इस २७ जनवरी को आयोजित मध्य एशियाई राष्ट्रों के शिखर सम्मलेन में जो बातचीत कजाकिस्तान, उज़्बेकिस्तान, तजाकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान तथा किर्गिस्तान के राष्ट्रप्रमुखों के मध्य संपन्न हुई, वह एशियाई क्षेत्र की शांति और सुरक्षा की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। ऐसा इसलिए है क्योंकि हाल ही में नाटकीय दृष्टि से अफगानिस्तान में जो तख्तापलट हुआ, उससे समूचा एशिया प्रभावित हुआ है और दुनिया के हर कोने से वहां हुए मानवाधिकार के हनन को लेकर शोर-शराबा हुआ था।  इस शिखर सम्मलेन में यह चर्चा की गई कि अफगानिस्तान में जिन मानवीय मूल्यों पर वज्रापात हुआ है, उसे फिर से स्थापित किया जाए। इसके अतिरिक्त, अफगानिस्तान की तालिबानी सरकार को वैश्विक मान्यता भी दिलाई जानी चाहिए। पर, ऐसा तभी संभव होगा जबकि तालिबानी सरकार मानवाधिकारों का अक्षरश: पालन करके एक मिसाल पेश करे।

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मेज़बानी में आयोजित इस डिजिटल शिखर सम्मलेन में जो महत्वपूर्ण बात हुई, वह यह है कि अफगानिस्तान के मौजूदा हालात के मद्देनज़र एक संयुक्त कार्य-दल गठित की जानी चाहिए जिस पर सभी सदस्यों का मतैक्य था। बहरहाल, प्रधानमंत्री मोदी का मशविरा था कि सबसे पहले अफगानिस्तान की जनता को जीवनयापन और जैविक सुरक्षा के लिए मानवीय आधार पर सहायता प्रदान की जाए।इस प्रस्ताव का सदस्यों ने करतल ध्वनि से स्वागत किया। हमारे विदेश सचिव रीनत संधू के मुताबिक नरेंद्र मोदी ने सुझाव दिया  कि शिखर सम्मेलन की कार्य-योजना के संबंध में एक ३० वर्षीय रोड मैप बनायाजाना चाहिए। बेशक, यह एक दूरदर्शी सुझाव था जिसे सभी सदस्यों ने स्वीकार किया। 

इस शिखर सम्मलेन में जो बात रेखांकित की जानी चाहिए, वह यह थी कि इसमें भारत के विचारों को प्राथमिकता दी गई और जब-जब नरेंद्र मोदी ने क्षेत्रीय सुरक्षा और सहयोग को बढ़ावा देने के लिए आग्रह किया, सभी सदस्य-देशों ने उस पर सहमति की मुहर लगाई। वर्तमान एशिया के इस क्षेत्र में अस्थिर स्थितियों पर लगाम कसने के लिए ऐसे शिखर सम्मेलनों की बड़ी आवश्यकता है और यदि इनमें भारत की अगुआई और अध्यक्षता हो तो वह सोने में सुहागा जैसा होगा। भारत इस एशियाई क्षेत्र में पहल करने के लिए आगे आता रहे तो यह राष्ट्र-हित में होगा और इससे इस क्षेत्र में सहयोग के साथ-साथ शांति और अमन-चैन को भी बढ़ावा मिलेगा। सबसे विकट समस्या तो इस क्षेत्र की आर्थिक विपन्नता है जिसके लिए कोई दो वर्षों से कोरोना महामारी पूर्णतया जिम्मेदार है और स्वयं भारत की आर्थिक स्थिति भी इसी वजह से पतली है। इस बदहाली पर अंकुश लगाने के लिए सिर्फ पारस्परिक सहयोग ही फायदेमंद होगा। 

न्यूज़ सोर्स : wewitness