झरनों ने तराशे जिन्हें चुन लाए वो पत्थर

मंदिर में ज़ब्त हो गए भगवान बन पत्थर

 

हर ईंट में दिल डालकर कि घर धड़क उट्ठे

मैं रह गया बेजान-सा तूफ़ान में पत्थर

 

जिस शायरी की मांग भरी अपनी कलम से

जब सेज पर मिली तो रही सख़्त वो पत्थर

 

मिथकों में ढूँढता रहा कमनीय जो औरत

पन्नों पर मिली चिपकी वो बेजान-सा पत्थर

 

साहित्य है लाचार मशीनों के दश्त में

तकनालजी ने गढ़ दिए इंसान में पत्थर

 

मज़हब पहन के ताज़ अड़ा यूँ ग़ुरूर में

आवाम कुचलता गया, हलकान है पत्थर

न्यूज़ सोर्स : साहित्य-वी विटनेस