लंदन, २१ मई, २०२३ : 'वातायन-यूके' द्वारा कोई ढाई वर्षों से आयोजित की जा रही संगोष्ठियों के क्रम में दिनांक : २० मई २०२३ को १४८वीं संगोष्ठी का भव्य आयोजन किया गया।  यह संगोष्ठी हिंदी कविता की लोकप्रिय विधा-दोहा के शिल्प और विषय-वस्तु से संबंधित चर्चा पर आधारित थी। इसमें भाग लेने वाले प्रमुख दोहाकार और दोहा विशेषज्ञ थे - डॉ. नरेश शांडिल्य और डॉ. मधु चतुर्वेदी। 

संगोष्ठी के आरंभ में आईटी वृत्तिक और सुपरिचित लेखिका सुश्री आस्था देव ने कहा कि हिंदी छंद विधा में दोहा कोई आधुनिक छंद नहीं है, अपितु इसका प्रयोग भारत के धार्मिक ग्रंथों में सदियों से किया जा रहा है। उन्होंने प्रमुख दोहाकार और दोहा-विशेषज्ञ डॉ. मधु चतुर्वेदी और डॉ. नरेश शांडिल्य का मंच पर स्वागत करते हुए कार्यक्रम की सूत्रधार डॉ. रेणु यादव को मंच के संचालन के लिए आमंत्रित किया। डॉ. रेणु यादव ग्रेटर नोएडा स्थित गौतम बुद्ध विश्वविद्यालय में हिंदी प्राध्यापक हैं और एक सुपरिचित लेखिका भी हैं। उन्होंने बताया कि पद्य को जिन बंधनों और अनुशासनों का पालन करना पड़ता है, उन्हें छंद कहते हैं तथा छंद का प्रथम उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है तथा इसके आदि प्रणेता पिंगल ऋषि माने जाते हैं। डॉ. रेणु ने छंदों की शास्त्रीय व्याख्या करते हुए बताया कि छंद वार्णिक और मात्रिक होते हैं। दोहा अर्ध-सम मात्रिक छंद है जिसमें चार चरण होते हैं। प्रथम और तृतीय चरण में १३-१३ एवं द्वितीय और चतुर्थ चरण में ११-११ मात्राएँ होती हैं। 

कार्यक्रम के अगले चरण में, आधुनिक कबीर के रूप में प्रतिष्ठित और अंतरराष्ट्रीय वातायन कविता सम्मान से अलंकृत डॉ. नरेश शांडिल्य ने बताया कि दोहे के २३ प्रकार होते हैं और दूसरे एवं चौथे चरण के अंत में गुरु तथा लघु आते हैं जबकि पहले और तीसरे चरण में लघु और गुरु आते हैं। यदि इनके पदों को उलट दें तो यही दोहा सोरठा छंद में परिवर्तित हो जाता है। उन्होंने बताया कि मैं दोहे को ग़ज़ल के सामानांतर देखता हूँ जबकि दोहा, ग़ज़ल की तुलना में पूर्ण कविता है। दोहा और ग़ज़ल दोनों में चार चरण होते हैं किन्तु दोहा एक सशक्त रचना है। बहुत कम ग़ज़लें, दोहे जैसी ताकवर होती हैं। ग़ज़ल १४-१५ शेरों में  पूर्ण होती है जबकि चार पदों वाला दोहा  अपने-आप में ही पूर्ण होता है। 'वातायन-यूके' की संयोजक दिव्या माथुर के आग्रह पर डॉ. शांडिल्य ने कई दोहे सुनाकर श्रोता-दर्शकों पर सम्मोहनी की चादर डाल दी।  

दोहाकार और दोहा-विशेषज्ञ डॉ. मधु चतुर्वेदी ने अपने वक्तव्य की शुरुआत करते हुए बताया कि दोहा एक मुक्त छंद है जिसे मुक्तक कहा जाना चाहिए। उन्होंने बताया कि छंद-अनुशासन से मुक्त तथा छंद-रहित रचना को भी उसमें प्रयुक्त लय, गति और ताल के आधार पर मुक्तक कहा जा सकता है। जिस कविता में लय, गति और ताल का समावेश नहीं है, उसे कविता नहीं कहा जा सकता। ऐसी कविता को अछान्दस कविता या गद्य की कोई रचना कहा जा सकता है। अस्तु, मुक्तक तो छांदिक रचना ही है। उन्होंने दोहा छंद के संबंध में बताया कि यह ऐसा क्षीर लेकर आता है जो न केवल पौष्टिक होता है, बल्कि सुपाच्य भी होता है। दोहा ने अपनी मारक क्षमता के बल पर हर युग के कवियों को सम्मोहित किया है जिन्होंने इसका प्रचुर प्रयोग किया है। उन्होंने अपने कुछ दोहों का  सस्वर पाठ भी किया जो शिल्प और कथ्य की दृष्टियों से परिपूर्ण है। 

तदनन्तर, शास्त्रीय संगीत के पद्मश्री गायक और ध्रुपद में विशेषज्ञता रखने वाले डॉ. शिव दर्शन द्विवेदी ने सर्वप्रथम डॉ. मधु चतुर्वेदी के दोहों का सुमधुर गायन प्रस्तुत किया जिसकी सभी उपस्थितों ने मुक्तकंठ से प्रशंसा की। डॉ. चतुर्वेदी ने उनके गायन पर टिप्पणी करते हुए कहा कि रचना में सहज प्रस्फुटन एक नैसर्गिक प्रक्रिया है जबकि निसर्ग और कला का सामंजस्य एक खूबसूरत कलाकृति को रूपायित करता है। उसके बाद, डॉ. द्विवेदी ने डॉ. शांडिल्य के दोहों का भी गायन प्रस्तुत किया। उनके गायन की प्रशंसा तो होती ही रही।  

संगोष्ठी ने निर्धारित समय से आगे निकलकर अत्यंत दिलचस्प विस्तार लिया तथा बीच-बीच में वक्ताओं, दोहाकारों और संचालकों की टिप्पणियों से संगोष्ठी और अधिक ज्ञानवर्धक एवं मनोरंजक होती गई। 

कार्यक्रम का समापन करते हुए सुश्री आस्था देव ने डॉ. मधु चतुर्वेदी, डॉ. नरेश शांडिल्य और डॉ. शिव दर्शन की कार्यक्रम में महत्वपूर्ण प्रतिभागिता के लिए ह्रदय से आभार प्रकट किया। उन्होंने वातायन मंच की संयोजक सुश्री दिव्या माथुर की भी ऐसी संगोष्ठियों के आयोजन में पहलकदमी के लिए धन्यवाद दिया। उन्होंने ज़ूम और यूट्यूब से जुड़े श्रोता-दर्शकों नामत: ल्यूदमिला खोंखोलोव, तोमियो मिजोकामी, डॉ. जय शंकर यादव, बरुण कुमार, आदेश गोयल, आशा बर्मन, आशीष रंजन, डॉ. प्रभा मिश्रा, डॉ. सुषमा देवी, डॉ. सुषमा मेहता, डॉ. वंदना मिश्रा, डॉ. मनोज मोक्षेंद्र, के. रेसिट्स, नितिन, डॉ. संध्या सिंह, शैल अग्रवाल, शन्नो अग्रवाल, कैप्टन प्रवीर भारती,  गोवर्धन यादव, डॉ. रश्मि वार्ष्णेय, लक्ष्मण प्रसाद डेहरिया समेत सभी प्रबुद्धजनों को तहे-दिल से धन्यवाद ज्ञापित किया। 

 

(प्रेस विज्ञप्ति)

न्यूज़ सोर्स : wewitness literature desk