लन्दन : दिनांक  २८ मई, २०२२ को "वातायन मंच" के तत्वावधान में 'वातायन  प्रवासी संगोष्ठी' की  साप्ताहिक  संगोष्ठी के अंतर्गत "परिचर्चा रामायण : समुद्र-सन्दर्भ" का आयोजन किया गया। इस संगोष्ठी में श्री मनोज श्रीवास्तव ने अपने विश्लेषणात्मक संभाषण में रामायण के एक विशेष सन्दर्भ पर विवेचन प्रस्तुत किया और श्री अखिलेश मिश्र ने समीक्षात्मक वक्तव्य दिया।  आरम्भ में संगोष्ठी के प्रस्तोता डॉ. पद्मेश गुप्त ने आयरलैंड में भारत के राजदूत महामहिम अखिलेश मिश्र का इस संगोष्ठी के अध्यक्ष के रूप में स्वागत किया, प्रमुख वक्ता मनोज श्रीवास्तव के बारे में विस्तृत परिचय दिया और उसके बाद संगोष्ठी की रूपरेखा पर प्रकाश डाला।  तदुपरांत, उन्होंने बहुमुखी गायिका सुश्री विभूति शाह को आमंत्रित किया जिन्होंने सांगीतिक संगत के साथ श्रीराम भजन "पायो जी मैंने राम-रतन धन पायो" के शास्त्रीय गायन से मंच को गुंजायमान कर दिया। 
जब डॉ. विनोद बाला अरुण 'वातायन मंच' पर मुखातिब हुईं तो उन्होंने संगोष्ठी की परिचर्चा-बिंदु अर्थात रामायण में वर्णित एक महत्वपूर्ण घटना का उल्लेख किया जिसके तहत भगवान राम समुद्र से विनयपूर्व प्रार्थना करते हैं कि वह उनकी सेना को लंका पर आक्रमण करने के लिए मार्ग प्रदान करे। मॉरीशस में रामायण केंद्र की निदेशक, डॉ. अरुण ने बताया कि सर्वप्रथम अनुभववृद्ध जाम्बवन्त, हनुमान जी को "का बल साधि रहा हनुमाना" उक्ति के जरिए उनकी अपार अंतर्भूत शक्ति का स्मरण कराते हैं और उन्हें सीता का पता लगाने के लिए लंका जाने का निदेश  देते  हैं। हनुमान जी द्वारा इस कार्य को संपन्न किए जाने के बाद, विभीषण के परामर्श पर श्रीराम समुद्र से विनयपूर्वक निवेदन करते हैं कि वह उनकी मदद करें जबकि समुद्र उनके विनय पर कोई सकारात्मक अनुक्रिया नहीं करता है और राम के सम्मुख  प्रकट तक नहीं होता है।
तुलसीकृत रामचरित मानस की चौपाई "विनय न मानत जलधि जड़/ गए तीन दिन बीत/ बोले राम सकोप तब/ भय बिन होइ न प्रीत" में वर्णित "विनय" की बहुविध व्याख्या करते हुए डॉ. अरुण ने बताया कि हठधर्मी और अहंकारी समुद्र को जब कुपित राम की परमशक्ति का पता चलता है तो वह तत्काल उनके सामने प्रस्तुत हो जाता है। तदुपरांत, वह विशेषतया रामचरित के सुंदरकांड में विशिष्ट ज्ञान रखने वाले श्री मनोज श्रीवास्तव से अनुरोध करती हैं कि वह इस परिचर्चा-बिंदु पर विस्तृत प्रकाश डालें। 
श्री मनोज श्रीवास्तव समुद्र के मानव समाज के साथ रिश्ते पर विस्तार से बताते हुए इंगित करते हैं कि श्रीराम से संबंधित जितनी भी घटनाएं घटित हुई हैं, उनके यथा-सत्य से कतई इंकार नहीं किया जा सकता जबकि विभिन्न विद्वानों ने राम से संबंधित घटनाओं के घटित स्थलों के बारे में अलग-अलग विचार प्रकट  किए हैं। यहाँ श्री श्रीवास्तव विभिन्न देशों में प्रकृति के संबंध में धारणाओं का उल्लेख करते हुए बताते हैं कि समुद्र, श्रीराम परिवार का कुलगुरु है जिसकी वह सटीक और तर्काधारित व्याख्या भी करते हैं। इस तरह, वह प्रकृति के एक विशिष्ट उपांग समुद्र को विशेषतया मानव-जीवन के अत्यंत समीपस्थ सिद्ध करते हैं तथा बताते हैं कि कोई ढाई बिलियन वर्ष पूर्व मनुष्य का डी एन ए समुद्र में ही रहता था। इस प्रसंग को जिस वैज्ञानिक  कसौटी पर वह खरा उतारने की कोशिश करते हैं, वह वास्तव में श्लाघ्य है और सभी के लिए प्रेरक भी। श्री श्रीवास्तव दूरस्थ वैदेशिक उद्धरणों के माध्यम से अपने वक्तव्य को न केवल नव्यता प्रदान करते हैं अपितु इसे और अधिक दिलचस्प बना देते हैं। वह बताते हैं कि पूर्व की कितनी महत्ता है कि ऐसा उल्लेख है कि अमेरिका के पुरखे समुद्री कच्छपों पर बैठकर पूरब दिशा से आए थे। प्रशांत महासागर के लैगूना इंडियंस अभी भी घुटनों से झुककर प्रणाम करते हैं जो शरणागत विभीषण की श्रीराम को प्रणाम करने की प्रवृत्ति को दर्शाता है। समुद्र हमें अंत:निर्भरता और सह-निर्भरता का सबक देता है। इसके अतिरिक्त, वह कहते हैं कि राम का समुद्र से विनय-याचना करना स्वाभाविक है क्योंकि समुद्र तो उनका कुलगुरु है। इस प्रकार, इस प्रसंग को वह इतने दृष्टांतों और वैदेशिक उद्धरणों से रुचिकर और जिज्ञासापूर्ण बनाते हैं कि वह सचमुच अत्यंत मार्मिक और हृदयस्पर्शी हो जाता है। उल्लेख्य है कि श्री श्रीवास्तव का वक्तव्य हिन्द की पौराणिकता और अर्वाचीनता के मध्य सेतु बांधने का काम करता है। 
संगोष्ठी के अगले चरण में महामहिम अखिलेश मिश्र ने अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में बताया कि यह उनका सौभाग्य रहा है कि उन्होंने अपना अधिकतर समय सामुद्रिक सान्निध्य वाले देशों में व्यतीत किया है। समुद्र का भारत की सनातनी अस्मिता और उसकी दिव्य जीवंत छवि से गहरा संबंध रहा है।  उन्होंने इस बारे में संस्कृत के कतिपय ग्रंथों से समुचित उद्धरण भी दिए। समुद्र की विशालता मनुष्य के दार्शनिक चिंतन को भी व्यापक आयाम  प्रदान करती है। समुद्र की अस्मिता का दिव्य प्रतीक वरुण है जो वास्तव में परम ब्रह्म भी है। समुद्र भी परम ब्रह्म का द्योतक है।  समुद्र सर्व-समावेशी भी है।  इस तरह श्री मिश्र का वक्तव्य भी अत्यंत विद्वतापूर्ण और मार्मिक था। 
कार्यक्रम के समापन पर डॉ. जयशंकर यादव, श्री नारायण कुमार, श्री राहुल देव, तोमियो मिजोकामी, श्री तेजेन्द्र शर्मा, अरुणा अजितसरिया  जैसे विद्वतजनों ने रामकथा पर आधारित इस विमर्श-गोष्ठी पर अपने-अपने उद्गार व्यक्त किए तथा इस संगोष्ठी की सूत्रधार सुश्री दिव्या माथुर को हार्दिक धन्यवाद दिया। 
श्री आशीष मिश्र ने सभी वक्ताओं, प्रतिभागी विद्वानों, ब्रिटेन के सांसद वीरेंद्र शर्मा, सूत्रधार  दिव्या माथुर एवं पद्मेश गुप्त और  कार्यक्रम से जुड़े समस्त श्रोताओं तथा दर्शकों को धन्यवाद ज्ञापित किया। 
(विशेष रिपोर्ट)
 
 
(भारत से मनोज मोक्षेन्द्र)
न्यूज़ सोर्स : wewitness literary team