विश्व प्रसिद्ध मां कसार देवी का मंदिर अल्मोड़ा से तकरीबन 8 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, वैसे तो इस मंदिर में हजारों की संख्या में श्रद्धालु हर रोज पहुंचते हैं लेकिन चैत्र की नवरात्रि में यहां भक्तों का तांता देखने को मिलता हैं. कहते हैं कि भारत की ये एकमात्र ऐसी जगह है, जहां चुंबकीय शक्तियां मौजूद हैं. मंदिर के आसपास कई जगह हैं, जहां धरती के अंदर बड़े-बड़े भू-चुंबकीय पिंड हैं. मान्यता है कि इस मंदिर से कई शक्तियां जुड़ी हुई हैं.
अल्मोड़ा में स्थित मां नंदा देवी का मंदिर 350 साल से भी ज्यादा पुराना बताया जाता है. मां नंदा देवी चंद वंश राजाओं की कुलदेवी भी हैं. मान्यता है कि मां नंदा आज भी भक्तों को सपने में दर्शन देती हैं और उनकी मनोकामना पूरी करती हैं.गौरतलब है कि 1670 में कुमाऊं के चंद वंशीय शासक राजा बाज बहादुर चंद बधाणगढ़ के किले से नंदा देवी की स्वर्ण प्रतिमा को अल्मोड़ा लाए थे.
स्याही देवी माता का मंदिर अल्मोड़ा से तकरीबन 36 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है . कत्यूरी राजाओं के समय का यह मंदिर घने जंगलों से घिरा हुआ है. यहां पर माता के तीन अलग-अलग रूप देखने को मिलता है. सूर्य उदय होने के समय मां सुनहरे रंग में दिखती हैं, दिन के समय में काली के रूप में और शाम के वक्त में सांवले रंग में माता भक्तों को दर्शन देती हैं. चैत्र की नवरात्रि में भी काफी संख्या में श्रद्धालु यहां पर पहुंचते हैं.
अल्मोड़ा से तकरीबन 36 किलोमीटर की दूर माता झूला देवी का मंदिर स्थापित है. यह मंदिर 700 साल पुराना बताया जाता है. धार्मिक मान्यता है कि मां दुर्गा के इस मंदिर की रखवाली शेर करते हैं, लेकिन शेर स्थानीय लोगों को कोई नुकसान नहीं पहुंचाते हैं. नवरात्रि में मां के इस मंदिर में भक्तों का तांता लगा रहता है.
अल्मोड़ा से तकरीबन 36 किलोमीटर की दूरी पर है धौलछीना और यहां पर विमलकोट माता का मंदिर स्थापित है. माता यहां पर शक्तिपीठ में विराजमान है. 8 हजार फीट की ऊंचाई में स्थित इस मंदिर की तलहटी पर पत्थरखानी गांव बसा है. मां विमला देवी मंदिर की चोटी से नंदादेवी, त्रिशूल, चौखम्बा, पंचाचूली, नीलकंठ, नंदा धूरी, नंदा खाट, धौलगिरि, पिंडारी ग्लेशियर, चौकुड़ी, कसारदेवी, वृद्धजागेश्वर, देवीधूरा जैसे आध्यात्मिक स्थलों के दर्शन होते हैं.
अल्मोड़ा से 34 किलोमीटर की दूरी पर लमगड़ा में मां विंध्यवासिनी बानड़ी देवी का ऐसा अनोखा मंदिर है, जहां मुराद पूरी होने पर भक्तों को अखंड दिए नौ दिनों के लिए जलाने पड़ते हैं. इसके साथ ही मां की श्रद्धा के साथ नौ दिनों तक आराधना करनी पड़ती है. यह देश का ऐसा पहला मंदिर है, जहां इतनी बड़ी संख्या में श्रद्धालु अखंड दिए जलाते हैं. यहां देवी भगवती पिंडी के तीन शक्ति रूप में वास करती हैं.