लंदन, 19 मार्च 2023: विगत ढाई वर्षों से 'वातायन-यूके' के तत्वावधान में सतत चल रही साहित्यिक-सांस्कृतिक संगोष्ठियों ने वैश्विक आधार पर धूम मचाई है तथा भारतीय संस्कृति और हिंदी साहित्य एवं भाषा को दुनियाभर में एक नई पहचान दी है। जैसाकि वातायन परिवार की परंपरा रही है, इस संस्था द्वारा प्रत्येक वर्ष दिए जाने वाले सम्मानों-अलंकरणों के क्रम में, वर्ष २०२३ में दो विशिष्ट हिंदी साहित्यकारों, नामत: श्री राहुल देव और सुश्री मनीषा कुलश्रेष्ठ को क्रमश: 'लाइफ टाइम अचीवमेंट' और 'वातायन लिटरेरी अवार्ड' से अलंकृत किए जाने का निर्णय लिया गया। श्री राहुल देव पत्रकारिता जगत के लब्ध-प्रतिष्ठ पत्रकार हैं एवं सुश्री मनीषा कुलश्रेष्ठ हिंदी साहित्य की विशिष्ट कथाकार हैं। दोनों ही शख्सियत भारतीय जनमानस में अपनी-अपनी विशिष्ट पहचान रखती हैं जो आज की तारीख में लोकप्रियता के शिखर पर हैं। 

इन दोनों भारतीय लेखकों को लंदन स्थित 'नेहरू सेंटर' में दिनांक १८ मार्च को आयोजित एक भव्य कार्यक्रम में आमंत्रित किया गया और उन्हें बड़े औपचारिक वातावरण में सम्मानित किया गया। इस विशेष अवसर पर  दुनियाभर की साहित्य जगत की जानी-मानी हस्तियां उपस्थिति थीं। मंच पर उपस्थितों में प्रमुख थे - केंद्रीय हिंदी संस्थान के उपाध्यक्ष श्री अनिल शर्मा जोशी, नेहरू सेंटर के निदेशक और मंत्री (संस्कृति) श्री अमीश त्रिपाठी, वातायन-यूके की अध्यक्ष सुश्री मीरा मिश्रा कौशिक - ओ बी ई,  आगरा स्थित केंद्रीय हिंदी संस्थान की निदेशक डॉ. बीना शर्मा और लन्दन के भारतीय उच्चायोग की अताशे (हिंदी और संस्कृति) सुश्री नंदिता साहू।   

  

यह कार्यक्रम 'वातायन-यूके' की १४३ वीं शृंखला के रूप में आयोजित किया गया तथा इसका शुभारंभ सुविख्यात संगीतज्ञ विभूति शाह द्वारा गाई गई  सुमधुर और भावपूर्ण सरस्वती वंदना (हे शारदेवा) की प्रस्तुति से हुई। उल्लेखनीय है कि सुश्री विभूति शाह एक संगीत प्रशिक्षक हैं जिन्हें गायन विधा में विशेष महारत हासिल है। 

तदनन्तर, 'यूके हिंदी समिति' के संस्थापक और ऑक्सफोर्ड बिजनेस कॉलेज के निदेशक डॉ. पद्मेश गुप्त ने सर्वप्रथम वातायन परिवार के २० वर्षों के उत्कृष्ट ट्रैक रिकॉर्ड पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि 'वातायन मंच' ने अपनी साप्ताहिक संगोष्ठियों और कार्यक्रमों के आयोजनों के जरिए, कोरोना काल में लॉकडाउन के दौरान वातावरण को उबाऊ होने से बचाया है। अपने २० वर्षों के सुदीर्घकाल में इस मंच ने हिंदी साहित्य और भारतीय संस्कृति को कोने-कोने पहुँचाने का सराहनीय काम किया है। उसके पश्चात, श्री गुप्त ने वीडियो और स्लाइड के जरिए 'वातायन-यूके' की उपलब्धियों का व्यवस्थित परिचयात्मक वर्णन प्रस्तुत किया, जिसमें तकनीकी सहयोग प्रदान किया, लन्दन की ही युवा कवयित्री सुश्री आस्था देव ने। श्री गुप्त ने बताया कि  'वातायन-यूके' की संस्थापक सुश्री दिव्या माथुर के श्रमशील सत्प्रयासों के परिणामस्वरूप, हिंदी की काव्यधारा टेम्स नदी के किनारे-किनारे बहने लगी। इससे ब्रिटेनवासियों में हिंदी कविता और इसकी परंपराओं के प्रति अगाध प्रेम उमड़ने लगा। उल्लेखनीय है कि वातायन ने अधिकाधिक लेखकों और कला-प्रेमियों को एक सुदृढ़ मंच प्रदान करके एक ऐतिहासिक कार्य किया है, जिसकी सराहना दुनिया के कोने-कोने में हो रही है। यह भी उल्लेखनीय है कि 'वातायन-यूके' दुनियाभर के लेखकों और साहित्यकारों को एक सूत्र में बांधते हुए विभिन्न देशों की हिंदी संस्थाओं का भी सहयोग लेता रहा है और उन्हें प्रोत्साहित करता रहा है। इस संबंध में, सिंगापुर संगम, राइटर्स गिल्ड-कनाडा और दिल्ली की कुछ संस्थाएं जैसेकि दिल्ली विश्वविद्यालय के इंद्रप्रस्थ कॉलेज के योगदानों को रेखांकित किया जाना चाहिए। 

सुश्री मीरा मिश्रा कौशिक ने अपने स्वागत वक्तव्य में सम्मानित किए जाने वाले लेखकों और उपस्थित विशेष अतिथियों समेत, जिनमें लन्दन स्थित नेहरू सेंटर के निदेशक अमीश  त्रिपाठी भी थे, श्रोता-दर्शकों का अभिनन्दन किया। उसके बाद, ब्रिटिश के भारतीय उच्चायोग में पदस्थ नंदिता साहू ने अपने उद्गार वक्तव्य में कहा कि ईश्वर प्रदत्त प्रतिभाओं के धनी - राहुल देव और मनीषा कुलश्रेष्ठ जैसे साहित्यकार हम सभी के लिए प्रेरणा-स्रोत हैं। तदुपरांत, आशीष मिश्र ने मनीषा कुलश्रेष्ठ का अभिनन्दन करते हुए कहा कि उन्होंने न केवल हिंदी साहित्य में श्रीवृद्धि की है बल्कि अनुवाद-कार्य में भी  विशेष योगदान किया है तथा वे कथा-साहित्य की एक प्रतिनिधि हस्ताक्षर हैं। उन्होंने अपने यायावरी अनुभवों को समेटते हुए, अपने कथा-साहित्य में समाज का वैविध्यपूर्ण और जीवंत चित्रण किया है। उन्हें मंच पर सम्मानित किए जाने के पश्चात् बर्मिघम की कवयित्री तितिक्षा दंड-शाह ने मनीषा जी के उपन्यास 'मल्लिका' के कुछ अंशों का पाठ भी किया, जिन्हें तहे-दिल से समस्त उपस्थितों द्वारा सराहा गया। तत्पश्चात, सुश्री मनीषा ने अपनी साहित्य-यात्रा के अनुभवों का उल्लेख किया जिसमें अपनी जन्मभूमि राजस्थान की माटी की गंध की खुलकर चर्चा की। उसके बाद उन्हें 'लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड' से नवाज़ा गया। 

कार्यक्रम के अगले चरण में, सुप्रसिद्ध प्रवासी कवयित्री तिथि दानी ने अपने अभिनन्दन वक्तव्य में यशस्वी पत्रकार और 'गणेश शंकर विद्यार्थी सम्मान' से अलंकृत राहुल देव की पत्रिकारिता जगत, हिंदी साहित्य और हिंदी भाषा में उपलब्धियों पर प्रकाश डाला। भाषा और अध्यात्म के क्षेत्र में श्री राहुल का मार्गदर्शन उल्लेखनीय है। तदनन्तर, उन्हें 'अंतरराष्ट्रीय वातायन शिखर सम्मान' से करतल ध्वनि के बीच सम्मानित किया गया। इस अवसर पर श्री राहुल देव और सुश्री मनीषा कुलश्रेष्ठ को माननीय भारतीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी से प्रेरित होकर पुष्प-गुच्छ के बजाय, पुस्तकें भेंट कर, सम्मानित किया गया।  

तदनन्तर, ज़ूम के माध्यम से जुड़े केंद्रीय हिंदी संस्थान के उपाध्यक्ष श्री अनिल शर्मा जोशी ने अपने उद्बोधन में इस कार्यक्रम के अध्यक्ष, ब्रिटिश सांसद श्री वीरेंद्र शर्मा (अनुपस्थित) का उल्लेख करते हुए कहा कि वातायन परिवार भारत से बाहर हिंदी के लिए सक्रिय कार्य करने वाला सबसे समर्थ और शक्तिशाली समूह है। उन्होंने कहा कि सुश्री मनीषा कुलश्रेष्ठ भारतीय जीवन की अतल गहराइयों में जाकर साहित्य-सृजन करने वाली लेखिका हैं, जिनका उपन्यास 'मल्लिका' एक मील का पत्थर है। राहुल देव तो एक जीवित मशाल हैं जिसकी रोशनी में समाज अपना रास्ता देख पाता है। उसके पश्चात् राहुल देव ने कहा कि यदि भारत को बचाना है तो हिंदी को बचाना होगा। यह काम अंग्रेजी के माध्यम से नहीं किया जा सकता है। विलुप्त हो रही भारतीय भाषाओं तथा हिंदी की सुरक्षा की चिंता एक बड़ा संकट है जिसके लिए हमें सक्रिय और एकजुट होना होगा। अगले क्रम में, सुप्रसिद्ध लेखक और लन्दन स्थित नेहरू सेंटर के निदेशक अमिश त्रिपाठी ने कहा कि वैसे तो वे अंग्रेजी में लिखते हैं, लेकिन उन्हें हिंदी से भी गहरा लगाव है क्योंकि वे काशीवासी हैं। उन्होंने अपने वक्तव्य में सुश्री मनीषा की रचनाधर्मिता और श्री राहुल के साथ अपनी सन्निकटता की चर्चा की। 

कार्यक्रम के समापन पर सुश्री आस्था देव ने श्री राहुल देव और सुश्री मनीषा कुलश्रेष्ठ का हृदय से आभार व्यक्त किया जिन्होंने लन्दन में उपस्थित होकर वातायन सम्मानों को स्वीकार करके वातायन परिवार को अनुगृहीत किया है। उन्होंने श्री अनिल शर्मा जोशी; सुश्री अचला शर्मा, तितिक्षा, मीरा मिश्रा कौशिक, तिथि दानी  और  नंदिता साहू; मंच-संचालक डॉ. पद्मेश गुप्त और वातायन कार्यक्रमों की सूत्रधार सुश्री दिव्या माथुर को धन्यवाद ज्ञापित किया। उन्होंने ज़ूम के माध्यम से जुड़े डॉ. जयशंकर यादव, डॉ. राजीव श्रीवास्तव, डॉ. अनूप भार्गव, अर्पणा संत सिंह, नीलांबुज सरोज, प्रणव प्रियदर्शी, उषा निल्सन, रश्मि कुलश्रेष्ठ, अंशु कुमार कुलश्रेष्ठ, सोनू कुमार, दीपा देव, संजय देव, उजला, उमा आदि जैसे प्रबुद्ध श्रोता-दर्शकों का आभार प्रकट किया जो बड़ी तन्मयता से इस वैश्विक कार्यक्रम के साक्षी बने रहे। 

 

(प्रेस विज्ञप्ति - डॉ. मनोज मोक्षेन्द्र) 

न्यूज़ सोर्स : wewitness literature desk