लन्दन : १७ जुलाई, २०२२ : ख्यातिलब्ध प्रवासी साहित्यकार दिव्या माथुर द्वारा संचालित  "वातायन" मंच के बैनर तले दिनांक १६ जुलाई, २०२२ को १११ वीं  साप्ताहिक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। साप्ताहिक आधार पर चल रही संगोष्ठियों के क्रम में यह संगोष्ठी प्रख्यात प्रवासी साहित्यकार उषा राजे सक्सेना के कथा-संग्रह "और तुझे क्या चाहिए" के लोकार्पण एवं इससे संबंधित चर्चा पर केंद्रित था। यह संगोष्ठी लन्दन के समयानुसार सायं ४ बजे से ५ बजे तक तथा भारत के समायानुसार ८.३० बजे से रात्रि के ९.३० बजे तक आयोजित हुई। संगोष्ठी की रुपरेखा इस प्रकार थी :-

स्वागत: आस्था देव

परिचय: प्रस्तोता : डॉ. निखिल कौशिक

पुस्तक लोकार्पण

प्रस्तावना : डॉ. रोहिणी अग्रवाल

सरोजिनी नौटियाल (वक्तव्य)

आशीष कंधवे (वक्तव्य)

तेजेंद्र शर्मा , एम.बी .ई. (अध्यक्षीय वक्तव्य)

मेहमान लेखकों की टिप्पणियाँ

डॉ. मनोज मोक्षेंद्र (धन्यवाद ज्ञापन)

आरम्भ में डॉ. निखिल कौशिक ने कार्यक्रम की रुपरेखा प्रस्तुत की तथा कथाकार उषा राजे सक्सेना का साहित्यिक परिचय दिया और उनके कहानी-संग्रह "और तुझे क्या चाहिए" में संगृहीत कहानियों के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि उषा की कहानियां विशेष रूप से भारतवंशी प्रवासियों की विडम्बनाओं, उनके संघर्षों और बदलती मानसिकताओं को अभिव्यक्त करती हैं। संगोष्ठी के अध्यक्ष श्री तेजेन्द्र शर्मा के कर-कमलों से पुस्तक का लोकार्पण करतल-ध्वनि के बीच किया गया। उसके पश्चात् डॉ. रोहिणी अग्रवाल ने अपनी प्रस्तावना में उषा के संघर्षपूर्ण जीवन की प्रशंसा करते हुए कहा कि वह एक आशावादी कथाकार हैं जो भविष्य के सुंदर सपने देखती हैं। डॉ. रोहिणी ने कहा कि उषा की कहानियां स्थितियों को वर्णित करती हैं। उनकी कहानियां शहर में घूमते दर्पण की तरह होती हैं। उन्होंने इस संग्रह में संकलित दस कहानियों में से कुछ कहानियों में व्याप्त विचारधारा पर भी प्रकाश डाला।

वक्ताओं के समीक्षात्मक विवेचन के क्रम में डॉ. सरोजिनी नौटियाल ने कहा कि इस संग्रह की कहानियों में जग-जीवन के अनेकानेक प्रतिरूप विद्यमान हैं। चूँकि उन्होंने लन्दन में रहकर कहानियां लिखी हैं इसलिए इनमें लन्दन की आबोहवा, यहाँ के समाज और व्यवस्थाओं का चित्रण मिलता है। उन्होंने कहा कि कथानक, प्रस्तुतीकरण और संवेदना के तत्वों के मद्देनज़र उषा कि कहानियां अपनी कसौटी पर खरी उतरती हैं। उन्होंने कहा कि "एक मुलाकात" कहानी में भारत की पृष्ठभूमि है जिसमें भारतीयता की गंध मिलती है। उन्होंने संग्रह की कुछ कहानियों के लंबे शीर्षक को लघु करने की सलाह दी। उन्होंने कहानियों में व्याप्त विचारधारा को क्रमानुसार प्रस्तुत किया।

तदुपरांत, संपादक और लेखक डॉ. आशीष कंधवे ने कहा कि लोकार्पित पुस्तक के शीर्षक वाली कहानी पर एक घंटे तक विमर्श किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि उषा राजे को प्रवासी कहानीकारों के आंदोलन का सूत्रपात करने वाला माना जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि उषा ने जिस परिवेश को छोड़ कर जिस नए परिवेश में आई हैं, उनकी कहानियां इन दोनों परिवेशों के बीच की सांस्कृतिक और मानसिक चेतनाओं में अंतर को बिंबित करती हैं। उन्होंने कहानी के छह तत्त्वों की चर्चा करते हुए कहा कि उषा की कहानियां कुछ हटकर हैं। उन्होंने 'इंटरनेट डेटिंग' और 'हिंदी माथे की बिंदी' कहानियों के सन्दर्भ में कहा कि ये परंपरा और लिक से हटकर वैश्विक चिन्तन की और ले जाती हैं। उन्होंने कहानियों का विवेचन भाषा-शिल्प के आधार पर किया तथा कहा कि उनकी कहानियां बहुत मनोवैज्ञानिक नहीं हैं। उन्होंने उषा की कहानियों को आलोचनात्मक परिप्रेक्ष्य में वर्णित करने का प्रयास भी किया और कहा कि कई बार ऐसा लगता है कि उनकी कहानियां मूक हैं। उन्होंने बताया कि उषा की कहानियां संवेदनशील, विवेकशील और स्वप्नशील होने के कारण उनमें उनकी बेचैनी जब शब्द-रूप में ढलती है तो एक कहानी आकार लेती है। उनके पात्र स्वयं को उद्घाटित करते हैं जिसके लिए लेखिका कोई प्रयास नहीं करती हैं।

अपने अध्यक्षीय भाषण में तेजेन्द्र शर्मा ने कहा कि उषा प्रवासी कहानीकारों में एक 'प्राइम' स्थान धारित करती हैं। उन्होंने ब्रिटेन आने का बाद ही कहानियां लिखनी शुरू कीं तथा उन्होंने भारत से इसकी विरासत नहीं अवधारित कीं। शुरुआती दौर की उनकी कहानियों में जिस व्यक्ति से मिलती थीं और उसकी घटनाएं सुनती थीं, उनमें उन्हीं सब का प्रक्षेपण होता था। उन्होंने कहा कि इस प्रस्तुत संग्रह में भी उनकी कहानियां घटनात्मक हैं। उषा की कहानियों में में लन्दन की घटनाएं और पात्र हैं तथा वह यहाँ के जीवन में अंदर तक झांकती हैं। इस संग्रह की कहानियां नोस्टाल्जिया के विचार-भाव को व्यक्त नहीं करती हैं जबकि अधिकतर प्रवासी कथाकार नोस्टाल्जिया से ग्रस्त दिखाई देते हैं। उन्होंने कैनेडियाई कथाकार सुधा ओम ढींगरा का सन्दर्भ देते हुए कहा कि उनकी एक कहानी में पत्नी अपने पति द्वारा प्रताड़ित होती है जबकि उषा अपनी कहानियों के पात्रों के साथ एक रिश्ता बनाते हुए घटनाओं के साथ भी आत्मीय हो जाती हैं।

संगोष्ठी जब अंतिम चरण में आई तो स्वयं उषा राजे ने अपने विचार प्रकट किए तथा कहा कि उन्हें पता चला कि वास्तव में वह क्या लिखती हैं। उन्होंने संगोष्ठी के प्रस्तोता, सभी वक्ताओं और अध्यक्ष तेजेन्द्र शर्मा को धन्यवाद दिया। कतिपय श्रोता-दर्शकों ने भी अपने विचार प्रकट किए। कादंबरी जी ने कहा कि लोकार्पण के समय लेखक और उसकी कृति की आलोचना के बजाय, प्रशंसा ही की जानी चाहिए।

कार्यक्रम के समापन पर, मनोज मोक्षेन्द्र ने कथाकार, संगोष्ठी के अध्यक्ष, वक्ताओं और श्रोता-दर्शकों को धन्यवाद ज्ञापित किया।

 

(प्रेस विज्ञप्ति)

--डॉ. म. मो.

 

 

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