दिनांक :  25 जून, २०२२ को प्रख्यात साहित्यकार सुश्री दिव्या माथुर के संयोजन में लन्दन स्थिति "वातायन मंच" के तत्वावधान में १०८ वीं संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस संगोष्ठी में ख्यात कवि--कुमार अनुपम की कविताओं पर चर्चा की गई तथा उनके श्रीमुख से कविताओं का लुत्फ़ उठाया गया। इसके अतिरिक्त, उनसे ही कवि और कविता के सम्बन्ध में अनेक प्रश्न किए गए जिनका उन्होंने अत्यंत सटीकता और गंभीरता से उत्तर दिया। मंच का सञ्चालन कवयित्री सुश्री ऋचा जैन ने किया जिन्होंने कवि के ज्ञान-गर्भ से कविता संबंधी अनेकानेक धारणाएं प्रसवित कराईं। 

इस महत्वपूर्ण संगोष्ठी की अध्यक्षता केंद्रीय हिंदी सस्थान के उपाध्यक्ष एवं लब्ध-प्रतिष्ठ साहित्यकार और भाषाविद श्री अनिल शर्मा जोशी ने की। सुश्री ऋचा जैन ने कवि अनुपम के साहित्यिक परिचय के साथ संगोष्ठी का श्रीगणेश किया। ऋचा ने शुरुआत में ही उनसे एक कविता-पाठ करने का आग्रह किया जिसके प्रत्युत्तर में उन्होंने माँ और पिता के संबंध में एक भावप्रवण कविता सुनाई। उनके प्रश्नों का उत्तर देते हुए अनुपम ने बताया कि कविता की दो प्रभावशाली धाराएं रही हैं--एक तो भक्तिकालीन तथा दूसरी स्वतंत्रताकालीन जबकि कविता अपने सम्पूर्ण परिधान में निखर कर  सामने आई। उन्होंने बताया कि कोई भी कवि अपने पूरे जीवनकाल में सिर्फ एक ही कविता लिखता है। अर्थात जितनी भी कविताएं वह लिख ले, वह एक ही कविता का विस्तार होता है। कविता मनुष्य को सुसंस्कृत बनाने का काम करती है। एक कवि अपने आत्म को बाह्य जगत से तथा बाह्य जगत को अपने आत्म से जोड़ता है और इन दोनों को जोड़ने के लिए ही वह कविताएं लिखता है। यह बाह्य जगत, कवि को अन्यों से जोड़ता है जिससे जुड़ना ही कविता का लक्ष्य होता है। किसी भी नए कवि की कविताओं में एक नई स्फूर्ति होनी चाहिए। एक कवि को अपनी अलौकिक संस्कृति से जुड़ना चाहिए और अपनी परम्पराओं का अनुसरण करना चाहिए।  अनुपम ने बताया कि वह सुरेंद्र विमल के व्यक्तित्व और उनकी रचनाधर्मिता से अत्यंत प्रभावित हैं तथा उन्होंने उन पर रचित अपनी एक सारगर्भित रचना का पाठ भी किया। उन्होंने बताया कि उनके वैज्ञानिक रुझान ने उनमें रोमानी भावुकता की संपुटता से उन्हें बचाया है।

इसी क्रम में ऋचा जैन ने उनके द्वारा सम्पादित युद्ध के खिलाफ एक पुस्तक की चर्चा की जिसमें उनकी खुद की अनुदित कोई सौ कविताएं भी संगृहीत हैं। तदनन्तर, उन्होंने संग्रह की एलन गिल्सबर्ग द्वारा रचित एक कविता का पाठ भी किया जिसका शीर्षक 'होमवर्क' है। 

जब ऋचा ने मंच के अध्यक्ष अनिल जोशी जी को उनके समीक्षात्मक भाषण के लिए आमंत्रित किया तो उन्होंने सबसे पहले कवि अनुपम के काव्य शिल्प की तरफ ध्यान आकर्षित किया। उन्होंने कहा कि अनुपम जी कला और अभिव्यक्ति के क्षेत्र में वैसी ही रूचि और दक्षता रखते हैं जैसेकि बजेन्द्र जी रखते हैं। उन्होंने कहा कि किसी कवि के निर्माण में उसके क्षेत्र की महत्वपूर्ण भूमिका होती है और कवि कहीं न कहीं अपने स्थान से प्रेरित होता है। उन्होंने इको-सिस्टम को बनाए रखने पर बल दिया जिसमें कोई कवि प्रादुर्भूत और विकसित होता है। उन्होंने कहा कि कुमार अनुपम ने हमारे मानसिक वितान को जो विस्तार दिया है, उसके लिए हम सभी आभारी हैं। 

संगोष्ठी का समापन करते हुए मनोज मोक्षेंद्र ने अध्यक्ष अनिल जोशी जी, कवि अनुपम तथा मंच पर उपस्थित सभी प्रबुद्ध श्रोताओं यथा--प्रवासिनी महापुड, लुडमिला खोखोलोवा,  तोमियो मिजोकामी, डॉ. अरुण अजितसरिया, महादेव कोलूर, आदेश गोयल, उषा उपाध्याय, अतुल प्रभाकर, आराधना झा श्रीवास्तव, अरुण सभरवाल, सौभाग्य कोराले, डॉ. जयशंकर प्रसाद, अर्चना संत सिंह,  सुजाता शिवेन, हरिपाल सिंह, कमलेश कुमार दीवान, शैल अग्रवाल, कैप्टेन प्रवीर भारती, डॉ. कैलाश बाजपेयी का धन्यवाद ज्ञापन किया। उन्होंने यू- ट्यूब और ज़ूम से जुड़े अन्य सभी श्रोता-दर्शकों को भी धन्यवाद ज्ञापित किया। मोक्षेंद्र ने दिव्या माथुर जी का भी तहे-दिल से धन्यवाद दिया जिनके प्रयास से कुमार अनुपम जैसे विशिष्ट कवि की रचनाधर्मिता से सभी रू-ब-रू हुए। 

 

(प्रेस विज्ञप्ति)   

 

न्यूज़ सोर्स : wewitness literary desk