शायर राजीव बांगिया की शेरो-शायरी
1) चंद लम्हों की इबादत और फिर वही दुनियादारी
वही गिले-शिकवे और ख़ुदा को भूलने की बीमारी
2) मेरे अश्कों ने कई बार कोशिश की हाल-ए-दिल ब्यां करने की
मेरे शाद चेहरे से लोग यही समझें की खुशी मेंआंसू बहा रहा हूं
3) मैंने तो बस हाल पूछा था उस अजनबी का हमदर्दी के लिहाज़ से
आंखों से उसकी अश्कों का सैलाब बह निकलेगा मुझे खबर न थी
4) मैं लौट आया हूं थक के इक बार फिर से शहर में
गांव की आब-ओ-हवा में अब वो ख़लूस रहा नहीं
5) मैं खुद को अर्सा पहले मुकम्मल कह देता
मगर दर्द-ए-इश्क का तजुर्बा अभी बाकी है
6) उतार दिया हमने मुहब्बत का बोझ अपने दिल से
जिंदगी अब ज्यादा खुशगवार महसूस होने लगी
7) अब और इससे बड़ी दरियादिली क्या दिखाता
तेरी बेवफाई का जवाब भी दिया वफा के साथ
8) वो ख़ार अच्छे जो ब-'इज्जत-ए-एहतिराम पेश आएं
उन फूलों का क्या जिन्हें ग़रूर हो अपने पैकर का
(ख़ार= काटें, ब-'इज्जत-ए-एहतिराम= सम्मानपूर्वक, पैकर= शरीर)
9) फरिश्ता तो खैर क्या बनना था हमें
ग़म है की बस इंसा भी न बन सके
10) अपनी उदासियों का ज़िक्र मैं करता भी तो किसे
यहां हर चेहरे में मुझे अपना अक्स नज़र आता है
(अक्स= प्रतिबिंब)
लेखक-परिचय
राजीव कुमार बांगिया भारतीय संसद के राज्य सभा सचिवालय में संयुक्त निदेशक हैं तथा वह काफी समय से साहित्य सृजन में दत्तचित्त हैं। कई पत्रिकाओं में उनकी रचनाएं प्रकाशित हो चुकी हैं। जीवन में सतत संघर्षशील रहे बांगियाजी अपनी कर्मठता के बलबूते पर निष्ठा और ईमानदारी से कार्य करते हुए एक प्रतिष्ठित पद पर कार्यरत हैं। उनकी ज्योतिष शास्त्र में भी गहरी रूचि है; इसके अतिरिक्त, वह विभिन्न प्रकार के साहित्यिक और गैर-साहित्यिक अनुवाद-कौशल में भी दक्ष हैं।