लन्दन - १४ अगस्त, २०२२ : वैश्विक मंच "वातायन" के तत्वावधान में ११४वीं प्रवासी संगोष्ठी का शुभारंभ दिनांक :  १३ अगस्त, २०२२ (शनिवार) को भारतीय समय के अनुसार रात्रि ८.३० पर किया गया जो कोई डेढ़ घंटे तक चलता रहा। इस संगोष्ठी में ख्यातिलब्ध शख्सियत--अनीता बरार जी से रू-ब-रू होने का सुअवसर मिला। अनीता बरार विक्टोरिया (ऑस्ट्रेलिया) में कम्युनिटी-अम्बेस्डर हैं तथा नेशनल रेडियो-टीवी चैनल में हिंदी रेडियो प्रोड्यूसर और उद्घोषक हैं। इसके अतिरिक्त, वह थिएटर और फिल्म निर्माण से भी लम्बे समय से सम्बद्ध रही हैं। 

अनीता बरार ने वर्ष २००७ में "क्रॉसिंग दि लाइन" नामक एक वृत्तचित्र का निर्माण किया था जो भारतीय स्वतंत्रता की घोषणा की पृष्ठभूमि में भारत-विभाजन के कारण विस्थापितों पर हुए ह्रदय-द्रावक अत्याचार पर उनकी दशा का विवरण प्रस्तुत करता है। वातायन मंच पर इसी डाक्यूमेंटरी फिल्म को प्रदर्शित किया गया जिसे श्रोता-दर्शकों ने भाव-विह्वल होकर देखा और वे उस दौर की महत्वपूर्ण घटनाओं से रू-ब-रू हुए। 

इस संगोष्ठी के प्रस्तोता पद्मश्री पद्मेश गुप्त ने आरम्भ में अपने सुपरिचित अंदाज़ में इस संगोष्ठी की रूपरेखा प्रस्तुत की। उन्होंने बताया कि आज़ादी के वर्ष १९४७ में विभाजन का दंश झेलने वाले भारतीयों का एक स्थान से दूसरे स्थान की ओर पलायन करना कितना ह्रदय-विदारक रहा है! उन्होंने कहा कि लेखिका और फिल्म-निर्मात्री अनीता बरार की डॉक्यूमेंटरी फिल्म उसका महत्वपूर्ण दस्तावेज है। 

तत्पश्चात, समीक्षक और लेखिका डॉ. विजय शर्मा ने अपने वक्तव्य में कहा कि आज़ादी के ऐलान के पहले से ही कल्पित पाकिस्तान और भारत से लोगबाग बड़ी संख्या में एक स्थान से दूसरे स्थान को पलायित करने लगे। इस द्रवित करने वाले पलायन में हिन्दू, मुस्लिम और सिख एक-दूसरे के खून के प्यासे दिखे। अनीता बरार ने बताया कि वह स्वयं तो उस लूटपाट, कत्लेआम और स्त्रियों पर किए गए अत्याचारों की प्रत्यक्षदर्शी नहीं रही हैं लेकिन इस वृत्तचित्र में उन्होंने विस्थापितों के पलायन को यथार्थ रूप में पेश करने की कोशिश की है। 

कार्यक्रम के अगले चरण में डाक्यूमेंटरी फिल्म का प्रदर्शन किया गया तथा यह फिल्म निर्धारित एक घंटे से अधिक समय तक दिखाई गई जिसे दर्शक अपनी सुध-बुध खोकर देखते रहे। इस डॉक्यूमेंटरी फिल्म को विस्थापन का दंश झेल चुके लोगों के जीवंत साक्षात्कारों और बॉलीवुड की महत्वपूर्ण फिल्मों से उद्धृत चलचित्रों से यथार्थपरक बनाया गया है। लेखिका और फिल्म-निर्मात्री अनीता बरार ने वर्तमान पाकिस्तान के उन लोगों के साक्षात्कारों को प्रदर्शित किया है जिन्होंने अपनी नंगी आँखों से विस्थापन के दौरान क्रूरताओं को स्वयं झेला था। इसी तरह, विस्थापन के चश्मदीद उस पीढ़ी के जीवित भारतीयों के साक्षात्कार भी इस फिल्म में शामिल किए गए हैं। फिल्म की पटकथा स्वयं अनीता बरार ने लिखी थी जबकि अल्प-तकनीकी सुविधाओं के अभाव में भी इसमें जो सजीवता का संपुट किया गया है, वह काबिले-तारीफ़ है। 

कार्यक्रम का समापन करते हुए डॉ. मनोज मोक्षेन्द्र ने अनीता बरार, डॉ. विजय शर्मा, डॉ. पद्मेश गुप्त तथा श्रोता-दर्शक के रूप में समस्त उपस्थितों को हार्दिक धन्यवाद ज्ञापित किया। उन्होंने कहा कि इस प्रकार के कार्यक्रमों की संकल्पना तैयार करने और बड़े स्तर पर महत्वपूर्ण शख्सियतों तथा दर्शकों को जोड़ने के दिव्या माथुर के श्रमसाध्य प्रयासों की मुक्तकंठ से सराहना की जानी चाहिए। 

 

(प्रेस विज्ञप्ति )

न्यूज़ सोर्स : WEWITNESS LITERARY DESK