लन्दन, दिनांक ११-०९-२०२२ : लन्दन से संचालित 'वातायन मंच' के अंतर्गत दिनांक : ०९-०९-२०२२ को प्रतिष्ठित प्रवासी कथाकार शैल अग्रवाल के दो कथा-संग्रहों नामत: 'सुर-ताल' और 'मेरी चयनित कहानियां' का लोकार्पण हुआ और उनकी साहित्य-यात्रा एवं कहानियों पर व्यापक चर्चा हुई।

इस 'वातायन-यूके प्रवासी संगोष्ठी-११८' के अंतर्गत चर्चा में भाग लेने वाले साहित्यकार तथा ख्यात विमर्शकार इस प्रकार हैं--संतोष श्रीवास्तव, डॉ. इंदु झुनझुनवाला, हंसा दीप तथा गोबर्धन यादव जबकि जाने-माने समीक्षक-आलोचक ओम निश्छल की अध्यक्षता में संगोष्ठी के प्रस्तावक थे लन्दन के श्रेष्ठ कवि आशीष मिश्रा एवं प्रस्तोता थीं सुप्रसिद्ध लेखिका हंसा दीप। संगोष्ठी की विशिष्ट अतिथि प्रख्यात साहित्यकार नासिरा शर्मा किन्हीं अपरिहार्य कारणों से उपस्थित नहीं हो सकीं किन्तु उनके आशीर्वचनों को मंच पर ससम्मान प्रस्तुत किया गया। 

आरम्भ में, आशीष मिश्रा ने इंग्लैण्ड की महारानी एलिजाबेथ के ९६ वर्ष की आयु में दिनांक ०८ सितम्बर, २०२२ को हुए निधन पर 'वातायन' साहित्यिक-सांस्कृतिक संस्था की तरफ से गहरा शोक व्यक्त किया।  तदनन्तर, आशीष मिश्रा ने 'वातायन' मंच द्वारा कोई ढाई वर्षों से संचालित संगोष्ठियों की चर्चा करते हुए ब्रिटेन की कथाकार शैल अग्रवाल की सद्य: प्रकाशित कथा-संग्रहों 'सुर-ताल' और 'मेरी चयनित कहानियां' पर प्रकाश डाला और बताया कि आज इन दोनों पुस्तकों का लोकार्पण किया जाएगा।  

हंसा दीप ने बताया कि  वरिष्ठ और प्रतिष्ठित लेखिका शैल अग्रवाल विदेशी जमीन पर रहते हुए भी अपने देश--भारत की संस्कृति से जुड़ी हुई हैं। शैल जी मार्च २००७ से अंतर्जाल की त्रिभाषी मासिक साहित्यिक पत्रिका 'लेखनी' का प्रकाशन-संपादन भी कर रही हैं। सर्वप्रथम हंसा दीप ने शैल जी की कहानियों के कला-पक्ष और भाव-पक्ष पर प्रकाश डालते हुए बताया कि वह साहित्य-सृजन करती हैं और जीवन के संघर्ष में भी शामिल रहती हैं।

तत्पश्चात हिंदी की प्रोफ़ेसर और लेखिका इंदु झुनझुनवाला बताती  हैं कि शैल अग्रवाल जी की लेखनी से निकली कहानियां सपनों जैसी होती हैं जो हमारे लिए एक अलग दुनिया का सृजन करती हैं। उनकी बाल कहानियां केवल बच्चों के लिए नहीं होती हैं, अपितु वे सभी को एक सन्देश दे जाती हैं। वे बच्चों में अच्छे संस्कारों का बीजारोपण कर जाती हैं। उनकी कहानियों को बार-बार पढ़ने का मन करता है। उनकी कहानियां पढ़ते हुए मानव के अवचेतन मन की वे परतें खुलती जाती हैं, जो बचपन से मन में दमित अवस्था में  रही हैं। उनकी हर कहानी की एक अलग शैली होते हुए भी एक साम्यता होती है और वह यह है कि विदेश की जमीन पर रची गई इन सभी कहानियों में भारत की खुशबू होती है। तदनन्तर, संतोष श्रीवास्तव ने बताया कि शैल अग्रवाल अपने समय की एक महत्वपूर्ण कथाकार हैं। उनके संग्रह 'सुर-ताल' में कथ्य शिल्प का तालमेल बखूबी नज़र आता है। उन्होंने इस संग्रह की ग्यारह कहानियों की अलग-अलग चर्चा करते हुए उनकी विशिष्टता पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि उनके कहन में अभिव्यक्ति और अहसासों को साथ-साथ जोड़ा गया है और इसी कारण उनकी कहानियां वाज़िब जगह बनाती हैं। उनकी भाषा में आकर्षण है, शैली में बहाव है और बिंब-विधान अपने-आप में सब कुछ कर जाता है। 

तदनन्तर, विभिन्न विधाओं में बहु-प्रकाशित गोबर्धन यादव ने एक कहानी की चर्चा करते हुए कहा कि शैल जी की यह कहानी घर-घर की कहानी है जिसमें सास कभी माँ नहीं बन पाती है और बहू कभी बेटी नहीं बन पाती है। उन्होंने कहानी के विभिन्न स्थलों को उद्धृत करते हुए अपनी चर्चा को अत्यंत रोचक बना दिया। 

शैल अग्रवाल ने इस विशेष संगोष्ठी में अपने बारे में बताते हुए कहा कि लिखना उनकी आदत है और मज़बूरी भी। यह आदत उनके लिए एक दवा का काम करती है। उन्होंने कहा कि वह सभी उपस्थितजनों के प्रति आभार व्यक्त करती हैं जिन्होंने उनके बारे में इतना कुछ कहा और उन्हें जानना चाहा। 

ओम निश्छल ने अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा कि शैल जी अपनी कहानियों में साधारण भाषा में असाधारण छाप छोड़  जाती हैं। उनकी कुछ कहानियों में रहस्य-रोमांच है, नाटकीयता है, चाक्षु दृष्टि है। वह पूर्व-जन्म और पत्रकारिता जैसे विषयों पर भी लिखती हैं। उनके पास  निबंधात्मक और दार्शनिक भाषा है। ओम निश्छल ने उनकी अलग-अलग कहानियों की चर्चा करते हुए उनकी विषय-वस्तु, कौतूहल, पठनीयता, उनके पात्र और उनके केंद्रीय भाव पर भी  प्रकाश डाला। कहानीकार भी एक कवि की भांति रचना करता है और शैल जी ऐसी ही रचनाकार हैं। उन्होंने शैल जी को इतनी अच्छी कहानियां लिखने के लिए तहेदिल से बधाई दी।

कार्यक्रम के समापन पर आशीष मिश्रा ने अध्यक्ष ओम निश्छल, कथाकार शैल अग्रवाल, चर्चा के प्रतिभागी विमर्शकारों, वातायन आयोजनों की सूत्रधार दिव्या माथुर और पद्मेश गुप्त,  यूट्यूब और जूम के माध्यम से जुड़े प्रबुद्ध श्रोता-दर्शकों को धन्यवाद प्रेषित किया। उपस्थितजनों में पद्मश्री टोमियो मीजोकामी, डॉ. अनूप भार्गव, ललित मोहन जोशी, सरस दरबारी, सुरेश मिश्रा, अपूर्व सरल, अर्पणा संत सिंह, नरेंद्र ग्रोवर आदि संगोष्ठी से आद्योपांत जुड़े रहे। 

 

(प्रेस विज्ञप्ति)

 

प्रस्तुति डॉ. मनोज मोक्षेंद्र 

न्यूज़ सोर्स : Literature Desk, Wewtness