लन्दन, १८ दिसंबर २०२२ : वातायन-यूके वैश्विक संगोष्ठी शृँखला के अंतर्गत दिनांक १७ दिसंबर (शनिवार) २०२२ को लन्दन की लेखिका कादंबरी मेहरा की पुस्तक 'अतीत की अनुगूँज' का विमोचन हुआ तथा उस पुस्तक पर प्रख्यात लेखिका नासिरा शर्मा की अध्यक्षता में  चर्चा हुई। दिव्या माथुर के निर्देशन में इस प्रवासी संगोष्ठी-१३६ की प्रस्तोता और मंच-संचालक लन्दन की ही युवा साहित्यकार आस्था देव थीं। यह कार्यक्रम भारतीय समयानुसार रात्रि ८.३० बजे आरंभ हुआ तथा ९.३० बजे तक अविराम चलता रहा। 

कार्यक्रम का शुभारंभ डॉ. नंदिता साहू द्वारा गाए गए एक गीत 'निर्माणों के पावन युग में' से हुआ। गीत के समापन के पश्चात् डॉ. नंदिता ने बताया कि कादंबरी जी की यह संस्मरणात्मक पुस्तक उनके जीवन का सुंदर लेखा है जिसमें उन्होंने अपनी छोटी-छोटी, प्रेरणादायक घटनाओं का उल्लेख किया है। तदनन्तर, संगोष्ठी की अध्यक्ष डॉ. नासिरा शर्मा ने अपने लन्दन प्रवास के दौरान गुजारे गए दिनों को याद करते हुए कहा कि कादंबरी जी से उनकी मुलाकात अपने भारत-स्थित घर में हुई है। वह उतनी ही दिलचस्प बातें करती हैं, जितने दिलचस्प उनके संस्मरण होते हैं। उन्होंने कहा कि दो बातों में उनकी पुस्तक 'अतीत की अनुगूँज' उल्लेखनीय हैं--एक तो उनमें उनके अतीत की गूंज है, दूसरे उनके ज़ेहन के जज़्बातों की गूंज है। उनके पेरिस से संबंधित यात्रा-संस्मरण बहुत खूबसूरत लगे। तत्पश्चात, कादंबरी जी ने पुस्तक के संबंध में अपने उद्गार व्यक्त करते हुए कहा कि बचपन में १३ वर्ष की उम्र में उन्हें जो अनुभूति हुई थी, वही आज सार्थक हो रही है। उन्होंने भरसक कोशिश की है कि इस पुस्तक में उनके किसी नकारात्मक अनुभव का उल्लेख न हो तथा यह संस्मरण इतना सहज और सुबोध है कि एक दस साल का बच्चा भी इसे पढ़-समझ सकता है। अगली वक्ता बहु-प्रकाशित लेखिका डॉ. प्रभा मिश्रा ने कहा कि 'अतीत की अनुगूँज' कादंबरी जी की जीवन-यात्रा का वृत्तांत है। उन्होंने कहा कि कादंबरी जी ने इस पुस्तक में ब्रिटेन में माता-पिता के अलगाव के कारण बच्चों की परवरिश पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभावों, रंगभेद की गंभीर समस्याओं आदि का विश्लेषण इस पुस्तक की चौबीस संस्मरणों में किया है। इन सभी संस्मरणों के छोटे-छोटे शीर्षक अत्यंत आकर्षक हैं। हिंदी धर्म को मानने वाली कादंबरी जी ब्रिटेन में सभी धर्मों का आदर करती हैं, जैसाकि उनके संस्मरणों से विदित होता है। यह किताब कादंबरी जी के सकारात्मक चिंतन, स्वस्थ और मनोरंजक तथा शिक्षावर्धक पक्ष को बेहतरीन ढंग से प्रस्तुत करती है। 

कार्यक्रम के अगले चरण में सेवानिवृत्त प्राध्यापिका और लेखिका तथा गीत-संगीत में रूचि रखने वाली नीलांजला किशोर ने अपने वक्तव्य में बताया कि कादंबरी मेहरा जी की पुस्तक हर बार हमें चौंका देती है। उन्होंने उनकी चमकृत करने वाली पुस्तक 'चाय की विश्व-यात्रा' का सन्दर्भ देते हुए कहा कि उन्होंने जो कथात्मक संस्मरण ब्रिटेन के टूटते-बिखरते परिवारों के बारे में दिया है, वह शोक-गाथा की भांति है। उन्होंने कहा कि चीन-जापान के बारे में जो संस्मरण हैं, उनमें विस्तारित भारत की ही झलक पाते हैं। जैसाकि इस संस्मरण पुस्तक से स्पष्ट है, कादंबरी जी कहीं की भी यात्रा करने से पहले यह सुनिश्चित कर लेती रही हैं कि उन्हें क्या देखना है और किन-किन जगहों पर जाना है। उनके संस्मरणात्मक वर्णन झंकझोरने, झिंझोड़ने और हिलाने वाले होते हैं। 

कादंबरी जी के संबंध में ललित मोहन जोशी जी का वक्तव्य अत्यंत सारगर्भित और विश्लेषणात्मक रहा है। बहुमुखी प्रतिभा के धनी तथा विभिन्न साहित्यिक-सांस्कृतिक उपलब्धियों से नवाज़े गए एवं साहित्यिक संस्था 'सान्निध्य' के कर्ताधर्ता और फिल्म-इतिहासकार--ललित मोहन जोशी ने कहा कि कादंबरी जी का लेखन पूर्णतया स्वांत: सुखाय नहीं है। कादंबरी जी ने यह संस्मरण पुस्तक अपने सतत चिंतन के सिलसिलेवार अर्थयुक्त सुनिश्चित उद्देश्य से लिखा है। यह उनकी कल्पना की उड़ान का सुनिश्चित कथ्य है। भारत के मूल्यों के प्रति उनकी आस्था, हिन्दू दर्शन की सार्वभौमिकता के प्रति उनकी प्रतिबद्धता, सदियों से हुए भारत के औपनिवेशिक उत्पीड़न के प्रति उनका बौद्धिक आक्रोश इस पुस्तक में बिंबित है। उनके विदेशी प्रवास ने उन्हें अपनी जड़ों को सींचने का सुअवसर प्रदान किया है। यह पुस्तक कादंबरी जी के मानस का प्रवेश-द्वार है। तदन्तर केंद्रीय हिंदी निदेशालय (मानव संसाधन मंत्रालय) में सहायक निदेशक के रूप में कार्यरत, पुरस्कृत लेखिका डॉ. नूतन पांडे ने बताया कि समकाल में लिखे जा रहे संस्मरण अपेक्षाकृत वैविध्यपूर्ण हो गए हैं। कादंबरी जी की इस पुस्तक में उनके छात्रों की स्मृतियों को आज भी जीवित रखा गया है। संस्मरणों में अधिकतर कुछ ख़ास बालक हैं जो सामान्य बच्चों के साथ घुलमिल नहीं पाते हैं और वे उपेक्षित महसूस करते हैं। इस कारण वे उद्दंड हो जाते हैं। लेखिका ने बाल विकास के उन मनोवैज्ञानिक पहलुओं पर प्रकाश डालने की कोशिश की है जिससे कि उन्हें सही प्रेरणा तथा अनुकूल वातावरण के माध्यम से मुख्यधारा में लाया जा सके और इन बच्चों की ऊर्जा को सही दिशा में निवेशित किया जा सके। इस पुस्तक में कादंबरी जी ने अपने बचपन के अनुभवों को भी शामिल किया है। 

संगोष्ठी का समापन मनोज मोक्षेंद्र के धन्यवाद ज्ञापन से हुआ। उन्होंने कादंबरी मेहरा जी को उनकी नव-प्रकाशित और विमोचित पुस्तक के लिए बधाई दी और प्रख्यात लेखिका नासिरा शर्मा जी की उपस्थिति पर आभार प्रकट किया। उन्होंने डॉ. नंदिता साहू, डॉ. प्रभा मिश्रा,  नीलांजला किशोर, ललित मोहन जोशी और डॉ. नूतन पांडे जैसे प्रखर वक्ताओं को उनके सार्थक वक्तव्यों के लिए धन्यवाद संप्रेषित किया और सक्षम मंच-सञ्चालन के लिए आस्था देव् को बधाई दी। यू-ट्यूब और ज़ूम के माध्यम से जुड़े श्रोता-दर्शकों को भी धन्यवाद ज्ञापित करते हुए मनोज मोक्षेंद्र ने वातायन परिवार की तरफ से क्रिसमस के अवसर पर और आगंतुक नव-वर्ष के लिए सभी को मंगलकामनाएं प्रेषित कीं। 

न्यूज़ सोर्स : Literary Desk