लन्दन : दिनांक  ७ मई, २०२२ को "वातायन मंच" के तत्वावधान में "स्मृति-संवाद-२४" का भव्य आयोजन किया गया। यह कार्यक्रम लब्ध-प्रतिष्ठ कथाकार अमरकांत के रचनाकर्म, उनके व्यक्तिगत जीवन तथा साहित्यिक अवदान पर केंद्रित था। कार्यक्रम की प्रतिभागी विदुषियों नामत: प्रोफ़ेसर कुमद शर्मा और डॉ. रेखा सेठी ने अपनी संवादात्मक परिचर्चाओं में अमरकांत की रचनाधर्मिता और उनके  व्यक्तिगत जीवन के विभिन्न पक्षों पर प्रचुरता से प्रकाश डाला। 

कार्यक्रम के प्रस्तोता डॉ. मनोज मोक्षेन्द्र ने संगोष्ठी का शुभारम्भ करते हुए दिल्ली विश्वविद्यालय की वरिष्ठ प्रोफ़ेसर कुमद शर्मा और इद्रप्रस्थ विश्वविद्यालय की प्रोफ़ेसर रेखा सेठी का स्वागत किया। इसके बाद, उन्होंने  एक शोक-सन्देश  उद्घोषित किया जिसमें उन्होंने हिंदी के एक वरिष्ठ प्रोत्साहक और जुझारू पत्रकार श्री जगदीश मित्तर कौशल जी  के निधन की चर्चा की। उन्होंने बताया की स्वर्गीय कौशल लन्दन में काफी समय से पत्रकारिता से जुड़े रहे और उन्होंने एक ख्यात समाचार-पत्र "अमरदीप" का कोई तीन दशकों तक संपादन भी किया। उन्होंने कहा कि उनकी दिवंगत आत्मा की सद्गति के लिए वातायन परिवार प्रार्थना करता है।

तत्पश्चात मोक्षेन्द्र ने प्रोफ़ेसर रेखा सेठी को चर्चा की शुरुआत करने के लिए मंच पर आमंत्रित किया। प्रोफ़ेसर रेखा ने बताया कि अमरकांत कथाकार के रूप में प्रेमचंद की परंपरा में आते तो हैं लेकिन अपने समय के परिवर्तित हो चुके सामाजिक परिवेश में अमरकांत अधिक प्रगतिशील  और यथार्थवादी हैं। प्रेमचंद ने देश के आज़ाद होने के बाद के जो सपने देखे थे, वे तो चकनाचूर हो ही गए क्योंकि  आम आदमी की जो मज़बूरियां थीं, आज़ादी के बाद वे और भी विभीषक रूप लेती गईं। अमरकांत आज़ादी के बाद के ऐसे कथाकार थे जिन्होंने आम आदमी की उन मज़बूरियों को निकट से देखा और जीया भी। उन्होंने अमरकांत की कहानियों "डिप्टी कलक्टरी", "ज़िन्दगी और जोंक" और "दोपहर  का भोजन" जैसी कहानियों को उद्धृत किया जिनमें आम आदमी हाशिए की ज़िन्दगी जीता है।   

तदनन्तर, प्रोफ़ेसर रेखा ने अमरकांत की बहू और साहित्यिक विश्लेषक प्रोफेसर कुमद शर्मा से कथाकार के अनेक अंतरंग पहलुओं पर सवाल किए जिनका जवाब उन्होंने बड़े आत्मीय और रुचिकर शैली में दिया। उन्होंने बताया कि उनके श्वसुर अमरकांत अपने घर में अत्यंत साधारण जीवन जीते थे। घर में वे अधिकतर गंभीर और मितभाषी रहते थे जबकि उनके कथा-साहित्य में उनकी संवेदनशीलता लबालब भरी होती है। इसी संवेदनशीलता के चलते, अमरकांत को  प्रोफ़ेसर कुमद के अपने बेटे के साथ प्रेम-संबंध पर भी कोई आपत्ति नहीं थी और उन्होंने इस प्रेम-संबंध को विवाह-सूत्र में परिणत करने में अहम् भूमिका निभाई। प्रोफ़ेसर कुमद ने बताया कि व्यक्ति के रूप में अमरकांत बिलकुल अलग नज़र आते थे जबकि अपने लेखन में वे अत्यंत मुखर थे। हाशिए पर रह रहे आम आदमी की पीड़ा और उसकी त्रासद स्थिति को बयां करने में अमरकांत का कोई जवाब नहीं है। अपने समय के कथाकारों यथा-कमलेश्वर, राजेंद्र यादव, शैलेश मटियानी, मन्नू भंडारी के बीच उनकी छवि बिलकुल अलग थी। कहानी "दोपहर का भोजन" में स्त्री पात्र सिद्धेश्वरी के माध्यम से स्त्री की त्रासद दयनीयता को चित्रांकित किया गया है जिसे हिंदी साहित्य में हमेशा रेखांकित किया जाएगा।  उनकी कहानियों में घरेलू व्यक्तियों जैसेकि उनकी पत्नी का भी अक्स आसानी से टटोला जा सकता है। उनकी कहानियां समाज का अर्धसत्य न होकर, पूर्ण सत्य हैं। प्रोफ़ेसर कुमद शर्मा को इलाहाबाद स्थित अपने श्वसुर कथाकार के घर पर दोपहर के भोजन के समय  उनसे संवाद करने का सुअवसर मिला करता था। 

कुल मिलाकर अमरकांत पर केंद्रित यह स्मृति-संवाद अत्यंत सारगर्भित तथा श्रोताओं, पाठकों और साहित्य के पिपासुओं के लिए उपादेय रहा। इस संगोष्ठी के अंत में डॉ. जयशंकर यादव, नारायण कुमार, अनूप भार्गव तथा अनिल शर्मा जोशी जैसे प्रबुद्ध व्यक्तियों और साहित्यकारों ने अमरकांत को अपने संस्मरणों में संजोया। अमरकांत के गृह-नगर बलिया स्थित नगरा गांव के निकट रहने वाले डॉ. जयशंकर यादव  ने आग्रह किया कि कथाकार के गाँव में उनकी स्मृति में एक स्मारक बनाया जाना चाहिए। 

कार्यक्रम  के अंत में, आदृत्य संवादकारों, उपस्थित साहित्यकारों और ज़ूम तथा यूट्यूब से जुड़े प्रबुद्ध श्रोता-दर्शकों  को धन्यवाद ज्ञापित करते हुए मनोज मोक्षेन्द्र ने वातायन मंच की सूत्रधार दिव्या माथुर के प्रति आभार व्यक्त किया। 

 

 

(प्रेस विज्ञप्ति)

न्यूज़ सोर्स : wewitness literary desk