लन्दन-२६ मार्च, २०२२: "चीन में भारतीय संस्कृति एवं कलाओं के प्रति आकर्षण" विषय पर वातायन संगोष्ठी-९९ का भव्य आयोजन किया गया। इस विशेष संगोष्ठी में भारतीय संस्कृति के विशेष जानकार तथा पेइचिंग विश्विद्यालय में दक्षिण एशियाई अध्ययन केंद्र के निदेशक प्रोफ़ेसर जियांग जिंगकुई प्रमुख वक्ता थे। कार्यक्रम का आरम्भ करते हुए ऑक्सफ़ोर्ड बिजनेस कॉलेज के निदेशक और साहित्यकार डॉ. पद्मेश गुप्त ने कार्यक्रम की रुपरेखा प्रस्तुत की जबकि चीन में क्वांटोंग विदेशी भाषा विश्वविद्यालय के सहायक प्रोफ़ेसर विवेकमणि त्रिपाठी तथा हिंदी समन्वय समिति के संपादक मंडल की सदस्य डॉ.अनीता शर्मा की महती भागीदारी रही। 

इस अविस्मरणीय संगोष्ठी की विशेष बात यह रही कि इस कार्यक्रम में चीन के हिंदी प्रेमियों ने अपने-अपने गायन और नृत्य से सभी उपस्थित श्रोता-दर्शकों को सम्मोहिनी-पाश से बाँध दिया। चीन के हु नान शिक्षण विश्वविद्यालय के पूर्व-प्राध्यापक चांग इंगशिन (अंजलि) ने सरस्वती वंदना प्रस्तुत करके भारत और चीन के मध्य खाई को पाटने की अच्छी कोशिश की। चीन के क्वांटोंग विदेशी भाषा विश्वविद्यालय की ल्यु शान शान (कनिषा), मंग त्जलिन (निवेदिता) तथा च्यांग शिया (मीनाक्षी) ने गायन प्रस्तुत किया। इसके अतिरिक्त पेइचिंग की सुप्रसिद्ध नृत्यांगना चिन शानशान ने भरतनाट्यम प्रस्तुत करके यह सिद्ध कर दिया कि भारत-चीन के बीच जो विभाजक रेखा है, वह सिर्फ राजनीतिक और भौगोलिक है। दरअसल, दोनों देशों के मध्य जो सांस्कृतिक एकात्मकता है, उसे क्रूर काल-चक्र भी नहीं धूमिल कर सकता। गायिकाओं ने जो गीत प्रस्तुत किए, वे आधुनिकता से लबरेज़ थे। इससे यह प्रतिपादित होता है कि चीन में समकालीन फिल्मों के गीत कितने लोकप्रिय हैं ! इतनी सधी-बधी भाव-भंगिमाओं से युक्त नृत्य की जुगलबंदी भी अत्यंत मनोहारी थी, जिसे चीन की माँ-बेटी नर्तकियों ने बखूबी निभाया। इस नयनाभिराम प्रस्तुति को ज़ूम और यू-ट्यूब के श्रोताओं ने तहे-दिल से सराहा। कार्यक्रम में विवेकमणि त्रिपाठी, अनीता शर्मा, शुभम त्रिपाठी, तोमियो मीजोकामी, कल्पना मनोरमा, सोनू कुमार, आदेश गोयल, सुषमा द्विवेदी, विजय नागरकर, डॉ. मधु वर्मा, अनुज मेहता, अर्पणा संत सिंह, दीपा स्वामीनाथन, कैप्टन प्रवीर भारती, गोवर्धन यादव आदि की गरिमामयी उपस्थिति ने कार्यक्रम की शोभा बढ़ाई। सभी उपस्थितों ने कार्यक्रम की संयोजक सुश्री दिव्या माथुर को इतने सुन्दर आयोजन के लिए धन्यवाद दिया। 

 

(प्रस्तुति : डॉ. मनोज मोक्षेंद्र)

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