वैश्विक मंच 'वातायन-यूके' के तत्वावधान में दिनांक : ६ मई, २०२३ को 'दो देश दो कहानियां (भाग-१०)' के संबंध में एक संगोष्ठी का ऑनलाइन आयोजन किया गया। इस कहानी-पाठ के अंतर्गत भारत से सुशीला टाकभौरे तथा डेनमार्क से अर्चना पैन्यूली ने अपनी-अपनी कहानियों का पाठ किया जबकि संगोष्ठी की अध्यक्षता की सुप्रसिद्ध कवि-कथाकार, पत्रकार और एनडीटीवी के कार्यकारी संपादक--प्रियदर्शन जी ने। इस कार्यक्रम की संचालक थीं वातायन परिवार की अति सक्रिय सदस्य, कैनेडा की सुपरिचित कथाकार और हिंदी राइटर्स गिल्ड कैनेडा की सह-संस्थापिका : सुश्री शैलजा सक्सेना जी। इसके अतिरिक्त, इस संगोष्ठी की सूत्रधार थीं- सिंगापुर संगम की संस्थापक और अध्यक्ष सुश्री संध्या सिंह जिन्होंने संगोष्ठी के बारे में संक्षिप्त परिचय दिया।

संचालक शैलजा सक्सेना ने बताया की भारत की कथाकार सुशीला टाकभौरे दलित साहित्य की एक प्रखर कथाकार हैं। उन्होंने कहा कि प्रियदर्शन जी की समीक्षा से एक नई चेतना का सूत्रपात होगा। सुश्री सुशीला ने अपनी कहानी 'सिलिया' में भारत में व्याप्त जातीय द्वेष, भेदभाव तथा सामाजिक विषमता को प्रमुखता से रेखांकित किया। उन्होंने बताया कि उनकी 'सिलिया' कहानी पहली कहानी है जिसे कई शिक्षण संस्थाओं के पाठ्यक्रमों में सम्मिलित किया गया है। दलित लड़की सिलिया कहानी की मुख्य पात्र है जो सामाजिक अन्याय और अत्याचार को झेलते हुए, दृढ़ संकल्प के साथ आगे बढ़ती है और समाज में सम्मान का पात्र बनती है। 

संगोष्ठी के अगले चरण में, प्रवासी कथाकार अर्चना पैन्यूली ने अपनी कहानी 'हमने आपको कितना रिलेक्स रखा' में आंशी नाम की पात्र को केंद्र में रखा है। उसकी माँ अनुराधा अपने समय में हर प्रकार से अनुशासित और संयमित रहती थी। यह कहानी भारत और डेनमार्क के सांस्कृतिक और सामाजिक द्वंद्वों को चित्रित करती है और दोनों देशों के पारिवारिक ढांचें को रूपायित करते हुए मन में चल रहे अंतर्द्वंद्व को उकेरती है।  बेशक, यह एक मनोवैज्ञानिक कहानी है जिसका तानाबाना बड़ी कुशलता से बुना गया है। आंशी के साथ उसका साथी पात्र रोहन भी है जो अमरीका में आंशी के 'इंडियन' तौर-तरीकों पर टिप्पणियां करता है जबकि आंशी स्वयं को डेनमार्क और अमरीका की जीवन-शैली से स्वयं को बिल्कुल अलग-थलग पाती है। बॉय फ्रेंड, गर्ल फ्रेंड, हाफ सिस्टर, हाफ ब्रदर आदि जैसे बनावटी रिश्तों की खिल्ली उड़ाते हुए कहानी रोचक ढंग से आगे बढ़ती है। आंशी की माँ अनुराधा डेनमार्क के जीवन में मदिरापान जैसी उच्छृंखल आदतों पर तल्ख़ टिप्पणियां करती है तथा अपनी बेटी आंशी को यथासंभव इनसे दूर रखना चाहती है। बेशक, कहानी प्रवासी और भारतीय जीवन को अपने-अपने रंग-ढंग में चित्रित करती है। 

समीक्षक प्रियदर्शन जी ने दोनों कहानियों के संबंध में टिप्पणी करते हुए कहा कि हम किसी भी सांस्कृतिक समाज में अच्छी और बुरी परंपराओं के बीच चुनाव करते हैं तथा बुरी परंपरा को त्यागकर, अच्छी परंपरा को अपना लेते हैं। उन्होंने कहा कि अर्चना जी की कहानी में माँ-बाप ऐसा ही करते हैं। दोनों कहानियां कमजोरों और अच्छे मूल्यों के पक्ष में हैं। सीमाओं और वर्जनाओं को तोड़ना लेखक की जिम्मेदारी है और इस ज़िम्मेदारी को दोनों कहानियों में निभाया गया है। कार्यक्रम के अंत में श्रोता-दर्शकों से टिप्पणियां आमंत्रित की गईं। चैट बॉक्स में डॉ. कोयल बिस्वास, नमिता सिंह, आशा बर्मन, डॉ. रेनू यादव, डॉ. रश्मि वार्ष्णेय, सरोजिनी नौटियाल, डॉ. सुरेश कुमार मिश्र, डॉ. ऋचा शर्मा, डॉ. ईश्वर पवार, डॉ. प्रभा मिश्रा, डॉ. विवेक शुक्ल, डॉ. मनोज कुमार आदि ने अपनी-अपनी टिप्पणियों में दोनों कहानियों का विश्लेषण किया तथा कहानीकारों के प्रति आभार व्यक्त किया। डॉ. ल्यूदमिला खोंखोलोव ने दोनों कथाकारों की कहानियों तथा प्रियदर्शन जी की समीक्षा की तहे-दिल से प्रशंसा की। डॉ. प्रभा मिश्रा ने प्रियदर्शन जी की पारदर्शी समीक्षा की सराहना की। आशा बर्मन ने उल्लेख किया कि समीक्षक महोदय की समीक्षा उच्च कोटि की थी। 

प्रो. राजेश कुमार और डॉ. संध्या सिंह ने कार्यक्रम में तकनीकी सहयोग प्रदान किया। कार्यक्रम के समापन पर डॉ. संध्या सिंह ने जापान के हिंदी विद्वान तोमियो मिजोकामी समेत समस्त श्रोता-दर्शकों को जूम और यूट्यूब के माध्यम से इस संगोष्ठी से जुड़ने के लिए आभार व्यक्त किया। 

 

(प्रेस विज्ञप्ति)

न्यूज़ सोर्स : Literary Desk