लन्दन : दिनांक  २२ मई, २०२२ को "वातायन मंच" के तत्वावधान में 'वातायन  प्रवासी संगोष्ठी'  का साप्ताहिक आयोजन किया गया। इस संगोष्ठी का शीर्षक था "सन्दर्भ मुहावरे : आओ तिल का ताड़ बनाएं"। इस १०५ वीं संगोष्ठी के आरम्भ में, अनवरत चल रही इन संगोष्ठियों के सूत्रधार श्री पद्मेश गुप्त ने कार्यक्रम के बारे में संक्षिप्त परिचय दिया। इस संगोष्ठी के प्रस्तोता, बरेली के साहित्यकार श्री राहुल अवस्थी ने बताया कि यह संगोष्ठी हिंदी मुहावरों और लोकोक्तियों पर आधारित है।  संगोष्ठी की अध्यक्षता केंद्रीय हिंदी निदेशालय की निदेशक सुश्री बीना शर्मा ने की जबकि संगोष्ठी के प्रमुख प्रतिभागी विद्वतजन थे-- डॉ. मधु चतुर्वेदी और शैल अग्रवाल। डॉ. अवस्थी के आमंत्रण पर  डॉ. मधु चतुर्वेदी ने कहा कि लोकोक्तियों और मुहावरों के माध्यम से सम्बंधित देश की सामाजिक पृष्ठभूमि को जाना जा सकता है। इनसे उस स्थान की परंपराएं और मान्यताएं परिलक्षित होती हैं। मुहावरे किसी घटना के होने पर बेसाख्ता मुंह से निकल जाते हैं जिनका हम बोलचाल में वरण कर लेते हैं। तदुपरांत शैल अग्रवाल ने कहा कि मुहावरे गढ़े नहीं जाते है बल्कि स्वमेव गढ़ जाते हैं। उन्होंने अंग्रेजी भाषा और हिंदी भाषा के मुहावरों का तुलनात्मक ब्यौरा प्रस्तुत किया जिनके निहितार्थ पर डॉ. चतुर्वेदी ने प्रकाश डाला। शैल अग्रवाल ने अपनी मेधा का परिचय देते हुए कतिपय मुहावरे गढ़े और दोनों विदुषियों ने उन पर बारी-बारी से चर्चा की। 

संगोष्ठी के अगले चरण में वातायन मंच की अभिभावक सुश्री दिव्या माथुर से अनुरोध किया गया कि वह कुछ मुहावरे उद्धृत करें। फिर, आस्था देव ने कुछ मुहावरों का वाचन किया जिनके निहिताशय पर डॉ. चतुर्वेदी ने अपने मंतव्य  दिए। उन्होंने कहा कि मुहावरे और लोकोक्तियाँ ही सूक्तियां बन जाती हैं। 

संगोष्ठी को आगे समापन की ओर ले जाते हुए डॉ. बीना शर्मा ने अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा कि जिस तरह टकसाल में सिक्के गढ़े जाते हैं, उसी तरह इस  कार्यक्रम में मुहावरे गढ़े गए हैं। किन्तु जब ये मुहावरे प्रचलन में आ जाएं तो हमें समझना चाहिए कि हमारे मुहावरे  सफल हुए। ये मुहावरे किन्हीं प्रसंगों को सार्थक बनाते हैं। बहरहाल, जिन सन्दर्भों में मुहावरों का सृजन हुआ, क्या उन्हीं सन्दर्भों को फिर से जीया जा सकता है? यदि नहीं जीया जा सकता तो वे मुहावरे अलोकप्रिय होकर सामाजिक पटल से गायब हो जाएंगे। 

इस प्रकार मुहावरों और लोकोक्तियों पर केंद्रित यह अनूठी संगोष्ठी अत्यंत मनोरंजक और ज्ञानवर्धक रही। इसके माध्यम से दर्शकों और श्रोताओं के मुहावरों से संबंधित कोश में उल्लेखनीय वृद्धि हुई। दर्शकों और श्रोताओं की टिप्पणियों का उल्लेख करके इस गोष्ठी को और अधिक जनप्रिय बनाया गया। आखिर में, कार्यक्रम का समापन करते हुए सुश्री आस्था देव ने सभी चर्चाकारों और ज़ूम तथा यूट्यूब से जुड़े दर्शकों एवं श्रोताओं को धन्यवाद ज्ञापित किया। 

 

(प्रस्तुति : डॉ. मनोज मोक्षेंद्र)

 

न्यूज़ सोर्स : wewitnessnews