लन्दन, दिनांक १८-०९-२०२२ : वैश्विक मंच 'वातायन' के अंतर्गत दिनांक : १७-०९-२०२२ को हिंदी की राष्ट्रीय कवयित्री तथा सुप्रसिद्ध 'झाँसी की रानी' कविता की रचयिता सुभद्रा कुमारी चौहान के संपूर्ण साहित्यिक अवदान और उनके जीवन-चरित पर एक विशेष संगोष्ठी आयोजित की गई। 'स्मृति और संवाद श्रृंखला-२६' शीर्षक से इस विशेष संगोष्ठी की अध्यक्ष थीं--इंद्रप्रस्थ महिला महाविद्यालय की प्रोफ़ेसर रेखा सेठी तथा सह-संचालिका थीं--आस्था देव। 

 

कार्यक्रम के आरंभ में सिंगापुर के एक युवक टियनी वांग ने 'झाँसी की रानी' कविता का सुमधुर पाठ किया। तदनन्तर, रेखा सेठी ने कहा कि सुभद्रा कुमारी चौहान ने अपने लेखन के माध्यम से जो अलख जगाया है, उसकी ज्योति सभी के मन को आलोकित करती रहती है। उन्होंने सुभद्रा कुमारी चौहान के जीवन-चरित पर व्यापक रुप से प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि सुभद्रा कुमारी चौहान की मित्रता छायावादी काव्यधारा की एकमात्र कवयित्री महादेवी वर्मा से रही है जो आजीवन अटूट रही। सुभद्रा सबसे पहली सत्याग्रही रही हैं जिन्हें गर्भावस्था में कारावास की सजा भी भुगतनी पड़ी। चौहान वर्ष १९२२ में तिरंगा झंडा फहराने के राष्ट्रव्यापी अभियान में सबसे आगे की पंगत में रही हैं। उनके इस झंडा आंदोलन में संपूर्ण भारत से कोई १७०० आंदोलनकारियों ने अपनी गिरफ्तारियाँ दीं। शुरुआत में वह मुख्यतया कविताएं लिखती थीं किन्तु जब उनके पति को स्वतंत्रता-आंदोलन में हिस्सा लेने के लिए जेल भेजा गया तो पदुमलाल पन्नालाल बख्शी के आग्रह पर सुभद्रा कहानियां भी लिखने लगीं। उनकी कहानियों में उनका अपना और उनके आसपास का जीवन झलकता है। उन्होंने ८८ कविताएं तथा ४६ कहानियां लिखीं हैं। 

तदनन्तर, रेखा सेठी ने दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रोफ़ेसर अल्पना मिश्रा से आग्रह किया कि वह सुभद्रा कुमारी चौहान की कहानी-कला पर प्रकाश डालें। अल्पना मिश्रा ने कहा कि आज की लेखिकाओं की यात्रा सुभद्रा कुमारी चौहान से ही आरंभ होती है। वह उपेक्षित बाल विधवाओं की सामाजिक स्थिति में सुधार लाने के साथ-साथ स्त्री की स्वतंत्रता की भी मुखर पक्षधर थीं। प्रोफेसर रेखा सेठी ने बताया कि उनके साहित्य में स्वतंत्रता-आंदोलन, स्त्री-स्वाधीनता तथा पतित जातियों के उत्थान के लिए तीक्ष्ण स्वर का प्राधान्य है। उन्होंने झाँसी की रानी की समाधि शीर्षक से कविता की पंक्तियों को भी उद्धृत किया। सुभद्रा ने अपनी पुत्री सुधा चौहान का विवाह मशहूर कथाकार प्रेमचंद के पुत्र अमृत राय से कराकर जाति-व्यवस्था पर गहरा प्रहार किया।  तत्पश्चात, संगोष्ठी का संचालन कर रही आस्था देव ने 'स्मृतियाँ' शीर्षक से सुभद्रा कुमारी चौहान की एक मार्मिक कविता सुनाई। प्रोफ़ेसर अल्पना मिश्रा ने बताया कि सुभद्रा मानती थीं कि स्त्री और पुरुष के व्यक्तित्व अलग-अलग होते हैं। निःसंदेह,  सुभद्रा विद्रोही प्रवृत्ति की थीं तथा उन्होंने अपनी बेटी का कन्यादान स्वयं करने के लिए आवाज़ बुलंद की थी। वह मनुष्य की जाति के बजाय उसकी योग्यता को महत्त्व देती थीं। उन्होंने कन्यादान जैसी प्रथा को अनुचित ठहराया और कहा कि क्या एक मनुष्य किसी स्त्री का दान कर सकता है। उनके विद्रोही विचारों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि वह अपने समय से बहुत आगे चल रही थीं तथा इसमें कोई संदेह नहीं है कि वह अत्यधिक आधुनिक थीं। प्रोफ़ेसर रेखा ने 'आहुति' तथा कुछ और कहानियों में उद्धृत सुभद्रा के स्त्री स्वाधीनता से संबंधित क्रांतिकारी विचारों का उल्लेख भी किया।  उन्होंने कहा कि सुभद्रा को फिर से पढ़ना होगा क्योंकि उन्होंने स्त्री चेतना को जागृत किया। प्रोफ़ेसर अल्पना मिश्रा ने कहा कि सुभद्रा ने स्त्री की पति की अर्धांगिनी से संबंधित मान्यता का भी विरोध किया था। वह गांधीजी के आंदोलन में भी प्रमुख प्रतिभागी थीं। प्रोफ़ेसर मिश्रा ने सुभद्रा के जीवन की कतिपय बातों का भी उल्लेख किया।  

इस चर्चा के दौरान कतिपय प्रबुद्ध श्रोताओं ने भी अपने विचार प्रकट किए जिनमें सौभाग्या, डॉ. वरुण कुमार, पद्मश्री तोमियो मिजोकामी, स्वर्ण तलवार आदि शामिल थे। संगोष्ठी का समापन करते हुएआस्था देव ने संगोष्ठी की अध्यक्ष तथा सम्मानित वक्ताओं को धन्यवाद दिया और उन श्रोताओं को भी धन्यवाद ज्ञापित किया जो इस संगोष्ठी से जुड़े रहे। उन्होंने दिव्या माथुर की ऐसी संगोष्ठियों के सौष्ठवपूर्ण आयोजन में तल्लीनता की तहेदिल से सराहना की।  श्रोताओं में कप्तान प्रवीर भारती, डॉ. महादेव कोलूर, गीतू गर्ग, डॉ. अरुणा अजितसरिया, डॉ. मनोज मोक्षेन्द्र, आशीष रंजन, रिद्धिमा, सुषमा द्विवेदी, संध्या सिंह, मोहन बहुगुणा, डॉ. मधु वर्मा और स्वर्ण तलवार मुख्यतया उल्लेखनीय हैं। 

 

 

 

(प्रेस विज्ञप्ति)

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