लन्दन, दिनांक ०४-०९-२०२२ : साहित्य, संस्कृति और ललित कलाओं की वैश्विक संस्था "वातायन" के अंतर्गत सतत चल रही संगोष्ठियों के क्रम में दिनांक ०३-०९-२०२२ (शनिवार) को एक विशेष संगोष्ठी (क्रमांक- ११७) का आयोजन किया गया। इसके अंतर्गत, चित्रकला और साहित्य को समर्पित रचनाकार महेश वर्मा की कलाकृतियों को वीडियो के माध्यम से प्रदर्शित किया गया तथा उनकी कविताओं का भी भरपूर आनंद उठाया गया। मंच पर उपस्थित प्रबुद्धजनों और जूम तथा यूट्यूब से जुड़े श्रोता-दर्शकों ने इस कार्यक्रम की मुक्त कंठ से सराहना की। 

संगोष्ठी का संचालन कर रही आई टी प्रोफेशनल और ख्यात साहित्यकार ऋचा जैन ने कार्यक्रम की शुरुआत करते हुए महेश वर्मा की कला और साहित्य के क्षेत्र में उपलब्धियों पर प्रकाश डाला। अत्यंत सुरुचिपूर्ण ढंग से संगोष्ठी का संचालन कर रही ऋचा ने बताया कि वर्मा की रचनाएं और रेखाचित्र विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहते हैं। उन्होंने राजकमल प्रकाशन द्वारा वर्मा के सद्य: प्रकाशित काव्य संग्रह "धूल की जगह" की भी चर्चा की। यह पुस्तक, संगोष्ठी की चर्चा के केंद्र में थी तथा इसी पुस्तक से महेश वर्मा ने चुनिंदा कविताओं का पाठ भी किया। उन्होंने बताया कि चित्रकला की प्रेरणा उन्हें अपने ज्येष्ठ भ्राता से मिली जबकि उन्होंने उन्हें सलाह दी कि वह कविता को अपने सृजन का माध्यम बनाएं। महेश ने अपने अनेक बचपन की यादों का उल्लेख करते हुए संगोष्ठी को सौष्ठव स्वरूप प्रदान किया।  

संगोष्ठी की अध्यक्षता के लिए प्रख्यात साहित्यकार लीलाधर मंडलोई को आमंत्रित किया गया था परन्तु किन्हीं कारणों से वह मंच पर उपस्थित नहीं हो सके। तदनन्तर, महेश वर्मा के प्रति उनके द्वारा प्रेषित उद्गार को ऋचा जैन ने पढ़कर सुनाया। कला-सृजक महेश मन के कवि हैं जिनकी कवि-सुलभ आँखें काव्यमय अभिव्यक्तियों को एक नया रूप प्रदान करती हैं। कल्पना, चिंतन और अनुभव की गारे-मिट्टी से वह कला और कविता के भव्य भवन का निर्माण करते हैं। जहाँ उनकी कविताओं में करुणा और उल्लास का संपाक है, वहीं वह स्वप्रयास से अपनी अमूर्त अभिव्यक्ति को यथार्थपरक मूर्त रूप प्रदान करते हैं। उनकी कला और कविता में जो स्वर है वह लाउड न होकर, मद्धिम है। उनकी रचनाओं में सामाजिक और राजनीतिक हस्तक्षेप तो है लेकिन वह अंतर्भूत है।

उल्लेखनीय है कि महेश वर्मा को "वातायन मंच" पर पेश करने का प्रस्ताव सुश्री तिथि दानी ने किया था जो स्वयं एक प्रतिष्ठित कवयित्री और चित्रकला प्रेमी हैं। तिथि के इस प्रयास के लिए "वातायन मंच" की सूत्रधार दिव्या माथुर और समस्त उपस्थित श्रोता-दर्शकों ने धन्यवाद दिया।  तिथि ने महेश वर्मा से कतिपय प्रश्न भी किए जैसेकि क्या अनुवादक को शाब्दिक अनुवाद करना चाहिए। इस पर अनुवाद-कार्य में दक्षता हासिल कर चुके महेश ने कहा कि एक अनुवादक को शाब्दिक अनुवाद पर ही अधिक अमल करना चाहिए, न कि भावात्मक अनुवाद पर। तत्पश्चात, महेश ने 'अनुवाद' शीर्षक से एक कविता का वाचन भी किया। 

कार्यक्रम के समापन पर ऋचा ने कहा कि ऐसे विशिष्ट कार्यक्रमों के लिए दिव्या माथुर के प्रयासों की तहे-दिल से सराहना की जानी चाहिए क्योंकि ऐसे कार्यक्रमों के लिए जिस प्रयत्नलाघव की आवश्यकता होती है, उसके लिए दिव्या सर्वोपयुक्त हैं। आखिर में, सभी उपस्थितजनों, यथा-पद्मश्री टोमियो मीजोकामी, डॉ. जयशंकर यादव, डॉ. अनूप भार्गव, शैल अग्रवाल, विजय नागरकर, अरविंद कुमार शुक्ल, सरिता पांडेय, अरुण सभरवाल, रेनू यादव, गीतू गर्ग, पूजा अनिल, सीमा सिंह, आशा बर्मन, आशीष रंजन, डॉ. मनोज मोक्षेन्द्र, दुर्गा सिन्हा, सौभाग्य कोराले, स्वर्ण तलवार, शन्नो अग्रवाल, अपूर्व सरल शर्मा आदि को तथा यूट्यूब के माध्यम से जुड़े श्रोता-दर्शकों को ऋचा जैन ने धन्यवाद ज्ञापित किया। 

न्यूज़ सोर्स : wewitness literary desk