है ये किस्मत अपनी-अपनी, कोई गिला भी क्या करना 
किसी के पास वक्त नहीं और किसी का वक्त कटता नहीं 

पूरी कायनात में तेरी बेरूखी का अजीब आलम देखा है मैंने
कहीं रोटी नहीं और कहीं दौलत का दरिया बहते देखा है मैंने

ये ठोकरे हैं जिनसे तकदीर बनाई जाती है
वरना यूें तो लकीरें हर हाथ में पाई जाती हैं

चिरागों ने दिल से न बढ़ाया होगा हाथ दोस्ती का हवा की तरफ
वरना ऐसी भी कौन सी दुश्मनी है जिसे कभी सुलझाया न सके

ज़हर देकर तुम मुझे मारने पर क्यों आमादा हो
अपने चेहरे से सिर्फ तुम नकाब हटाकर तो देखो

क़ौल करता हूं खुद से कि न जाऊंगा उनके शहर मैं अब  

बेकरार ही रहना है, तो फिर इस शहर में क्या कमी है 

हर कोई खुद को खुदा मान बैठा हैं यहां 

मुझे इस शहर में बस आदमी ही रहने दो

मस्ती में दिन, कहकहों में अपनी शाम गुजरती थी
मोहब्बत तुझ से पहले, अपनी सकून से गुजरती थी 

तेरे जमाल का क्या असर रहा, ये तो तू ही जाने 
अपनी तो जान पर बन आई है, हम तो यही जानें

तुम्हें क्या खबर अपने हुस्न-ओ-जमाल की
पूछो तो बताऊं ये कयामत यूं ही नही आई है।


शहर में भरमार है दंगों में जलते हुए मकानों की
आदमी ने खोज लिया है नया तरीका रोशनी का


जितनी शिद्दत के साथ चाहा था मैंने उसको
उतनी ही शिद्दत के साथ बेवफाई की उसने


देख लिया उनका शबाब, शोखियां, हया और अदाएं 

अब आ भी जाए कयामत तो कौन परवाह करता है


खुदा के बंदो का हाल भी क्या सुनिएगा आप
खुद बेहाल है औरों को परेशान करने के लिए

 

 

लेखक-परिचय 

राजीव कुमार बांगिया भारतीय संसद के राज्य सभा सचिवालय में संयुक्त निदेशक हैं तथा वह काफी समय से साहित्य सृजन में दत्तचित्त हैं। कई पत्रिकाओं में उनकी रचनाएं प्रकाशित हो चुकी हैं। जीवन में सतत संघर्षशील रहे बांगियाजी अपनी कर्मठता के बलबूते पर निष्ठा और ईमानदारी से कार्य करते हुए एक प्रतिष्ठित पद पर कार्यरत हैं। उनकी ज्योतिष शास्त्र में भी गहरी रूचि है; इसके अतिरिक्त, वह विभिन्न प्रकार के साहित्यिक और गैर-साहित्यिक अनुवाद-कौशल में भी दक्ष हैं। 

न्यूज़ सोर्स : साहित्य - वी विटनेस