'वातायन-यूके' के तत्वावधान में दिनांक १४ जनवरी, २०२३ को जाने-माने राजनीतिज्ञ, विधिवेत्ता तथा हिंदी साहित्य और हिंदी भाषा के मर्मज्ञ तथा मीमांसक पं. केशरीनाथ त्रिपाठी की स्मृतियों को जीवंत बनाते हुए एक संगोष्ठी आयोजित की गई।

उल्लेखनीय है कि १० नवंबर १९३४ को जन्मे, पं. केशरीनाथ त्रिपाठी का स्वर्गवास दिनांक ८ जनवरी २०२३ को हुआ था। 'यूके हिंदी समिति' और 'वैश्विक हिंदी परिवार' के सहयोग से 'वातायन-यूके' द्वारा आयोजित वातायन वैश्विक संगोष्ठी-१३८ का संचालन कर रहे डॉ. पद्मेश गुप्त ने बताया कि यह संगोष्ठी उस महान शख्सियत की एक स्मृति सभा के रूप में आयोजित की जा रही है। श्री गुप्त ने स्वर्गीय त्रिपाठी के जीवन-वृत्त पर प्रकाश डालते हुए कहा कि वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी व्यक्ति थे तथा उनका भौतिक अवसान विशेष रूप से हिंदी साहित्य के लिए एक अपूरणीय क्षति है। उन्होंने श्री केशरीनाथ के राजनीतिक जीवन पर भी सम्यक प्रकाश डाला। डॉ. पद्मेश गुप्त ने बताया कि केशरीनाथ त्रिपाठी जी को 'वातायन पुरस्कार-२०१७' से सम्मानित भी किया गया था। उन्होंने अपनी अनूठी काव्य रचनाओं से भारत और भारतीयता से जुड़ी  भावनाओं को आम आदमी के दैनिक जीवन से जोड़ने का अनुपम प्रयास किया है। 

इस स्मृति सभा में दिवंगत केशरीनाथ जी की उपलब्धियों पर प्रकाश डालते हुए, शोक प्रकट करने वाले वक्ताओं ने स्वर्गीय त्रिपाठी के साथ अपने संबंधों की चर्चा की जिससे यह साफ़ परिलक्षित होता है कि श्री त्रिपाठी एक बड़ी शख्सियत होते हुए भी  अपने बड़प्पन का कभी भी प्रदर्शन नहीं करते थे। शोक व्यक्त करने वाले वक्ताओं में प्रमुख थे--डॉ. कुश चतुर्वेदी, जय वर्मा, डॉ. के.के. श्रीवास्तव, शैल अग्रवाल, सुरेखा चोफला, अरुण सभरवाल, राजलक्ष्मी कृष्णन आदि। श्री केशरीनाथ, आम आदमी की तरह जीवनयापन करते थे तथा आम आदमी के साथ घुलमिल कर रहते थे जो  निःसंदेह उनका दिखावा या पाखंड नहीं था; अपितु सहजता-सरलता उनका स्वाभाविक भाव था। वे अपने विचारों में जितने उदात्त थे, अपने निजी जीवन में वे उतने ही उदार भी थे। वातायन-यूके की सूत्रधार दिव्या माथुर स्वर्गीय केशरीनाथ के साथ अपने बिताए क्षणों को याद कर भाव-विभोर हो उठीं। उन्होंने कहा कि कैसे स्वर्गीय केशरीनाथ उन्हें विभिन्न अवसरों पर बड़ी आत्मीयता के साथ बुलाते थे और अपने क्रिया-व्यापार में उन्हें अपने साथ सम्मिलित करते थे। 

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे केंद्रीय हिंदी संस्थान के उपाध्यक्ष--डॉ. अनिल शर्मा जोशी ने कहा कि वे त्रिपाठी जी के साथ कई बार देश-विदेश में साथ-साथ रहे हैं और उन्होंने उन्हें बहुत नजदीक से देखा है। श्री केशरीनाथ किसी भी प्रकार के अहंकार-भाव से मुक्त थे तथा जनसाधारण से जुड़कर रहते थे। उन्होंने स्वर्गीय केशरीनाथ के साथ गुजारे गए अवसरों को संस्मरणों के रूप में सभी श्रोता-दर्शकों के साथ साझा किया। कार्यक्रम का समापन करते हुए डॉ. पद्मेश गुप्त ने कहा कि केशरीनाथ जी ने उदीयमान प्रतिभाओं को भी बड़ी शिद्दत से निखारने का प्रयास किया। उन्होंने साहित्य-सृजन की शुरुआत वर्ष १९९८ से की और उसके बाद वे साहित्याकाश में छा गए। 

संगोष्ठी के समस्त श्रोता-दर्शक, वक्ताओं के श्री केशरीनाथ के प्रति उद्गार को बड़ी ध्यानमग्नता से सुनते रहे। कार्यक्रम के अंत में, डॉ. पद्मेश के अनुरोध पर कुछ श्रोताओं ने अपने विचार भी व्यक्त किए।  

उल्लेखनीय है कि 'वातायन' की यह विशिष्ट संगोष्ठी भले ही एक शोक सभा के रूप में आयोजित की गई, इसमें व्यक्त विचारों और प्रबुद्ध वक्ताओं की टिप्पणियों को हिंदी साहित्य में सदैव रेखांकित किया जाएगा। 

 

(प्रेस विज्ञप्ति) 

न्यूज़ सोर्स : Literary Desk