लन्दन, २९ जनवरी २०२३ : विगत कोई ढाई वर्षों से निरंतर आयोजित की जा रही 'वातायन-यूके' की संगोष्ठियों के अंतर्गत दिनांक २८ जनवरी २०२३ को संगोष्ठी क्रमांक १३९ का भव्य आयोजन किया गया। 'वातायन-यूके' की सहयोगी संस्था वैश्विक हिंदी परिवार' तथा 'सिंगापुर हिंदी संस्था' ने भी इस संगोष्ठी के आयोजन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस संगोष्ठी का विषय था - 'देशप्रेम और बसंत पंचमी' जो अपने तरह की १२वीं संगोष्ठी थी। इसके अंतर्गत भारतीय परंपरा में पूरे वर्ष में आने वाले तीज-त्योहारों से संबंधित चर्चा की जाती है तथा उन विशिष्ट अवसरों को उत्सवित करने के लिए सांगीतिक प्रस्तुति भी की जाती है। यह १३९ वीं संगोष्ठी भी इसी तरह की थी। बीते २६ जनवरी को भारत में दो विशिष्ट आयोजन किए गए - एक तो गणतंत्र दिवस तथा दूसरी बसंत पंचमी क्योंकि ये दोनों त्यौहार अपने परंपरागत रूप में इसी तारीख को मनाए जाते हैं। 

इस संगोष्ठी की सूत्रधार और संचालक थीं - लन्दन की ही आस्था देव जिन्होंने अपने सुपरिचित अंदाज़ में इस संगोष्ठी का शुभारंभ किया जबकि उनके आग्रह पर डॉ. लतिका रानी ने इस कार्यक्रम की रूपरेखा प्रस्तुत की। उन्होंने बताया कि २६ जनवरी को वैश्विक आधार पर प्रति वर्ष मनाए जाने वाले गणतंत्र दिवस को ही हमारा संविधान लागू हुआ था जबकि बसंत पंचमी प्राचीन काल से मनाया जाने वाला एक बड़ा त्यौहार है। उन्होंने बताया कि बचपन में उन्हें गणतंत्र दिवस पर स्कूलों से निकाली जाने वाली प्रभात फेरियां अभी भी याद हैं जबकि उन्हें बच्चों में वितरित की जाने वाली मिठाइयों का बेसब्री से इंतजार रहा करता था। बसंत पंचमी ऐसा महोत्सव है जबकि सभी भारतीय जन पीले वस्त्र धारण करते हैं और माँ सरस्वती की आराधना के साथ इस उत्सव को भव्य तरीके से मनाते हैं। उन्होंने अत्यंत मधुर स्वर में 'हक़ीक़त' फिल्म में मोहम्मद रफ़ी के द्वारा स्वरबद्ध किए गए गीत 'कर चले हम फ़िदा जानो-तन साथियों, अब तुम्हारे सहारे वतन साथियों' का गायन प्रस्तुत किया। तदनन्तर, उन्होंने बसंत पंचमी से संबंधित एक लोकगीत भी सुनाया जिसके बोल थे 'अमवा की डारी पे मोर आ गया।'  

संगोष्ठी की अध्यक्षता ब्रिटेन भारतीय दूतावास में कार्यरत नंदिता साहू ने की। 

इन दोनों अवसरों को सांगीतिक स्वर-लहरियों से झंकृत करने के लिए मंच पर उपस्थित गायकों और गायिकाओं ने विशेषतया फिल्मों से लिए गए गीतों की मनभावन प्रस्तुति की। गुजरात की सुप्रसिद्ध गायिका विभूति शाह ने 'जिस देश में गंगा बहती है' फिल्म से लता मंगेशकर द्वारा गाए गए गीत  

'ओ बसंती पवन पागल ना जा रे, ना जा, रोको कोई' को अपने सधे हुए स्वर में सुनाकर सभी पर सम्मोहिनी की चादर डाल दी। डॉ. मनोज मोक्षेन्द्र ने 'जिस देश में गंगा बहती है' फिल्म से 'होठों पे सच्चाई रहती है और दिल में सफाई रहती है' गीत को प्रस्तुत किया। इसी क्रम में, आयरलैंड के अभिषेक त्रिपाठी ने 'हिंदुस्तान की कसम' का एक गीत 'हर तरफ अब यही अफ़साने हैं, हम तेरी आँखों के दीवाने हैं' का गायन दिल से  प्रस्तुत किया। फिल्म में उक्त गीत को महान गायक मन्ना डे ने गाया है। इसके पश्चात् बंगाल की गायिका देबजानी चक्रवर्ती ने फिल्म 'काबुली वाला' में मन्ना डे द्वारा गाए गए गीत 'ऐ मेरे प्यारे वतन, ऐ मेरे बिछुड़े चमन, तुझपे दिल कुर्बान' को बेहद हृदयस्पर्शी अंदाज़ में गाकर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। अरुणा सभरवाल ने इस अवसर को अलग रंग प्रदान करते हुए एक पंजाबी गीत का मनमोहक गायन प्रस्तुत किया। तदनन्तर, मंच की अध्यक्षा नंदिता साहू ने मुकेश का स्वरबद्ध किया हुआ गीत 'किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार' गाया और बाद में 'वन्दे मातरम' गीत भी अपनी सुरीली आवाज में प्रस्तुत किया। असम की गायिका जुली घिमरे ने लता मंगेशकर का मशहूर गीत 'ऐ मेरे वतन के लोगों, ज़रा आँख में भर लो पानी' को इतनी दक्षता से गाया कि हर जबान से वाहवाही निकल पड़ी। मंच की अध्यक्ष नंदिता साहू अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में इस संगोष्ठी के प्रतिभागी कलाकारों की सराहना की तथा दिव्या माथुर को उनके श्रमशील प्रयासों से आयोजित होने वाली ऐसी  गोष्ठियों के लिए तहे-दिल से धन्यवाद भी दिया। 

कार्यक्रम का समापन करते हुए सिंगापुर की हिंदी शिक्षिका डॉ. संध्या सिंह ने सभी प्रतिभागी सुर-साधकों तथा जूम और यूट्यूब के माध्यम से जुड़े हुए श्रोता-दर्शकों को धन्यवाद ज्ञापित किया। 

 

(प्रेस विज्ञप्ति)

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