लन्दन, २० नवंबर, २०२२ : दिनांक १९ नवंबर, २०२२ को 'वातायन' मंच के तत्वावधान में 'वातायन यूके-प्रवासी संगोष्ठी १३२' का भव्य आयोजन किया गया जिसका विषय था-अवधी लोकगीत परंपरा (लोकगीत शृंखला - १० : अवधी)। इस संगोष्ठी को  लोक साहित्य, नवगीत और बाल साहित्य के नामचीन लेखक डॉ. जगदीश व्योम की अध्यक्षता में आयोजित होना था किन्तु किन्हीं कारणों से डॉ. व्योम उपस्थित नहीं हो सके। अस्तु, यह संगोष्ठी अपने पूर्वनिर्धारित कार्यक्रम और निर्धारित समय के अनुसार आरम्भ हुआ तथा अत्यंत भावपूर्ण माहौल में इसका समापन हुआ।

मंच के संचालक और लन्दन के कवि आशीष मिश्र अपने परिचित अंदाज में इस कार्यक्रम को अंजाम तक ले गए। संगोष्ठी का श्रीगणेश मशहूर लोकगायिका और नृत्यांगना मालती अवस्थी की एक वीडियो प्रस्तुति से हुआ जबकि संध्या सिंह ने अवधी भाषा और अवधी लोकगीत परंपरा के बारे में संक्षिप्त परिचय दिया। उन्होंने अवधी भाषा के दो महाकाव्यों नामत: 'पद्मावत' (मालिक मोहम्मद जायसी) और 'रामचरितमानस' (तुलसीदास) का उद्धरण देते हुए अवधी बोली के महत्त्व को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि फिजी और सूरीनाम में भी अवधी भाषाएं लोकप्रिय हैं।

तदनन्तर, आशीष मिश्र ने विदेशों में हिंदी अध्यापन कर चुकी तथा स्वतंत्र लेखन में दत्तचित्त--लतिका रानी को आमंत्रित किया जिन्होंने अवधी भाषा में श्रीरामचन्द्र की वंदना का मनमोहक गायन प्रस्तुत किया। लखनऊ आकाशवाणी में कार्यरत और संगीत नाटक अकादमी द्वारा पुरस्कृत, मीनू खरे ने बड़े मनोविनोदपूर्ण भाव-मुद्रा में 'अवधी प्यारी नेह बरसावे जैसे महतारी' जैसी अवध की कहावत उच्चरित हुए कहा कि अवधी एक वैभवपूर्ण और वैविध्यपूर्ण भाषा है जिसकी मिठास जगजाहिर है। उन्होंने बताया कि नारद मुनि संगीत को उसकी जन्मभूमि स्वर्ग से लेकर पृथ्वी पर आए तथा जब धरती पर इसमें लोकमानस का हस्तक्षेप हुआ तो लोकगीतों का प्रादुर्भाव हुआ। उन्होंने सुमधुर कंठ से अवधी बोली में एक गणपति वंदना प्रस्तुत करते हुए एक दादरा गायन भी पेश किया। अवधी लोकगीत में पर्यावरण सुरक्षा और भारतीय संस्कृति का सुन्दर सम्पुट बताते हुए उन्होंने पैरों तले रौंदी जाने वाली दूब को श्रीगणेश के माथे पर चढ़ाए जाने की परंपरा का निहिताशय भी बताया। इसके बाद, उन्होंने अवधी में एक न्योता का गायन प्रस्तुत किया और कहा कि न्योता या निमंत्रण किसी शुभकार्य पर दिया जाता है तथा इस अवसर पर न्योता गाया जाता है। तदुपरांत, लतिका रानी ने बाल विवाह की परंपरा को रेखांकित करते हुए एक अवधी लोकगीत को शास्त्रीय अंदाज़ में सुनाया जिसमें बालपन के भोलेपन को प्रदर्शित किया गया है। 'जुग-जुग जिए हो ललनवा, भवनवा के भाग जागल हो' मुखड़े वाला, बच्चे के जन्म पर गाया जाने वाला एक भावपूर्ण सोहर सुनाया और माहौल को झंकृत कर दिया। 

कार्यक्रम के समापन पर चुनिंदा दर्शक-श्रोताओं से टिप्पणियां आमंत्रित की गईं; प्रत्युत्तर में  मनोज मोक्षेन्द्र, कादंबरी मेहरा, तोमियो मिजोकामी, निखिल कौशिक, शकुंतला जैसे मंच पर उपस्थित प्रबुद्धजनों ने अपने-अपने उद्गार प्रकट किए।  किसी ने अवधी लोकगीत गाये तो किसी ने सहभागियों और वक्ताओं की प्रस्तुतियों की सराहना की।

अंत में, संध्या सिंह ने मंच पर उपस्थित सभी सहभागियों तथा जूम और यूट्यूब से जुड़े श्रोताओं और दर्शकों को धन्यवाद प्रेषित किया। विशेष रूप से वातायन की संयोजक दिव्या माथुर के श्रमशील प्रयासों की भूरि-भूरि प्रशंसा की। 

न्यूज़ सोर्स : Literary Desk