लन्दन, दिनांक : १८-०२-२०२३ : 'वातायन-यूके' के उपक्रम के अंतर्गत विगत ढाई वर्षों से अनवरत चल रही ऑनलाइन संगोष्ठियों के क्रम में, दिनांक १८ फरवरी २०२३ को एक नए सन्दर्भ में संगोष्ठी का आयोजन किया गया। विषय था - "छंद शास्त्र दिग्दर्शन : कार्यशाला - १" जिसके अंतर्गत एक बौद्धिक परिचर्चा और परिसंवाद का आयोजन किया गया। इसमें भाग लेने वाले क्लासिक काव्य साहित्य के दो विशिष्ट विद्वान थे, नामत: डॉ. मधु चतुर्वेदी और डॉ. संजीव कुमार। दोनों साहित्यकार अपनी बहु-प्रकाशित कृतियों के लिए विभिन्न सम्मानों से अलंकृत और नामचीन हैं। 

कार्यक्रम के तकनीकी सहायक और लन्दन के कवि आशीष मिश्र ने ऑनलाइन संगोष्ठी को हरी झंडी दिखाई और गौतमबुद्ध विश्वविद्यालय की सहायक प्रोफ़ेसर डॉ. रेणु यादव ने मंच का सुविध, श्लाघ्य संचालन किया। शुरुआत में, डॉ. रेणु ने डॉ. मधु चतुर्वेदी और डॉ. संजीव कुमार का विस्तृत साहित्यिक परिचय दिया एवं उनकी कृतियों तथा अलंकरणों की फेहरिस्त प्रस्तुत की। तदुपरांत, उन्होंने दोनों महाकाव्यों के कथानक को बड़े सरस ढंग से प्रस्तुत किया। उन्होंने दोनों साहित्यकारों से उनके महाकाव्यों में आए पात्रों और उनके उचित-अनुचित संबंधों के संबंध में जो प्रश्न किए, उनके उन्होंने सहज और सटीक उत्तर दिए। 

वास्तव में, इस संगोष्ठी में डॉ. चतुर्वेदी द्वारा विरचित महाकाव्य 'देवयानी' तथा डॉ. संजीव के महाकाव्य 'माधवी' के अंतर्गत, इनमें प्रयुक्त छंद शिल्प और छंद शास्त्र, छांदिक परंपरा और इसके प्रयोग के संबंध में संवाद और परिचर्चा होनी थी। किन्तु, विषयांतर से उक्त महाकाव्यों में वर्णित पौराणिक पात्रों, यथा-ययाति, शर्मिष्ठा, गालव,  शुक्राचार्य, विश्वामित्र, देवयानी, पुरु, माधवी आदि पर व्यापक प्रकाश डाला जाता है तथा उनके अंतर्संबंधों पर व्यापक बहस की जाती है। स्त्री-विमर्श को केंद्र में रखते हुए उक्त पौराणिक स्त्री-पात्रों की आज के समय में प्रासंगिकता पर भी चर्चा होती है। डॉ. रेणु विश्वामित्र और शुक्राचार्य जैसे पौराणिक पात्रों के हर युग में होने और मानवीय क्रिया-व्यापार में बने रहने के कारण जो सवाल उठाती हैं, उनके संवादकारों द्वारा सुविचारित जवाब पाकर सभी उपस्थित जन कृतकृत्य हो जाते हैं।   

संवादकारों के पारस्परिक संवाद इतने दिलचस्प थे कि सभी श्रोता-दर्शक उन्हें अपलक-अबाध देखते-सुनते रहे और अपनी टिप्पणियां दर्ज़ करते रहे। संगोष्ठी लगभग डेढ़ घंटे चली। दिव्या माथुर ने कहा कि इस दिलचस्प और ज्ञानवर्धक विषय पर संवाद आगामी संगोष्ठियों में किया जाएगा; तब, उन्होंने डॉ. मनोज मोक्षेन्द्र से धन्यवाद ज्ञापित करने का अनुरोध किया। धन्यवाद ज्ञापन के पश्चात् संगोष्ठी का समापन हुआ जबकि दिव्या माथुर ने जिज्ञासु श्रोताओं से कहा कि वे इस परिचर्चा से संबंधित अपने प्रश्न उन्हें भेज दें, जिनके उत्तर वह विद्वान साहित्यकारों से प्राप्त करके उन्हें प्रेषित कर देंगी। 

'यूट्यूब' और 'जूम' के माध्यम से जुड़े श्रोता-दर्शकों में प्रमुख थे - डॉ. अरुण अजितसरिया, डॉ. अर्पणा संत सिंह, डॉ. मीरा सिंह, डॉ. नीलम जैन, पांडेय सरिता, शिखा वार्ष्णेय, आशा बर्मन, आशीष रंजन, आशीष मिश्र, गीतू गर्ग आदि। 

 

 

(प्रेस विज्ञप्ति)

न्यूज़ सोर्स : Literature Desk