लन्दन, ४ मार्च २०२३ : हिंदी राइटर्स गिल्ड, कैनेडा और वैश्विक हिंदी परिवार के सहयोग से दिनांक ०४-०३-२०२३ को 'वातायन मंच' पर 'वातायन संगोष्ठी-१४२' का भव्य आयोजन किया गया। इस संगोष्ठी में, भारत की सुविख्यात कथाकार-शिल्पी संतोष श्रीवास्तव और कैनेडा (टोरंटो) के जाने-माने कहानीकार विद्याभूषण धर ने अपनी-अपनी कहानियों का हृदयस्पर्शी वाचन किया। मंच की अध्यक्ष थीं - संयुक्त अरब अमीरात की ख्यातिलब्ध साहित्यकार डॉ. पूर्णिमा बर्मन, जो लोकप्रिय इंटरनेट पत्रिकाओं 'अभिव्यक्ति' और 'अनुभूति' की संपादक भी हैं। कार्यक्रम की प्रस्तोता आईटी प्रोफेशनल आस्था देव थीं जबकि मंच का सुरुचिपूर्ण संचालन किया कैनेडा की ही सुप्रसिद्ध कथाकार और नाटककार शैलजा सक्सेना ने। 

वातायन मंच के तत्वावधान में यह संगोष्ठी अपनी तरह की दसवीं संगोष्ठी थी जिसके अंतर्गत दो अलग-अलग  देशों के कथाकारों को कथा-पाठ के लिए आमंत्रित किया गया। आस्था देव के अनुरोध पर सर्वप्रथम संतोष श्रीवास्तव ने अपनी कहानी 'निगरानी' का सुन्दर वाचन किया जिसमें उन्होंने एक स्त्री-पात्र सोनल की अपनी रेल-यात्रा के दौरान सबसे पहले स्वयं की सुरक्षा और फिर, देश की सुरक्षा को लेकर चिंता और भय को बिंबित किया गया है। जिस रेलगाड़ी में सोनल यात्रा करती है, उसके साथ वाली बर्थ पर यात्रा कर रहे कुछ मुस्लिम यात्रियों की उपस्थिति उसे भयतांकित करती है जिन्हें वह, उनके वार्तालाप के आधार पर, आतंकवादी समझ बैठती है। अगली कहानी 'अनोखी रात' में कैनेडा के विद्याभूषण ने कश्मीर से हिन्दुओं के पलायन की पृष्ठभूमि में एक डरे हुए हिन्दू परिवार की आत्मरक्षात्मक चिंताओं का यथार्थपरक और सूक्ष्म विवेचन किया है। कहानी में उक्त परिवार मुसलमानों की हिंसा का शिकार तो नहीं होता है; पर, कुदरत एक गर्भवती स्त्री की जान नहीं बख़्शती है, जबकि उसका शिशु जीवित पैदा होता है। दोनों कहानियों के केंद्र में सांप्रदायिक सौहार्द को बखूबी रूपायित किया गया है। 

 

कहानी की समीक्षा करते हुए डॉ. पूर्णिमा बर्मन ने दोनों कथाकारों की कहानियों का सूक्ष्म विवेचन किया तथा उनकी भाषा-शैली की प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि दोनों कहानियां श्रोताओं को आद्योपांत बांधे रहीं। उन्होंने आगे कहा कि संतोष श्रीवास्तव की कहानियों को तो उन्होंने पहले से ही पढ़ा है और वे उनकी मुरीद भी रही हैं जबकि विद्याभूषण की कहानी के केंद्र में व्याप्त मानवीय भय, आतंक और असुरक्षा मन-मस्तिष्क पर छाई रहीं। डॉ. पूर्णिमा बर्मन ने दोनों कथाकारों को तहेदिल से धन्यवाद दिया। 

दोनों कहानियों के संबंध में तोमियो मिजोकामी, युट्टा ऑस्टिन, दिव्या माथुर, डॉ. मनोज मोक्षेन्द्र, डॉ. जयशंकर यादव, आशा बर्मन आदि जैसे साहित्यकारों ने अपने-अपने विचार प्रस्तुत किए। कार्यक्रम का समापन करते हुए शैलजा सक्सेना ने यूट्यूब और ज़ूम से जुड़े हुए श्रोता-दर्शकों, नामत: प्रमिला वर्मा, सरस दरबारी, शिखा वार्ष्णेय, सरोज कौशिक, पल्लवी पगर, मधु चौरसिया, नमिता सिंह, आशीष अनुज शर्मा, डॉ. कुमार मनीषा, डॉ. कुश चतुर्वेदी, पीयूष श्रीवास्तव जैसे सुधी साहित्य-प्रेमियों को धन्यवाद प्रेषित किया। मंच पर उपस्थितों ने वातायन मंच की ऐसी विशिष्ट संगोष्ठियों की सूत्रधार--प्रख्यात साहित्यकार दिव्या माथुर के श्रमशील प्रयासों से मंच पर अविरल प्रवाहमान साहित्य-सरिता की सराहना की। 

 

(प्रेस विज्ञप्ति)

न्यूज़ सोर्स : Literature Desk