लन्दन : २५ सितम्बर २०२२ : वैंश्विक हिंदी परिवार की एक प्रमुख घटक "वातायन" (लन्दन) के तत्वावधान में दिनांक २४ सितंबर २०२२ को लघुकथा पर आधारित एक वैश्विक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। "वातायन" के बैनर तले संगोष्ठियों की कड़ी में यह १२०वीं संगोष्ठी थी जो हिंदी साहित्य की लोकप्रिय विधा 'लघुकथा' पर  केंद्रित थी। लब्ध-प्रतिष्ठ प्रवासी कथाकार दिव्या माथुर इन संगोष्ठियों की संयोजक रही हैं जो बड़ी शिद्दत और सूझबूझ से विभिन्न साहित्यिक और सांस्कृतिक विषयों पर इनका आयोजन पिछले ढाई वर्षों से करती आ रही हैं। ये संगोष्ठियां,  विश्वभर में हिंदी से संबंधित ऑनलाइन आयोजित हो रहे कार्यक्रमों में सबसे अधिक रेखांकित की जा रही हैं। 
 
इस १२०वीं संगोष्ठी के अध्यक्ष और समीक्षक थे--मशहूर साहित्यकार डॉ. बलराम अग्रवाल जो लघुकथा विधा के जानेमाने शिल्पकार हैं। लघुकथा श्रंखला-२ की इस संगोष्ठी के प्रतिभागी लघुकथाकार थे - प्रोफ़ेसर ऋचा शर्मासुरेंद्र कुमार अरोड़ाअर्पणा संत सिंहडॉ. संजीव कुमार और डॉ. नीरज शर्मा सुधांशु। संचालक और प्रस्तोता थे - डॉ. मनोज मोक्षेंद्र तथा सह-संचालक थे - लन्दन के साहित्यकार आशीष मिश्र।
 
कार्यक्रम के आरंभ में आशीष मिश्र ने संगोष्ठी के विषय की चर्चा की तथा डॉ. मोक्षेंद्र को मंच-संचालन के लिए आमंत्रित किया जिन्होंने पांचों लघुकथाकारों को लघुकथाएं सुनाने के लिए मंच पर बारी-बारी से बुलाया। महाराष्ट्र के अहमद नगर कॉलेज की प्रोफ़ेसर ऋचा शर्मा ने 'अदालत में हिंदी' शीर्षक से हिंदी की दुर्दशा पर अपनी लघुकथा का पाठ किया। गाज़ियाबाद के सुप्रसिद्ध साहित्यकार सुरेंद्र कुमार अरोड़ा ने 'इकरा' लघुकथा में विस्फोटक जनसंख्या के लिए ज़िम्मेदार ऐसे परिवारों को दुतकारा जो संतान-वृद्धि को ईश्वरीय देन मानते हैं। वर्ल्ड लिटरेरी फोरम की  इंटरनेशनल एम्बेसडर अर्पणा संत सिंह ने 'गोद के इंतज़ार में सदियों से' लघुकथा में स्त्री की बेचारगी को बड़े सलीके से उकेरा। , 'अनुस्वार' पत्रिका के मुख्य संपादक डॉ. संजीव कुमार ने 'लोग क्या कहेंगे' शीर्षक से जिस लघुकथा का पाठ किया उसमें उन्होंने आज के समाज जोर पकड़ रहे तलाक की समस्या पर मार्मिक रूप से चर्चा की। पेशे से चिकित्सक और साहित्यकार-प्रकाशक डॉ. नीरज शर्मा सुधांशु ने 'पीर पराई नहीं' शीर्षक से लघुकथा का पाठ किया जिसमें बेटे का माँ के मातृत्व के प्रति भावुक करने वाला अहसास दिल को कचोट जाता है। इन लघुकथाकारों के ​अतिरिक्त, आशीष मिश्र ने अपनी लघुकथा में  तनावयुक्त आदमी की बेचैनी को रूपायित किया। तदनन्तर, डॉ. मनोज मोक्षेंद्र ने भी 'ले, आंसू पोंछ ले' लघुकथा में हृदयविहीन और बेईमान समाज को रेखांकित किया। ​
कार्यक्रम के अंतिम चरण में मंच के अध्यक्ष डॉ. बलराम अग्रवाल ने लघुकथा के भाव-पक्ष और कला-पक्ष पर व्यापक रूप से प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि लघुकथा में विस्तार में न जाते हुए सांकेतिक भाषा में कथ्य को नेपथ्य में छोड़ना ही श्रेयष्कर होगा। उन्होंने बताया कि इस विधा में लोक शब्दावलियों का प्रयोग किया जाना चाहिए। इस पर मोक्षेंद्र ने कहा कि लोक शब्दावलियों में बड़ी अभिव्यंजकता होती है। डॉ. अग्रवाल ने विस्तार में जाते हुए हिंदी की दुरावस्था पर भी प्रकाश डाला और लोगों के अंग्रेजी-प्रेम को दुतकारा। दिव्या माथुर ने टिप्पणी की कि आज की सभी लघु कथाएं समसामयिक विषयों पर थीं- सुंदर, सार्थक, रोचक, संवेदनशील और संदेशात्मक एवं समाज की विसंगतियों को उजागर करती हुईं। उन्होंने कहा कि बलराम अग्रवाल जी का अध्यक्षीय वक्तव्य लघुकथा पर एक कार्यशाला की तरह था। उन्होंने आगे कहा कि वक्तव्य-- समीक्षात्मक और ज्ञानवर्धक था, जिसे श्रोताओं ने बेहद पसंद किया। 
 
कार्यक्रम का समापन करते हुए आशीष मिश्र ने अध्यक्ष बलराम अग्रवाल और कार्यक्रम की संयोजक दिव्या माथुर को धन्यवाद ज्ञापित किया। तदनन्तर, आशीष मिश्र ने सभी लघुकथाकारों को हार्दिक बधाई दी और उनके साहित्यिक कद के लिए और ऊंचाइयां छूने की कामना की। उन्होंने ज़ूम और यूट्यूब से जुड़े श्रोता-दर्शकों को तन्मयता से संगोष्ठी से संबद्ध रहने और टिप्पणियां करने के लिए धन्यवाद दिया। श्रोताओं में मुख्य थे -- डॉ. जयशंकर यादव, डॉ. महादेव कोलूर, चंद्रमणि पांडेय, सरिता पांडेय, राधा जनार्दन, आशीष रंजन, गीता गर्ग, कल्पना भट्ट, रिद्धिमा आदि जिन्होंने अपनी टिप्पणियों से कथाकारों का उत्साहवर्धन किया। 
न्यूज़ सोर्स : Literary Desk, wewitness