लन्दन, २ जुलाई, २०२२: वातायन मंच के तत्वावधान में दिनांक २ जुलाई, २०२२ को हमेशा की तरह साप्ताहिक संगोष्ठी का सफल आयोजन किया गया। सुप्रसिद्ध लेखिका दिव्या माथुर के निर्देशन में आयोजित इस १०९ वीं संगोष्ठी का विषय था : "भोजपुरी लोकगीत सोहर अउरी खैलौना में सामाजिक चेतना"। इस १०९वीं संगोष्ठी को जिस लोकगीत श्रृंखला के रूप में मनाया गया, उसे "लोकगीत श्रृंखला-७ : पुस्तक लोकार्पण" के तौर पर रेखांकित किया गया। इस संगोष्ठी का सञ्चालन कर रही सुश्री संध्या सिंह ने सर्वप्रथम कहा कि यह कार्यक्रम भोजपुरी लोकगीतों और विशेषतया सोहर तथा खैलौना की चर्चा एवं इन लोकगीतों के गायन पर आधारित है। तदनन्तर, उन्होंने लोक सभा में पूर्व-निदेशक संतोष कुमार मिश्र जी का मंच पर अध्यक्ष के रूप में स्वागत किया। उन्होंने डॉ. मीरा सिंह का भी अभिनन्दन किया जिनकी पुस्तक "भोजपुरी लोकगीत 'सोहर' अउरी  खेलौना में सामाजिक चेतना" का लोकार्पण किया जाना है। कार्यक्रम का श्रीगणेश प्रतिभा सिंह द्वारा विभिन्न शुभ अवसरों पर गाए जाने वाले एक भोजपुरी मंगलगीत से उनके सुमधुर स्वर में किया गया।

अगले चरण में मुंबई विश्वविद्यालय से सेवा-निवृत्त प्राध्यापक डॉ. बिनीता सहाय ने संगोष्ठी के बारे में प्रस्तावना प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि भारत से बाहर विदेशों में भी नामत: मारीशस, गुयाना, फिजी, त्रिनिदाद  जैसे देशों में भोजपुरी भाषा और साहित्य अपनी उपस्थिति दर्ज़ करा चुका है। भोजपुरी भाषा लोकगीतों, लोककथाओं और लोक साहित्य के माध्यम से अभी भी जीवित है और इसका भविष्य उज्ज्वल है। उन्होंने  जन्म-संस्कार के समय गाए जाने वाले सोहर और खैलौना का परिचय दिया। बिहार में, विशेषतया सोहर गीत, ढोल-मजीरा के साथ संगत में राम, कृष्ण और सीता के नाम से ही गाए जाते हैं। उन्होंने विवाह के अवसर पर निष्पादित किए जाने वाले कुछ अनुष्ठानों की भी चर्चा की। संध्या सिंह ने बताया कि सीता जी के जन्म पर भी सोहर गाए गए थे किन्तु कालांतर में बालिका के जन्म पर सोहर गाई जाने वाली परंपरा का अवसान हो गया।

संगोष्ठी के अगले चरण में डॉ. मीरा सिंह की पुस्तक का लोकार्पण किया गया। डॉ. मीरा ने अपना वक्तव्य आरम्भ करने से पहले एक सोहर गीत प्रस्तुत किया और बताया कि बच्चे के जन्म पर इस लोक गीत के माध्यम से आराध्य देव गणेश का वंदन किया जाता है जिसमें लोक कल्याण की भावना निहित होती है। इसमें संगठन, एकता, सहृदयता, उल्लास की भावनाएं  परिलक्षित होती हैं जबकि मन अध्यात्म तक पहुँच जाता है। उन्होंने विवाह-गीत में हास-परिहास के परिपाक होने का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि भोजपुरी भाषा भी व्याकरण-सम्मत होती है और इसमें अलंकारों का भी विधिवत संपुट होता है। उन्होंने लोक गीतों के कई मुखड़े गाकर भी सुनाए। 

जब मंच पर अध्यक्ष संतोष मिश्र जी को आमंत्रित किया गया तो उन्होंने बताया कि लोकगीतों की परंपरा अति प्रतिष्ठित और प्राचीन है। उन्होंने ने कहा कि इस सम्बन्ध में प्रचुरता से लिखा-पढ़ा जाना चाहिए ताकि भावी पीढ़ियां इन्हें संजो-सहेज सके। विदेशों में भारतवंशी अभी भी भोजपुरी संस्कारों और रीति-रिवाज़ों को सहेजने में लगे हुए हैं और वहाँ चटनी नामक लोकगीत अभी भी गाया जाता है। उन्होंने कहा कि मीरा सिंह जी द्वारा लिखी गई पुस्तक की तर्ज़ पर ही पुस्तकें और भोजपुरी साहित्य लिखे जाने चाहिए जिससे की भोजपुरी भाषा प्रतिष्ठित हो सके। बहरहाल इस भाषा और साहित्य से सम्बंधित अनेकानेक संस्थाएं काम कर रही हैं तथा कई विश्वविद्यालयों में इसे पढ़ाया भी जा रहा है ताकि भोजपुरी का विकास हो सके।

कार्यक्रम के समापन पर सुश्री आस्था देव ने अध्यक्ष संतोष मिश्र, लेखिका डॉ. मीरा सिंह, बिनीता सहाय तथा ज़ूम और यूट्यूब से जुड़े श्रोताओं और दर्शकों को धन्यवाद ज्ञापित ज्ञापित किया।  

 

(प्रेस विज्ञप्ति)

 

 

 

(डॉ. मनोज मोक्षेंद्र)

 

 

 

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