लन्दन, दिनांक ०४ जून, २०२३: वैश्विक साहित्यिक और सांस्कृतिक संगोष्ठियों के अंतर्गत ०३ जून २०२३ को प्रख्यात साहित्यकार दिव्या माथुर के संयोजन में लन्दन के 'वातायन मंच' द्वारा प्रवर्तित 'वातायन संगोष्ठी - १४९' का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में 'संगम सिंगापुर : हिंदी संस्था' तथा 'वैश्विक हिंदी परिवार' की विशेष भागीदारी रही।  इस अवसर को 'लोकगीत शृंखला - १३' के रूप में भी रेखांकित किया गया। 

यह संगोष्ठी महाकवि कबीर दास के जन्म-दिवस के उपलक्ष्य में उनके विभिन्न सामाजिक और साहित्यिक आयामों को स्मृतिशाला में संजोने के लिए आयोजित की गई थी। इसमें विशेष उपस्थिति रही, लब्ध-प्रतिष्ठ गीतकार डॉ. बुद्धिनाथ मिश्र की और साथ में थे-सुप्रसिद्ध शायर और लेखक श्री विज्ञान व्रत। ब्रिटेन में भारतीय उच्चायोग की अताशे, सुश्री नंदिता साहू भी मंच पर उपस्थित थीं;  किन्तु, अस्वस्थता के कारण वह अपनी वंदना का गायन प्रस्तुत नहीं कर सकीं। डॉ. मिश्र ने इस संगोष्ठी की अध्यक्षता की। 

कार्यक्रम का आगाज़ करते हुए सिंगापुर की सुपरिचित लेखिका और मंच-संचालिका सुश्री आराधना झा श्रीवास्तव ने निर्गुण भक्ति-धारा के सशक्त कवि कबीर दास के दोहे 'गुरु गोविन्द दोऊ खड़े काके लागूं पाँव...' के सस्वर सुवाचन से किया। इस संगोष्ठी के श्रोता-दर्शकों में भी देश-विदेश के प्रबुद्ध व्यक्तियों और साहित्यकारों की गरिमामयी उपस्थिति रही जिनमें प्रमुख नाम हैं - टोमियो मिज़ोकामी, अरुण सभरवाल, डॉ. राजीव श्रीवास्तव, आशा बर्मन, कैप्टेन प्रवीर भारती, पांडेय सरिता, शैल अग्रवाल, डॉ. सुरेश कुमार मिश्र, शैली, शन्नो अग्रवाल, शुभम त्रिपाठी, के. रेसिस्टर, आदेश गोयल, मधु चौरसिया, आराधना कुमारी आदि।

आराधना झा श्रीवास्तव ने संगोष्ठी का संचालन करते हुए संत-कवि कबीर के जीवन के बारे में संक्षिप्त परिचय दिया और उसके पश्चात् लन्दन की सुपरिचित कवयित्री तिथि दानी को कविता-पाठ के लिए आभासी मंच पर आमंत्रित किया। उन्होंने 'माया आज तक' शीर्षक से अपनी कविता का वाचन किया जिसमें उन्होंने वर्तमान वैश्विक समाज की हिंसक और आपत्तिजनक स्थितियों पर बलपूर्वक प्रहार किया है। तदनन्तर, स्वनामधन्य कवयित्री डॉ. प्रभा मिश्रा ने कबीर के दोहे 'मन के मते न चलिए, मन के मते अनेक...' का पाठ करते हुए अपनी मुक्तक कविताओं का पाठ किया। एक मुक्तक कविता 'खुशबू' विषय पर थी जिसकी पहली पंक्ति थी-'खुशबुएँ जिनके मुकद्दर में हुआ करती हैं, खुद-ब-खुद फूल ढूंढने निकलते हैं...' उसके बाद उन्होंने एक गीत  'अपना पानी बचाकर रखते हैं कँवल/और गुलाबों को पानी की दरकार है' सुनाया। आराधना झा के अनुरोध पर तिथि दानी ने पुन: 'ईश्वर' शीर्षक से अपनी कविता 'कहाँ रहता है ईश्वर...' का पाठ किया। 

कार्यक्रम को अग्रेतर ले जाते हुए संचालिका आराधना ने शायर और लेखक विज्ञान व्रत को मंच पर आवाज दी जिन्होंने कुछ शेर सुनाए। पहले शेर की पहली पंक्ति थी --'आपको जब से मिला हूँ, बस तभी से लापता हूँ'। उन्होंने-- 'मुझको अपने पास बुलाकर, तू भी अपने साथ रहा कर', 'सूरज बनकर देख लिया ना, अब सूरज-सा रोज़ ढला कर', 'मुझ पर कर दो जादू-टोना, एक नज़र ऐसे देखो ना', इतने दिन में घर आए हो, घर जैसे कुछ देर रहो ना', 'सिर्फ ढलूँगा औजारों में, देखो मुझको पिघलाकर', 'सपने ही बस अपने हैं, अपने तो सब सपने हैं' जैसी शेरो-शायरी करके सभी उपस्थितों की वाह-वाही लूटी। कवियों के अगले क्रम में, सिंगापुर की हिंदी शिक्षिका और साहित्यकार डॉ. संध्या सिंह ने आराधना झा श्रीवास्तव को वातायन के आभासी मंच पर कविता-पाठ के लिए आमंत्रित किया। उन्होंने सूफियाना अंदाज़ में 'मैं तुझमें ऐसा खोया' कविता का सस्वर गायन करके सभी पर सम्मोहिनी की झीनी चादर डाल दी।

कार्यक्रम के अगले महत्वपूर्ण चरण में, काशी के समाचार-पत्र 'आज' का संपादन कर चुके डॉ. बुद्धिनाथ मिश्र ने बताया कि काशी के कबीरदास पीठ में वह हमेशा जाते रहे हैं जहाँ वे कबीरदास के संबंध में उन्हीं की पीढ़ी के विवेकदास जी से मिलकर विचार-मंथन करते रहे हैं। उन्होंने बताया कि कबीर की काव्यधारा भारतीयता की काव्यधारा है। उन्होंने विज्ञान व्रत की शायरी पर टिप्पणी करते हुए कहा कि हायकु से भी लघु रूप में उनकी गज़लें अचंभित करती हैं। उन्होंने अन्य रचनाकारों की कविताओं पर भी सकारात्मक टिप्पणियां कीं और उन्हें प्रोत्साहित किया।  डॉ. मिश्र ने 'माँ' विषय पर 'माँ के सर की पाँखुरी, माँ कुमकुम सिंदूर, माँ मंदिर की घंटियां माँ आरती-कपूर' जैसे कई स्वरचित दोहे सुनाए। तदनन्तर, उन्होंने एक गीत 'जिसे चाहा नहीं तुमने, कभी वह चैन पाया क्या/ ये सांसें तेज चलती हैं, किसी का दिल चुराया क्या' सुनाया।  उन्होंने तिथि दानी के आग्रह पर कोई पाँच दशक पहले विरचित गीत 'एक बार और जाल फेंक रे मछेरे, जाने किस मछली में बंधन की चाह हो' का पाठ भी किया। 

कार्यक्रम का समापन करते हुए डॉ. संध्या सिंह ने ज़ूम और यूट्यूब से जुड़े सभी श्रोता-दर्शकों को धन्यवाद दिया और प्रतिभागी कवियों और कवयित्रियों के प्रति ह्रदय से आभार व्यक्त किया। अधिकतर दर्शकों और वातायन मंच की सूत्रधार-दिव्या माथुर समेत अन्य उपस्थितों ने भविष्य में भी ऐसी ही संगोष्ठियों के आयोजित किए जाने की इच्छा प्रकट की।  

(प्रेस विज्ञप्ति-मनोज मोक्षेंद्र) 

न्यूज़ सोर्स : Literary Desk