लन्दन, २३ अप्रैल २०२३ : दिनांक २२-०४-२०२३ (शनिवार) को भारतीय समयानुसार ८ बजकर ३० मिनट पर, 'वातायन-यूके प्रवासी संगोष्ठी-१४५' के अंतर्गत 'स्मृति और संवाद श्रृंखला-२९' का आयोजन किया गया। इस महत्वपूर्ण संगोष्ठी में हिंदी के जाने-माने छायावादी रचनाकार जयशंकर प्रसाद के कृतित्त्व पर सार्थक चर्चा हुई। बहुमुखी प्रतिभा के धनी और गद्य तथा पद्य की सभी विधाओं में प्रचुर सृजन करने वाले प्रसाद पर केंद्रित इस संगोष्ठी का संचालन किया लन्दन की कवयित्री और आईटी प्रोफेशनल सुश्री आस्था देव ने, जबकि इस कार्यक्रम की सूत्रधार और प्रमुख वक्ता थीं--इंद्रप्रस्थ कॉलेज (दिल्ली विश्वविद्यालय) की प्रोफ़ेसर सुश्री रेखा सेठी। 
आरंभ में, प्रोफ़ेसर रेखा सेठी ने कहा कि प्रसाद का समय हमारे लिए चिंतन, राष्ट्रीय सांस्कृतिक आंदोलन, स्वतंत्रता-संघर्ष की दृष्टियों से बहुत हलचल और विचार-मंथन का रहा है। यह समय सौंदर्य की नई अभिरुचियों को समझने का भी था। छायावाद-युगीन चार स्तंभों में उल्लेखनीय युग-प्रवर्तक जयशंकर प्रसाद ने भारतेन्दु हरिश्चंद्र के बाद सर्वाधिक नाटक लिखे और इस काल को नाटकों के लेखन के परिप्रेक्ष्य में नाटकों का युग भी कहा जाना चाहिए। तथापि, चूँकि प्रसाद ने 'कामायनी' महाकाव्य समेत प्रचुर काव्य सृजन किया है, इसलिए छायावादी युग को प्रसाद युग ही कहा जाना चाहिए। प्रसाद ने स्वच्छंदता और सौंदर्य के नए प्रतिमानों की तलाश की तथा जीवन की आपाधापी में मनुष्यता और आनंद की साधना के लिए 'आंसू', 'कानन कुसुम', 'झरना', 'लहर' और 'कामायनी' जैसी कृतियों की रचना की। तदनन्तर, आस्था देव ने 'कामायनी' के एक महत्वपूर्ण सर्ग 'लज्जा' से ह्रदयस्पर्शी काव्य पाठ किया। प्रोफ़ेसर रेखा ने कहा की 'कामायनी' में प्रसाद ने शैव दर्शन के आनंदवाद की प्रतिष्ठा की। कैनेडा की साहित्यकार सुश्री शैलजा सक्सेना ने बताया कि 'कामायनी' की रचना से बहुत पहले प्रसाद ने अपनी काव्य रचनाओं में राष्ट्रवाद और आत्मिक-निजी-बाह्य स्वतंत्रताओं के स्वर को मुखर किया। कविता विभिन्न प्रकार के द्वंद्वों से प्रस्फुटित होती है तथा इन द्वंद्वों का उद्देश्य होता है - स्वतंत्रता, समन्वय और सामंजस्य की स्थितियां पैदा करना होता है। ज्ञान, इच्छा और क्रिया के परस्पर न मिल पाने का जो द्वंद्व होता है, उसी का प्रस्फुटन कविता में होता है। संतुलन और आनंद की इच्छा ही समाज में समन्वय का कारक बनती है। 
तत्पश्चात, प्रोफ़ेसर रेखा सेठी ने बताया कि 'कामायनी' में श्रद्धा, मनु और इड़ा पात्रों के जो चित्रण हैं, उनसे पूरा काव्य एक रूपक बन जाता है। प्रसाद की कहानी, कविता और नाटक में नैतिकता पर जोर दिया जाता है तथा इसका लक्ष्य औद्योगीकरण से उत्पन्न उपनिवेशवाद को हतोत्साहित करना है। यही उद्देश्य प्रेमचंद के कथा-साहित्य का भी है। उसके बाद, प्रोफ़ेसर सेठी और सुश्री शैलजा सक्सेना के बीच गंभीर और सुरुचिपूर्ण संवाद हुआ जिसका निष्कर्ष यह निकालता है कि प्रसाद को अब नए परिप्रेक्ष्य में पढ़ने की आवश्यकता है। 
रंगमंच कलाकार, नीरजा आप्टे ने प्रसाद के ही नाटक 'धुवस्वामिनी' के एक अंश का पाठ किया जिसमें प्रसाद ने स्त्री के स्वाभिमान और राष्ट्रीय सम्मान को चित्रित किया है। प्रोफ़ेसर रेखा ने कहा कि इस पाठ में जो कहानी है, उसमें अर्थ की कई परतें सिमटी हुई हैं। संगोष्ठी के अगले चरण में लन्दन के भारतीय उच्चायोग में हिंदी अताशे के रूप में पदस्थ डॉ. नंदिता साहू ने प्रसाद के नाटक 'चन्द्रगुप्त' में संकलित देशप्रेम के दो गीतों 'अरुण यह मधुमय देश हमारा' और 'हिमाद्रि तुंग श्रृंग से' का सुन्दर वाचन किया। प्रोफ़ेसर सेठी ने कार्यक्रम के समापन पर कहा कि प्रसाद का लेखन और मनन, एक चिंतनशील लेखक का मनन है। तत्पश्चात, जापान के हिंदी प्रेमी तोमियो मिजोकामी ने अपने विद्यार्थी-जीवन में प्रसाद के ही नाटक 'ध्रुवस्वामिनी' के मंचन का उल्लेख किया जिसकी काफी चर्चा भी हुई थी। उन्होंने बताया कि उस नाटक के मंचन के बाद उनमें हिंदी सीखने की ललक और प्रबल हो गई। प्रबुद्ध श्रोता विजय राणा ने भी टिप्पणी की और अपने विद्यार्थी-जीवन की एक घटना का भी उल्लेख किया।
कार्यक्रम का समापन सुश्री आस्था देव द्वारा सभी प्रतिभागियों और श्रोता-दर्शकों को दिए गए धन्यवाद ज्ञापन से हुआ। यू-ट्यूब और जूम के माध्यम से जुड़े हुए श्रोताओं के कुछ नाम इस प्रकार हैं : डॉ. जीतेंद्र श्रीवास्तव, लुईसमीका खोखोलवा, तोमियो मिजोकामी, कैप्टेन प्रवीर भारती, शैलजा अग्रवाल, डॉ. संध्या सिंह, डॉ. अरुणा अजितसरिया, आराधना झा श्रीवास्तव, डॉ. विजय नागरकर, आशा बर्मन, डॉ. सुरेश मिश्रा, डॉ. ममता पंत, डॉ. आरती गोयल, डॉ. रश्मि वार्ष्णेय, गीतू गर्ग, आदेश गोयल, डॉ. ललिता रामेश्वर, उषा वर्मा, रिद्धिमा सर्राफ, डॉ. करुणा पांडेय, डॉ. ऋतु शर्मा, पूजा अनिल, ​शर्मिष्ठा निगम, डॉ. सुषमा देवी नितिन मिश्रा, अंजू राणा, शन्नो अग्रवाल, डॉ. मनोज मोक्षेन्द्र, सोनू कुमार, काजल मेहता, डॉ. मुकेश मिश्रा, इंदिरा वर्मा, विजय राणा, अनूप भार्गव, शैली, लक्ष्मण प्रसाद डेहरिया, वैष्णवी साहू, आदेश पोद्दार आदि। 
 
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न्यूज़ सोर्स : Literature Desk