लन्दन : दिनांक २८-०८-२०२२ : दूसरे वर्ष में प्रवेश कर चुके तथा साहित्यिक पिच पर संगोष्ठियों की शतक लगा चुके 'वातायन' मंच के इंद्रधनुषीय कार्यक्रमों में नित नए-नए प्रयोग किए जा रहे हैं तथा इन प्रयोगों की सूत्रधार प्रख्यात साहित्यकार दिव्या माथुर हैं। संगोष्ठियों के इसी क्रम में, दिनांक २७ अगस्त को जो गोष्ठी आयोजित की गई, वह वातायन और कैनेडा की हिंदी राइटर्स गिल्ड का समवेत आयोजन थी। विषय था 'दो देश, दो कहानियां'। इसमें दो अलग-अलग देशों के कथाकारों नामत: अमरीका की इला प्रसाद और ब्रिटेन की डॉ. वन्दना मुकेश ने अपनी-अपनी कहानियों का वाचन किया। उनकी कहानियों की समीक्षा की लब्ध-प्रतिष्ठ कथाकार महेश दर्पण ने, जिन्होंने इस संगोष्ठी की अध्यक्षता भी की। 

कार्यक्रम का आरंभ करते हुए संगोष्ठी के प्रस्तोता आशीष मिश्रा ने दोनों कथाकारों का संक्षिप्त परिचय दिया, तदुपरांत उन्होंने सह-संयोजक डॉ. शैलजा सक्सेना से अनुरोध किया कि वह इस संगोष्ठी को आगे बढ़ाएं। कैनडा की लेखिका डॉ. सक्सेना ने बताया कि कहानी-वाचन और श्रवण की परंपरा बहुत प्राचीन है। उन्होंने आगे कहा कि अपनी कहानियों के माध्यम से कथाकार अपने देश की संस्कृति और चेतना को स्वर देता है। उसके बाद आशीष मिश्रा ने इला प्रसाद को कहानी पाठ के लिए आमंत्रित किया। 

इला प्रसाद की कहानी "सेल" बाजार संस्कृति पर करारा चोट करती है। घर से बाजार तक मार्केंटिंग कल्चर ने लोगों को अपनी गिरफ्त में ले रखा है। इस अपसंस्कृति ने लोगों में सुबह से शाम तक नए सामान खरीदने और पुराने सामानों को बदलने की होड़-सी लगी हुई है। इला ने पति-पत्नी के बीच पुरानी कार जैसी वस्तुओं को घर से रफा-दफा करने के लिए जो संवाद बुना है, वह अत्यंत मार्मिक है। इसके अलावा बाजार में सामानों की बिक्री हेतु विज्ञापनों की व्याप्तता पर भी इला प्रसाद प्रकाश डालती हैं। जब बाजार में सेल लगी होती है तो इसके लिए ख़रीदारों में लगी होड़ का चित्रण कहानी में प्रभावशाली है --लोगबाग सुबह से ही तम्बू लगाकर ऐसे सामानों को लेने के लिए लाइन में लग जाते हैं। सेल्स गर्ल सभी का अभिवादन करती है और इस बाजारवाद में खरीदफरोख्त 'थैंक्सगिविंग' से 'क्रिसमस सेल' में बदल जाती है। सामान खरीदकर घर लौट चुके लोगों की मुद्रा ऐसी है जैसेकि वे जंग जीत कर लौटे हों। 

समीक्षक महेश दर्पण ने इला की कहानी की सफल शल्य-क्रिया करते हुए कहानी के उत्तम स्वास्थ्य की कामना की। उन्होंने कहा कि हम उस समाज से आए हुए हैं जहाँ कहानी सुनने और सुनाने में एक खूबसूरत अदा हुआ करती थी। इला ने अपनी सहजता, कुशलता और लयबद्धता के साथ इस कहानी को बुना है तथा जितनी सादगी से कहानी को कागज पर लिखा है, उसी भाव-मुद्रा में इसका ध्वन्यात्मक पाठ भी किया है। पात्रों के संवाद की भाषा स्वाभाविक है तथा वातावरण सृजन और बाजारवाद के अनुकूल पात्रों की आदतों का चित्रण सुंदर है। उन्होंने कहा कि आज के प्रवासी कथाकार मुख्य धारा के कथाकार हैं। 

संगोष्ठी के दूसरे चरण में, ब्रिटेन की कथाकार डॉ. वंदना मुकेश ने अपनी कहानी 'गॉड ब्लेस यू' का हृदयस्पर्शी पाठ किया जिसमें कथानक और कहानी के उद्देश्य को बड़ी सूक्ष्मता से पिरोया गया है। आरम्भ में कहानी इकतरफा प्रेम-संबंध की कहानी जैसी लगती है--कवि और एक महिला-श्रोता के बीच, जो पाश्चात्य संस्कृति को आत्मसात करना चाहती है और एक कवि के साथ अनचाहे ही वार्तालाप में व्यस्त हो जाती है। महिला की उस कवि के धूम्रपान की आदत के प्रति वितृष्णा कई-एक बार उजागर होती है। कहानी में वंदना द्वारा पृष्ठभूमि का सृजन बड़ी सिद्धहस्तता से किया गया है। कवि हम्फ्री बार-बार महिला का सामीप्य तलाशता है तथा हर बार छूटते ही उसे 'गॉड ब्लेस यू एंड योर फॅमिली' का आशीर्वाद देता है; लेकिन वह उसे किसी न किसी बहाने से टरका देती है। निःसंदेह, वंदना एक अविवाहित कवि के अंदरूनी, बिखरे हुए भौतिक जीवन में झांकने की कोशिश करती हैं जो पाठकों के लिए दिलचस्प है। पर, अचानक हम्फ्री की मृत्यु की खबर महिला को पश्चाताप से भर देती है। वह उसे याद करते हुए जब चर्च जाती है तो उसकी आवाज़ उसके कानों में गूंजती है --'गॉड ब्लेस यू एंड योर फॅमिली।' 

समीक्षक महेश दर्पण बताते हैं कि वंदना की कहानी मानवीय स्पर्श की कहानी है जिसमें हम्फ्री के पास सभी भौतिक साजो-सामान होते हुए उसका अकेलापन उस पर भारी पड़ जाता है जबकि वह  एक साथी की तलाश में लगातार हाथ-पैर मारता रहता है। वह जिसको अपने साथ लेना चाहता है, वह उसके कपड़ों और अन्य चीजों को भी बड़ी संजीदगी से मन में धारित करता है। इस कहानी में ऐसा लगता है कि जैसे हम एक बहाव के साथ चल रहे हैं। हम इसी भाव-मुद्रा में उस कुत्ते के साथ भी आत्मीय हो जाते हैं, जो कवि को बहुत प्रिय है। इस कहानी की खूबी यह है कि यह एक झटके में किसी को स्वीकार या अस्वीकार नहीं करती है, यह धीरे-धीरेअनुभवों के साथ उसके साथ जुड़ती चली जाती है। 

संगोष्ठी के अगले पड़ाव पर, आशीष मिश्रा प्रबुद्ध श्रोता-दर्शकों से उनकी राय निवेदित करते हैं और जो लोग अपने विचार प्रकट करते हैं, उनमें डॉ. अरुण अजितसरिया, डॉ. जयशंकर यादव और डॉ. मनोज मोक्षेंद्र के नाम उल्लेखनीय हैं। तदुपरांत, उन्होंने ज़ूम और यू-ट्यूब से जुड़े हुए श्रोता-दर्शकों को धन्यवाद दिया। इनमें कुछ महत्वपूर्ण नाम इस प्रकार हैं : पद्मश्री टोमियो मीजोकामी, डॉ. राजलक्ष्मी कृष्णन, डॉ. जयशंकर यादव, डॉ. अनूप भार्गव, सुषमा भरद्वाज, मोहन बहुगुणा, मलय रंजन, सरिता पांडेय, अरुण सभरवाल, रेनू सिंह, रिद्धिमा, गीतू गर्ग, पूजा अनिल, सीमा सिंह, आशा बर्मन, आशीष रंजन, डॉ. मनोज मोक्षेन्द्र, दुर्गा सिन्हा, सौभाग्य कोराले, स्वर्ण तलवार, शन्नो अग्रवाल, अपूर्व सरल शर्मा आदि। 

 

 

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न्यूज़ सोर्स : Literary Desk