लन्दन, ४ फरवरी २०२३ : दिव्या माथुर के संयोजन में 'वातायन-यूके' के अंतर्गत 'वातायन संगोष्ठी-१४०' का ऑनलाइन आयोजन किया गया।

इस कार्यक्रम को बड़ी संख्या में दर्शकों द्वारा 'जूम' और 'यू-ट्यूब' के माध्यमों से देखा और सराहा गया। श्रोता-दर्शकों में विश्वभर के बुद्धिजीवी और प्रबुद्ध साहित्य-प्रेमी उपस्थित थे, जिनमें प्रमुख थे-तोमियो मीजोकामी, डॉ. जयशंकर यादव, मणिक्याम्बा पेरुमल्ल, आदेश पोद्दार, लक्ष्मण प्रसाद डेहरिया, गीतू गर्ग, अनूप भार्गव, सौभाग्य कोराले, किरण सिंह, सरोज कौशिक, सरिता पांडेय, आस्था देव, डॉ. मनोज मोक्षेन्द्र आदि। 

इस संगोष्ठी की सूत्रधार थीं -दिल्ली विश्वविद्यालय (इंद्रप्रस्थ कॉलेज) की साहित्य-पिपासु प्रोफ़ेसर रेखा सेठी जिन्होंने विभिन्न कोणों से मोहन राकेश के नाटककार को देखने-परखने की श्लाघ्य कोशिश की। उनके साथ संवाद में हिस्सा ले रही थीं - प्रख्यात नाटककार और कथाकार मीरा कांत। उल्लेखनीय है कि प्रोफ़ेसर रेखा सेठी 'वातायन मंच' से ऐसे अनेक कार्यक्रमों की बौद्धिक वार्ताओं में प्रतिभागिता कर चुकी हैं। 'संगोष्ठी-१४०' का कुशल संचालन कर रही कवियत्री तिथि दानी ने बताया कि इस स्मृति और संवाद शृंखला-२८ के केंद्र में मोहन राकेश हैं जो एक नव-परिवर्तनकारी नाटककार थे। तिथि ने बताया कि यशस्वी साहित्यकार मोहन राकेश नयी कहानी के प्रवर्तक भी थे। उनके नाटक-आधे अधूरे, लहरों के राजहंस, आषाढ़ का एक दिन विश्व-प्रसिद्ध हैं। 

मोहन राकेश स्मृति और संवाद संगोष्ठी में चर्चा की शुरुआत करते हुए प्रोफ़ेसर रेखा सेठी ने मोहन राकेश के नाटक 'आधे अधूरे' के कतिपय अंशों का हृदयस्पर्शी वाचन भी किया। उन्होंने कहा कि मोहन राकेश एक संवेदनशील और यथार्थपरक नाटककार थे जिनके नाटकों में 'घर' का दृश्य बारंबार आता है जहाँ रिश्तों को पाजामे को तहाने की तरह सहेजने की कोशिश की गई है। उन्होंने मीरा कांत को संवाद में सहभागी बनाते हुए मोहन राकेश के नाटककार को परत-दर-परत खोला। मीरा कांत ने कहा कि मोहन राकेश ने प्रतीकात्मक ढंग से उलझे मानवीय रिश्तों को समझने-समझाने की कोशिश की है। वे घर की विभिन्न दिशाओं में कमरों के दरवाजों के जरिए रिश्तों के अभिप्राय को संकेतित करते थे। उनके नाटकों में प्रत्येक शब्द का गहरा निहिताशय है। उनके नाटक 'लहरों के राजहंस' में कितना ज्यादा रचनात्मक संघर्ष छिपा हुआ है! वे अपने लिखे हुए में बार-बार तरमीम करते थे। वे नाटककार के रूप में, मंचित किए जाने वाले अपने नाटकों के निदेशकों से मिलते थे तथा उन्हें रंग-कला के बारे में सुझाव भी देते थे। अर्थात मोहन राकेश नाट्य कला के सिद्धहस्त विशेषज्ञ थे। 

संगोष्ठी का समापन करते हुए ऋचा जैन ने प्रतिभागी संवादकारों को तहे-दिल से धन्यवाद दिया। उन्होंने प्रोफेसर रेखा सेठी और मीरा कांत के बौद्धिक चर्चाओं से प्राप्त ज्ञान को समस्त उपस्थितों और साहित्य-प्रेमियों के लिए उपादेय बताया। मणिक्याम्बा ने अपने उल्लेख में बताया कि आज मोहन राकेश के नाटकों की संवादात्मक प्रस्तुति बहुत ही प्रभावी रही। रेखा सेठी जी और मीरा कान्त ने तो जैसे समां बांध दिया। ऐसा लगा कि जैसे हम समानान्तर रंगमंच पर मोहन राकेश के नाटकों का मंचन देख रहे हैं। सब कुछ मनमोहक था। तदनन्तर, ऋचा जैन ने समस्त श्रोता-दर्शकों को आत्मीय धन्यवाद ज्ञापित किया तथा ऐसे कार्यक्रमों से रू-ब-रू कराने के लिए दिव्या माथुर के श्रमशील प्रयासों की सराहना की। 

 

(प्रेस विज्ञप्ति)

न्यूज़ सोर्स : wewitness literary desk