लन्दन, १०-०९-२०२३: कोई ढाई वर्षों से अनवरत चल रही साप्ताहिक वातायन संगोष्ठियों के क्रम में दिनांक ०९-०९-२०२३ को १५७वीं संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस संगोष्ठी का विषय था 'दो देश-दो कहानियां' जिसके अंतर्गत किन्हीं दो देशों के दो कथाकार, मंच पर श्रोताओं से मुखातिब होते हैं और अपनी-अपनी कहानियों का पाठ करते हैं। 'दो देश-दो कहानियाँ' की इस १३वीं शृंखला में प्रवासी कथाकार डॉ. पुष्पा सक्सेना तथा भारतीय कथाकार निर्देश निधि को 'वातायन-यूके' के मंच पर आमंत्रित किया गया। संगोष्ठी की अध्यक्षता करने के लिए श्री अनिल शर्मा जोशी ने अपनी गरिमामयी उपस्थिति दर्ज़ की जबकि श्रोता-दर्शकों में मौजूद थे--डॉ. जयशंकर यादव, पुष्पा अग्रवाल, अनूप भार्गव, ल्यूदमिला खोंखोलोव, आशा बर्मन, शैल अग्रवाल, पांडेय सरिता, शुभम राय, सौभाग्या कोरले, वन्दिता सामवेदी, दिवाकर शर्मा, अदिति सिंह, बिधु भूषण मंडल, पूनम चन्द्र मनु, डॉ. मनोज मोक्षेंद्र आदि। 
                  
 
इस संगोष्ठी का सञ्चालन किया कैनडा की सुप्रसिद्ध साहित्यकार शैलजा सक्सेना ने, जो संगोष्ठी की सह-आयोजक और सूत्रधार भी थीं। उन्होंने संगोष्ठी के आरंभ में अध्यक्ष अनिल शर्मा जोशी और कथाकार-द्वय पुष्पा सक्सेना और निर्देश निधि का साहित्यिक परिचय दिया तथा उनकी कलमकार शख्सियत को हमारे सामने रखा। अनिल शर्मा वैश्विक आधार पर हिंदी को प्रतिष्ठापित करने और हिंदी साहित्य की सेवा में दत्तचित्त एक नामचीन हस्ताक्षर हैं। तदनन्तर, उन्होंने बताया कि बहु-प्रकाशित और बहु-सम्मानित, डॉ. पुष्पा सक्सेना ३३ पुस्तकों की लेखिका हैं जिन्होंने ३७० से अधिक कहानियां लिखी हैं और जो शिक्षण से भी जुड़ी रही हैं। भारत की कथाकार निर्देश निधि भारत सरकार में सांस्कृतिक निदेशक हैं, जिन्होंने 'बुलंदप्रभा' पत्रिका का संपादन करने के साथ-साथ अनेक साहित्यिक पुरस्कार भी प्राप्त किए हैं। उन्होंने कहानी, कविता, संस्मरण, लेख जैसी विधाओं में साहित्य-सृजन किया है और आकाशवाणी से भी उनका रचना-पाठ प्रसारित होता रहता है।  
 
               
 
कहानी-पाठ के अंतर्गत डॉ. पुष्पा ने अपनी प्रकाशित कहानी 'धूप-छांव' का वाचन किया। कहानी का कथानक पारिवारिक पृष्ठभूमि में अवस्थित है जिसमें पाश्चात्य और भारतीय संस्कृतियों के बीच द्वन्द्वात्मक चित्र प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है। कहानी आद्योपांत संवाद शैली में लिखी गई है जिसमें नाटकीयता का सुंदर संपाक है। कहानी में विवाहार्थ स्त्री-पुरुष पात्रों के बीच उनके भावी जीवन के लिए नोक-झोंक स्वाभाविक रूप में निखरकर सामने आता है। 
संगोष्ठी की अगली कथाकार निर्देश निधि ने 'बगिया' शीर्षक से अपनी कहानी का वाचन किया। कहानी-पाठ के आरंभ में ही उन्होंने बताया कि उनका प्रकृति से गहरा संबंध है एवं यह कहानी उसी प्रकृति के स्पंदन से अभिमंत्रित है। यह कहानी लुप्तप्राय हो चुकी पत्र-शैली में लिखी गई है। कहानी का आरंभ जामुन, कोयल, कोयल की कुहुक आदि के विवरण से होता है। एक युवती अपनी स्मृतियों में खोकर अपने प्रेमी के साथ बीते हुए पलों को याद करते हुए, उसके साथ अपनी अंतरंगता को संजोती है। वास्तव में, इसे प्रेम-परक कहानी कहा जाना चाहिए जिसमें कथाकार स्त्री और पुरुष के बीच संबंधों को रूपायित करती है जबकि जामुन का वृक्ष पूरी कहानी में एक मुख्य पात्र की तरह मुखरित होता है। कहानी की भाषा स्त्री-सुलभ माधुर्य का अहसास कराती है जबकि प्रेम-पगी स्मृतियाँ श्रोताओं और पाठकों को थपकियाँ देकर उन्हें मनोवैज्ञानिक रुप से सुकून प्रदान करती हैं।  
 
कहानी के समापन पर शैल अग्रवाल, मनोज मोक्षेन्द्र, जयशंकर यादव, ल्यूदमिला खोंखोलोव तथा अनूप भार्गव जैसे प्रबुद्ध श्रोताओं ने अपने-अपने समीक्षात्मक विचार रखे। अनिल शर्मा जोशी ने अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में डॉ. पुष्पा सक्सेना की कहानी में कथ्य और शिल्प की प्रशंसा की। निर्देश निधि के संबंध में उन्होंने कहा कि उनका कलात्मक रुझान उनके लिखे हुए में परिलक्षित होता है। उन्होंने निधि की लेखनी को अपनी शुभकामनाएं प्रेषित कीं। उन्होंने एक कार्यशाला की भांति ऐसी संगोष्ठी के लिए दिव्या माथुर का आभार प्रकट किया क्योंकि इससे श्रोताओं और दर्शकों को लिखने का प्रशिक्षण मिलता है। तदन्तर, शैलजा सक्सेना ने भी दोनों कथाकारों की कहानियों पर सूक्ष्मता से अपने विचार रखते हुए सभी श्रोता-दर्शकों को धन्यवाद ज्ञापित किया। 
न्यूज़ सोर्स : Literature Desk