े हुए श्रोता-दर्शकों को धन्यवाद दिया और प्रबुद्ध वक्ताओं के विचारों की सराहना की। 

 

(प्रेस विज्ञप्ति)

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